जन सुराज पदयात्रा के दौरान महाराजगंज में पत्रकारों को संबोधित करते हुए प्रशांत किशोर ने तमिलनाडु में हुई घटना पर कहा कि इस घटना को लेकर मैंने 2 ट्वीट किया है। पिछले दिनों कुछ लोगों ने फेक वीडियो चलाया है, जिसमें सच्चाई यह है कि वो फेक हैं और उन पर कार्यवाही हो रही है। जिन लोगों ने फेक वीडियो चलाया उन पर निश्चित कार्रवाई हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि तमिलनाडु में घटना हुई नहीं हैं। आगे प्रशांत किशोर ने कहा कि मैंने दो वीडियो डाले हैं और मीडिया के माध्यम से बिहार और तमिलनाडु पुलिस को चुनौती दे रहा हूं कि यदि मेरे द्वारा डाला गया वीडियो फेक है तो आप आकर मुझ पर केस कर दीजिए, दोनों वीडियो सब के सामने है। तमिलनाडु पुलिस ने भी वीडियो साझा किया है कि रेल में मारपीट की घटना हुई है और उस मामले मे गिरफ़्तारी भी हुई है।
हिंसा भड़काने वालों पर हो कार्रवाई
प्रशांत किशोर ने कहा कि तमिलनाडु के बड़े लीडर घटना से एक दिन पहले हिन्दी भाषी क्षेत्र के लोगों को मारने के बयान देते हैं और इस तरह की बयानबाजी नई नहीं है। पिछले कई महीने से इस तरह की बयानबाजी हो रही है और उसमे कई तरह के लोग शामिल हैं। जब सामाज और राजनीति के जिम्मेदार लोग इस तरह के बयान देंगे तो उसका एक असर ये भी हो सकता है कि कोई घटना हो गई हो लेकिन ऐसी बात नहीं है कि वहां पर ऐसी घटना हुई ही नहीं है। वो बात अलग है की किसी ने फेक वीडियो उस घटना के नाम पर चला दिया है। लेकिन हिन्दी भाषियों के साथ वहाँ पर बदसलूकी हुई है। जो लोग तमिलनाडु को समझते है उनको पता है कि तमिलनाडु के कोंगू इलाके में हिंदी भाषियों के खिलाफ इस तरह की घटना हुई है और मैं फिर से साफ़ तौर पर कह रहा हूं कि जो लोग वहां भाषण दे रहे हैं और तमिलनाडु के लोगो को हिंदी भाषी लोगों के खिलाफ भड़का रहे हैं, उन पर निश्चित कार्यवाही होनी चाहिए।
कुर्सी बचाने में लगे हैं नीतीश
नीतीश कुमार पर हमला करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि 2014-15 वाले नीतीश कुमार जिनकी मैंने मदद की थी और 2021-22 वाले नीतीश कुमार जिनका विरोध किया जा रहा है। उन दोनों मे जमीन – आसमान का अंतर है। अंतर है नेता के तौर पर, प्रशासक के तौर पर और व्यक्तिगत तौर पर। अगर हम बात करें नेता के तौर पर तो 2014- 15 में नीतीश कुमार चुनाव नहीं हारे थे, लेकिन लोकसभा में कम सीट आने की वजह से उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया था और मांझी जी को मुख्यमंत्री बनाया था। 2020 मे नीतीश कुमार चुनाव हार गए थे क्योंकि विधानसभा कि 243 सीट में से केवल 42 विधायक जीते थे, इस हिसाब से वो चुनाव तो हार गए हैं लेकिन आज वो कोई न कोई जुगत लगा कर कभी भाजपा के साथ तो कभी आरजेडी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बने हुए हैं। लेकिन 2005 से 2012 में नीतीश कुमार ने बिहार को सुधारने के लिए कुछ प्रयास किए थे। लेकिन आज के नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाने मे लगे हुए हैं।