इतिहास में दर्ज चंद तारीखों में 25 जून का दिन कुछ खास ही है। यह दिन भारतीय इतिहास के कई पन्नों को लिख चुका है। इसी तारीख पर इतिहास बना है। जीत की खुशी मिली है। तो इसी तारीख के नाम दर्ज है भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला दिन। यही 25 जून एक सामाजिक क्रांति को लाने का जरिया भी बना।
25 जून 1931
इस दिन उस शख्सियत का जन्म हुआ, जिसने आगे चलकर भारतीय राजनीति की दिशा ही मोड़ दी। बात वीपी सिंह की हो रही है। वही वीपी सिंह जिन्होंने राजपरिवार में जन्म लिया। छात्र राजनीति से आगे बढ़े। कांग्रेस से जुड़े तो शीर्ष तक पहुंचे और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। देश का रक्षा मंत्री रहते हुए 1987 में उन्होंने इस्तीफा दिया। कांग्रेस के खिलाफ जनता दल का गठन किया। अगले चुनाव में अलग अलग दलों से गठबंधन कर प्रधानमंत्री तक बन गए। उनके कार्यकाल में कश्मीर से हिंदुओं का पलायन का दाग भी है। तो मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है।
25 जून 1975
आपातकाल भारत के लोकतंत्र पर काला धब्बा है। निरंकुशता, तानाशाही और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला के साथ लोकतंत्र की हत्या आज ही के दिन 1975 में हुई थी। देश आजाद हुआ तो सोच ये थी कि लोकतंत्र को मज़बूत कर ही भारत के सुनहरे भविष्य का अध्याय लिखा जा सकता है। लेकिन आपातकाल में व्यक्तिगत आजादी भी छिन गई थी। 21 महीनों तक वो दौर चला, जिसे आज आज़ाद भारत के इतिहास का एक काला पन्ना माना जाता है।
25 जून 1983
कपिल देव, रोजर बिन्नी, कृष्णमाचारी श्रीकांत, मोहिंदर अमरनाथ, रवि शास्त्री, यशपाल शर्मा, बलविंदर संधू, दिलीप वेंगसरकर, संदीप पाटिल, मदन लाल, कीर्ति आजाद, सैयद किरमानी, सुनील गावस्कर, सुनील वालसन… ये वो नाम हैं जिन्होंने आज ही के दिन 1983 में दो बार के वर्ल्ड कप विनर वेस्टइंडीज को पछाड़ कर वर्ल्ड कप पर कब्जा किया। यह वो टीम थी जिसने भारत को क्रिकेट के इतिहास में वर्ल्ड कप जीतने वाली दूसरी और पहली एशियाई टीम का दर्जा दिला दिया। हर खिलाड़ी खास था, वो भी बिना किसी मार्केटिंग के। भारत को पहला वर्ल्ड कप जिताने वाले सभी खिलाड़ियों को आभार क्योंकि उन्होंने देश में क्रिकेट को एक मुकाम तक पहुंचाया था।