भारतीय राजनीति में कांग्रेस पिछले दो चुनावों से ऐसा पिछड़ी है कि क्षेत्रीय दलों की नजर में कांग्रेस और कांग्रेस के बड़े नेताओं का महत्व भी कई बार छोटा हो जाता है। भाजपा और नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ 2024 के लोकसभा चुनाव में बने I.N.D.I.A. के गठन की नींव रखने वाले नीतीश कुमार को भले ही कांग्रेस ने ओवरटेक कर गठबंधन की ड्राइविंग सीट पा ली। लेकिन इस गठबंधन के दल कांग्रेस को तवज्जो नहीं देना चाहते। यह बात बार बार साबित हो रही है। बंगाल और दिल्ली के सीएम I.N.D.I.A. की मीटिंग में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी को इग्नोर कर मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम उम्मीदवार बनाने का ऑफर दे देते हैं। तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार इस बात से नाराज होकर मीटिंग से निकल जाते हैं। लालू यादव भी कुछ नहीं बोल पाते। जबकि अखिलेश यादव I.N.D.I.A. की मीटिंग में राहुल गांधी के सामने कांग्रेस से यह सवाल कर जाते हैं कि कहीं उनके पार्टी की सेटिंग बहुजन समाज पार्टी से तो नहीं चल रही। इतने नेताओं के उल्टे-सीधे दांव झेलते हुए भी कांग्रेस अगर शांत दिमाग से आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है, तो यह माना जा रहा है कि कहीं न कहीं कोई रणनीति कांग्रेस नेतृत्व को समझ आ रही है, जिससे क्षेत्रीय दलों को हवा किया जा सकता है। हाल के दिनों में कांग्रेस की चुनावी नैया की रफ्तार और धार पर गौर करें तो कांग्रेस ने एक बार फिर मुसलमानों को लगभग साध लिया है, जिसका नतीजा यह हो रहा है कि कांग्रेस को उन राज्यों में जीत मिल रही है, जहां मुसलमान वोटर्स की संख्या 10 फीसदी से अधिक है। अगर ट्रेंड यही बरकरार रहा तो आने वाले वक्त में नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और ममता बनर्जी जैसे नेताओं के लिए भाजपा की तरह कांग्रेस भी टेंशन बन सकती है।
उन दो राज्यों में जीत, जहां मुस्लिम आबादी 10 प्रतिशत से अधिक
2023 में कांग्रेस ने दो राज्यों में सरकार बनाई है। पहला कर्नाटक है और दूसरा तेलंगाना। इन दोनों राज्यों में राष्ट्रीय दलों में भाजपा और कांग्रेस तो लड़े ही क्षेत्रीय दलों का भी यहां वजूद है। कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर महत्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है, जो कई बार सरकार में भी रहा है। तो दूसरी ओर तेलंगाना में बीआरएस मजबूत क्षेत्रीय दल है, जो अभी तक सरकार में था। लेकिन कांग्रेस ने दोनों राज्यों में भाजपा को पछाड़ते हुए क्षेत्रीय दलों को भी हाशिए पर धकेल कर सरकार बना ली, इसके पीछे एक वजह यह भी मानी जा रही है कि इन दोनों ही राज्यों में मुस्लिम आबादी 10 प्रतिशत से अधिक है और कांग्रेस को अन्य वोट्स के साथ मुसलमानों का एकमुश्त वोट भी मिला है। कर्नाटक में मुसलमान आबादी 12.92 प्रतिशत है जबकि तेलंगाना में 12.75 फीसदी है।
एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान में इसीलिए फिसली कांग्रेस?
कांग्रेस ने कर्नाटक और तेलंगाना में चुनाव बड़े मार्जिन से जीता, जबकि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान को बड़े अंतर से गंवाया। इसका एक मतलब यह भी निकाला जा रहा है कि लगभग एक ही माहौल में हुए चुनाव में कांग्रेस की हालत इसलिए खस्ता हो गई क्योंकि इन राज्यों में मुसलमान आबादी कम है। मध्य प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 6.57 प्रतिशत है। जबकि राजस्थान में 9.07 और छत्तीसगढ़ में 2.02 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी के बावजूद अगर जिन राज्यों में मुसलमानों की आबादी कम है, वहां कांग्रेस हार रही है और जिन राज्यों में मुसलमानों की आबादी अधिक है वहां कांग्रेस जीत रही है तो यह भी माना जा सकता है कि मुसलमानों ने क्षेत्रीय दलों की बजाय कांग्रेस पर भरोसा करना शुरू कर दिया है। जो निश्चित तौर पर उन राज्यों के क्षेत्रीय दलों की परेशानी का सबब बन सकता है, जहां मुसलमान आबादी ठीकठाक है।
नीतीश-तेजस्वी-ममता-अखिलेश को झटका?
मुसलमान आबादी के मामले में टॉप राज्य उत्तर प्रदेश है। यहां 19.26 फीसदी मुसलमान हैं। यहां सरकार भाजपा की है और विपक्ष में समाजवादी पार्टी है। लेकिन तेलंगाना और कर्नाटक वाली हवा यूपी में भी चली तो यूपी में कांग्रेस के दिन बहुरने में वक्त नहीं लगेगा। अब बात बिहार की करते हैं जहां 2019 के चुनाव में भाजपा के विरोधी दलों को सिर्फ एक सीट किशनगंज मिली। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार जीते और यह सीट भी मुसलमान बहुल मानी जाती है। राजद जैसी पार्टी कोई सीट नहीं जीती। इस कारण भी लगता है कि मुसलमानों ने कांग्रेस उम्मीदवार को पूरा सपोर्ट दिया। बिहार में 2011 की जनगणना के मुताबिक मुस्लिम आबादी 16.87 फीसदी है। जबकि बिहार सरकार के जाति व आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर मुसलमानों की आबादी 17.70 फीसदी हो गई है। वहीं पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 27.01 प्रतिशत है। यानि तेलंगाना और कर्नाटक वाली हवा बिहार और पश्चिम बंगाल में भी चली तो कांग्रेस के हाथ मजबूत हो सकते हैं।