सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को पलटते हुए एससी-एसटी आरक्षण (SC-ST Reservation) में निर्धारित कोटा में वर्गीकरण को मंजूरी दे दी है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद राजनीतिक दलों में घमासान मचा हुआ है। कोई इसके समर्थन में है तो कोई इसके खिलाफ। बहुजन संगठनों में भी इसको लेकर आक्रोश देखा जा रहा है। बहुजन संगठनों ने 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में देशव्यापी बंद की घोषणा की है। भीम सेना के सतपाल तंवर द्वारा आहूत बंद ने तेज़ी से लोगों का ध्यान आकर्षित किया है और सैकड़ों कार्यकर्ताओं और बहुजन नेतृत्व वाले सामाजिक-राजनीतिक संगठनों से व्यापक समर्थन प्राप्त किया है।
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों में असंतोष फैल रहा है, जो इसे ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान के लिए बनाई गई सकारात्मक कार्रवाई नीतियों के मूल उद्देश्य के लिए खतरा मानते हैं। यह निर्णय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समूहों के भीतर विभिन्न उप-श्रेणियों के बीच मौजूदा आरक्षण कोटा को विभाजित करने की अनुमति देता है।
आलोचकों का तर्क है कि यह कदम सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को कमजोर करता है, जिससे पहले से ही हाशिए के समुदायों के भीतर विभाजन पैदा हो सकता है। बंद के आह्वान को कार्यकर्ता समूहों और नागरिक समाज संगठनों से महत्वपूर्ण समर्थन मिला है। भारत भर के प्रमुख शहरों और कस्बों में प्रदर्शन होने की उम्मीद है। आयोजकों का उद्देश्य सामान्य गतिविधियों को बाधित करना और राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करना है, जिसे वे गंभीर अन्याय मानते हैं।
इस निर्णय के जवाब में, प्रभावित पक्षों का एक समूह सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक समीक्षा याचिका दायर करने की तैयारी कर रहा है, जिसमें निर्णय को पलटने या संशोधित करने की मांग की गई है। उनका तर्क है कि यह निर्णय भारतीय संविधान में निहित समानता और न्याय के सिद्धांतों का खंडन करता है। बिहार में राजद नेता तेजस्वी यादव, पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव, जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की पार्टी भी इसका विरोध कर रही है। हालांकि यह राजनीतिक दल इस बंद में शामिल होंगे या नहीं, इसकी जानकारी नहीं है।