मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब से जी-20 में राष्ट्रपति की ओर से दिए गए भोज में शामिल होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है, तब से ही कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। एक बार फिर से नीतीश कुमार ने राजनीतिक चर्चाएं तेज कर दी हैं। एक तरफ जहां नीतीश ने हरियाणा के कैथल में आयोजित इनेलो पूर्व उपमुख्यमंत्री ताऊ देवीलाल की जयंती कार्यक्रम से दूरी बना ली है। जिसमें विपक्षी I.N.D.I.A गठबंधन के नेता पहुंच रहे हैं। इसकी जगह नीतीश कुमार पटना में आयोजित पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोह में शामिल होने के लिए पहुंच गए हैं। हांलाकि, इस दौरान डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी मौजूद रहे।
नीतीश बोले-हम सबके सम्मान के लिए काम कर रहे
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोह में शामिल होने के सवाल पर नीतीश कुमार ने कहा कि हम सबके सम्मान के लिए काम कर रहे हैं। इसमें कोई बड़ी बात है। कोई भी कहीं भी जाकर श्रद्धांजलि अर्पित कर सकता है। जो दीनदयाल जी के विचारों से सहमत है और नहीं आते हैं वह न समझे कि क्यों नहीं आते हैं। हमको उससे क्या मतलब है। हम तो सब का सम्मान करते हैं। नीतीश ने कहा कि सबको आगे बढ़ाने का काम हम लोग करते रहेंगे, इसलिए इंतजार कीजिए और सारी चीजों को देखिए।
बिहार बीजेपी अध्यक्ष ने किया स्वागत
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कार्यक्रम में शामिल होने के फैसले का बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने स्वागत किया है। सम्राट चौधरी ने कहा कि अच्छी बात है। यदि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के कार्यों से प्रेरित होकर पहली बार जा रहे हैं तो यह काफी अच्छी बात है। वहीं, नीतीश कुमार ने यह निर्णय लिया है कि वो आज कैथल में होने वाले इनेलो के कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे बल्कि पंडित दीन दयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर होने वाले कार्यक्रम में शिरकत करेंगे।
बीजेपी के मार्गदर्शक रहे हैं पं. दीनदयाल उपाध्याय
आपको बता दें कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय सन 1953 से 1968 तक भारतीय जनसंघ के नेता रहे थे। भाजपा की स्थापना के समय से ही वह इसके वैचारिक मार्गदर्शक और नैतिक प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। पंडित दीनदयाल अपनी निष्ठा और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। वे अखंड भारत के समर्थक रहे। उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को परिभाषित किया और समाज के सर्वांगीण विकास और उत्थान के लिए भी अनेक कार्य किए। 1940 के दशक में उन्होंने हिंदुत्व राष्ट्रवाद की विचारधारा के प्रसार के लिए लखनऊ से मासिक राष्ट्रीय धर्म की शुरुआत की। उन्होंने पांचजन्य और दैनिक स्वदेश भी शुरू किया था। 1942 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में शामिल हो गए।