ध्रुव गुप्त.
‘का हो श्री श्री 108 विश्वगुरु मोदी जी महाराज, आपको सारी दुनिया के कल्याण की बात याद रहती है, हमरे बिहार को काहे हरमेसा भुला जाते हैं ?’
‘आपको क्या हुआ, सुशासन बाबू ? आप तो हमारे एन.डी.ए के सबसे मजबूत सहयोगी हैं।’
‘बिहार को स्पेशल स्टेटस और स्पेशल पैकेज तो आप दिए नहीं। वादा तेरा वादा ही रह गया। यहां जो थोड़ा-बहुत है वह भी हर बरसात में नेपाल से आनेवाले पानी में डूब जाता है। इधर या उधर कोई कुछ नहीं करता। अभी साल भर पहले नेपाल वाले ओली जी हमरी नाक में दम किए हुए थे। बिहार की जमीन पर दावा भी ठोके और आधा बिहार को डुबा भी मारे थे। अबकी साल नहीं कुछ करिएगा तो प्रलये नू आएगा बिहार में ?’
‘तो इसमें समस्या क्या है ? जैसे को तैसा वाला मुहाबरा भुला गए क्या ? वो नेपाल का पानी बिहार में घुसाते हैं। आप बिहार का पानी नेपाल में घुसा दीजिए। हिसाब बराबर।’
‘ऐ महाराज, ई तक्षशिला वाला भूगोल मत पढाईए न हमको। देश पहले से ही आपके इतिहास ज्ञान से पानी-पानी है। बिहार में पानी-वानी नहीं पैदा होता। इधर का पानी सब नेपाल या उत्तराखंड के पहाड़ से उतरता है। सुनते हैं कि दुनिया भर में आपकी डिप्लोमेसी का डंका बज रहा है। दो बित्ते के नेपाल के सामने आप हरदी-गुरदी काहे बोल देते हैं जी ? अब तो नेपाल में देउबा जी की सरकार है। सुनते हैं कि भले आदमी हैं। आप उनसे बात क्यों नहीं करते ?’
‘अब क्या कहें नीतीश जी, नेपाल में सरकार किसी की हो, इन दिनों जिनपिंग के प्रभाव में ही काम करती है। पाकिस्तान की तरह नेपाल में भी कर्ज की भारी रकम ठेल रहा है चीन। वहां अब हमारी कम ही सुनते हैं लोग।’
‘तो सीधे जिनपिंगवे को काहे नहीं धरते हैं ? दू-चार बार फोन गनगनाईए उसको। ससुरा को अहमदाबाद में साबरमती के किनारे झूला क्या मंगनी में झुलाए थे ? हम साफ कहे देते हैं कि अबकी बरसात में बिहार डूबा तो बिहार में एन.डी.ए को भी डूबल ही समझ लीजिए !’
‘जिनपिंग दुनिया भर की नहीं सुनता तो ससुरा हमारी-आपकी क्या सुनेगा ? ऐसा कीजिए कि इस बार बिहार को डूब ही जाने दीजिए। अगले साल आपके पूरे बिहार-नेपाल बॉर्डर पर हम पत्थरों की दस फीट ऊंची दीवार खड़ी कर देंगे। हमेशा के लिए बाढ़-पानी का झंझट ही ख़त्म।’
‘धन्य हैं प्रभु, लेकिन इतना सारा पत्थर कहां से उठवा कर लाईयेगा ? गलवान से कि नाथूला से ?’
‘अरे नीतीश जी, थोड़ी दूर की सोचिए भाई ! बाढ़ और बर्बादी के बाद बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के लोग जो ढेला-पत्थर आपकी सरकार और यहां के प्रशासन के लोगों पर फेकेंगे, वे आखिर किस दिन काम आएंगे ? कम से कम आपदा में अवसर खोजना तो सीख ही लीजिए हमसे !’
(वरिष्ठ साहित्यकार ध्रुव गुप्त जी के फेसबुक वाल से साभार)