बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव की राह आसान नहीं दिख रही है। प्रशांत किशोर (PK) की जन सुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM उनके पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं, वहीं उन्हें बीजेपी और जेडीयू के मजबूत गठबंधन, NDA से भी मुकाबला करना होगा। हाल ही में हुए उपचुनावों में PK की पार्टी ने अपनी ताकत का अहसास कराया है, जिससे RJD की चिंता बढ़ गई है। ओवैसी की पार्टी पहले से ही RJD के वोट बैंक में सेंधमारी करती रही है, और अब PK की पार्टी के रूप में एक नया चुनौती उभर कर सामने आ रही है।
तेजस्वी यादव, जो पिछले 9 साल से बिहार के मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे हैं, 2025 के विधानसभा चुनाव में कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती प्रशांत किशोर और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं से आ रही है, जो उनके मुख्य वोट बैंक, खासकर मुस्लिम और यादव वोटों में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा, बिहार में बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन NDA भी चुनावी मुकाबले में मजबूत है।
2020 के विधानसभा चुनाव में, ओवैसी की पार्टी AIMIM ने बिहार के सीमांचल क्षेत्र में RJD के वोटों में भारी सेंध लगाई थी। अब, 2025 के चुनाव से पहले प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी मैदान में है। हाल ही में हुए चार विधानसभा सीटों के उपचुनावों में जन सुराज पार्टी ने अपनी ताकत का अहसास कराया है। इमामगंज सीट पर जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार ने 37 हजार वोट हासिल किए, जो RJD की हार का मुख्य कारण बने। वहीं, बेलागंज सीट पर भी जन सुराज पार्टी ने 17 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि PK की पार्टी राज्य में प्रभावी हो रही है। इन दोनों सीटों पर ओवैसी की AIMIM ने भी कुछ वोट प्राप्त किए।
प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि अगर उनकी पार्टी जन सुराज नहीं लड़ती, तो RJD की हार का अंतर और भी ज्यादा होता। उनका कहना है कि उनकी पार्टी ने मुस्लिम वोटों को नहीं काटा, बल्कि उन वोटों को जेडीयू को मिलवाया। 2025 के विधानसभा चुनाव में उनका लक्ष्य है कि वे उपचुनाव में मिले लगभग 10% वोट को बढ़ाकर 40% तक पहुंचाएं। PK ने यह भी ऐलान किया है कि वे 40 मुस्लिम और 40 महिला उम्मीदवारों को टिकट देंगे, ताकि उनकी पार्टी को व्यापक समर्थन मिले।
प्रशांत किशोर अपनी सभाओं में तेजस्वी यादव और उनके पिता लालू प्रसाद यादव पर लगातार निशाना साधते रहे हैं। वे खुद को बिहार में तीसरे विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वे उन वोटरों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं, जो दोनों प्रमुख गठबंधनों, NDA और महागठबंधन, से नाराज हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में, ओवैसी की पार्टी AIMIM ने बिहार के सीमांचल क्षेत्र में खासा असर डाला था और RJD के वोटों में बड़ी सेंधमारी की थी। AIMIM ने पांच सीटें जीतीं, जिनमें से चार बाद में RJD में शामिल हो गईं। हालांकि, ओवैसी की पार्टी अभी भी बिहार में सक्रिय है और RJD के वोट बैंक पर नजर बनाए हुए है।
तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव आसान नहीं होने वाला है। उन्हें एक ओर NDA के मजबूत गठबंधन से मुकाबला करना है, तो दूसरी ओर PK और ओवैसी की पार्टियों से अपने वोट बैंक को बचाने की चुनौती है। बिहार में राजनीतिक हालात तेजी से बदल रहे हैं, और तेजस्वी यादव को अपनी रणनीतियां नई परिस्थितियों के हिसाब से तैयार करनी होंगी। 2025 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे इन नई चुनौतियों से कैसे निपटते हैं।