जमुई के एक छोटे से गांव से आने वाले दिव्यांग एथलीट शैलेश कुमार पेरिस पैरालिंपिक में मेडल से चूक गए हैं। वह पुरुष हाई जम्प T-42/63 कैटेगरी में 1.85 मीटर के बेस्ट जंप के साथ चौथे स्थान पर रहे। वे महज 0.03 मीटर से चुके हैं। वहीं, इसी कैटेगरी में भारत को दो मेडल हासिल हुआ। शरद कुमार ने 1.88 मीटर जंप कर सिल्वर मेडल जीता। जबकि मरियप्पन थांगावेलु ने 1.85 मीटर का जंप कर तीसरा स्थान हासिल किया। अमेरिका के ईजरा फ्रेच 1.94 मीटर जंप कर पहले नंबर पर रहे। शैलेश पैरालंपिक में बिहार से भाग लेने वाले इकलौते खिलाड़ी हैं। पिछले साल के पैरालिंपिक में भी उन्होंने ट्रायल दिया था, लेकिन चौथे स्थान पर रहे।
शैलेश का जमुई के अलीगंज प्रखंड के इस्लामनगर इलाके में जन्म हुआ है। वह किसान परिवार से आते हैं। वह बचपन से ही दाहिने पैर से दिव्यांग हैं। शैलेश की सफलता की कहानी भी काफी संघर्षों से भरी है। पिता पेशे से किसान हैं और मां गृहिणी है। पिता पूरे दिन खेतों में कुदाल चलाकर खेती के जरिए घर परिवार चलाते हैं। बेटे और उसके खेल के लिए भी पैसे इकट्ठा करते हैं। लेकिन, शैलेश ने अपने पिता का मान बढ़ाने के लिए अपने आप को इस हद तक बेहतर बना लिया है।
प्रतियोगिता में भाग लेने से पहले शैलेश ने बताया कि स्कूल में जब प्रतियोगिता हो रही थी, तो उनका किसी ने नाम दे दिया था। उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी। जब प्रतियोगिता हुई तो उनका हाई जंप, लॉन्ग जंप और 100 मीटर के रेस में नाम था। शैलेश काफी अचंभित हुए, लेकिन फिर भी उन्होंने तीनों प्रतियोगिता में भाग लिया और अच्छा प्रदर्शन किया। इसके बाद से शैलेश के मन में स्पोर्ट्स के लिए रुचि जाग गई।
24 वर्षीय शैलेश साल 2011 से स्पोर्ट्स में काफी एक्टिव हैं। शैलेश बताते हैं कि जब उन्होंने फैमिली से स्पोर्ट्स में करियर बनाने की बात कही तो परिवारवालों ने साफ मना कर दिया। उनका कहना था कि पढ़ाई करके उन्हें अफसर बनना है, लेकिन शैलेश के बड़े भाई ने उन्हें काफी सपोर्ट किया। बाद में उन्होंने स्पोर्ट्स के लिए अपने आप को तैयार किया। बिहार में वैसी फैसिलिटी नहीं मिलने के कारण काफी स्ट्रगल करनी पड़ी। वह नंगे पांव खेत में दौड़कर प्रैक्टिस करते थे। उनके पास प्रॉपर स्पोर्ट्स शू के लिए पैसे तक नहीं थे। 2017 में जयपुर में आयोजित नैशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शैलेश ने नंगे पांव खेलते हुए ब्रॉन्ज मेडल जीता।
मां प्रतिमा देवी का कहना है कि शैलेश जन्म से ही दिव्यांग था। शैलेश को पालने में बहुत दिक्कत और परेशानी हुई। एक किसान होकर खेती-बाड़ी कर गाय का दूध बेचकर उसे पढ़ाए। बचपन से दिव्यांग जन्म लेने के कारण उसे पटना में भी इलाज कराया, लेकिन वहां भी पैर ठीक नहीं हुआ। चिंता भी थी कि क्यों भगवान ने इस तरह इसको जन्म दिया है। उसका आगे क्या होगा। मां के मुताबिक, ‘डॉक्टर का कहना था कि उसका ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन कराने से शैलेश के पिता मना कर दिया। उनका कहना था लड़का है, रहने दीजिए। लड़की होती तो चिंता की बात होती। 2 साल तक शैलेश को मायके नवादा में लेकर रहे। वहां भी इलाज कराए, एक महीने तक एक्सरसाइज भी करवाए, लेकिन ठीक नहीं हुआ। वह दिव्यांग ही रह गया। उसकी पढ़ाई के लिए हमने अपना खेत गिरवी रखा। कर्ज भी लिए।’
इधर, पिता शिवनंदन यादव ने बताया कि शैलेश के नाना ने हमारी बहुत मदद की थी। पटना में डॉक्टर ने कहा कि बिना ऑपरेशन शैलेश का पैर ठीक नहीं हो पाएगा। शैलेश के पैर के ऑपरेशन के बारे में जब हमसे राय ली गई, तो हमने डर से मना कर दिया। शैलेश जब पढ़ाई करने लगा था, तब उसके लिए 2 बीघा जमीन गिरवी रखी। शैलेश पढ़ना भी चाहता था। खेलता भी था। वह स्कूल समय पर जाता था। पिता ने आगे बताया, ‘हमें पता ही नहीं चलता था कि वह पढ़ रहा है या खेल रहा है। शैलेश पेरिस में खेलने से पहले 2023 में पैरा एशियन गेम्स में भी सिल्वर मेडल जीता था। शैलेश ने जमुई, पटना, हरियाणा, गुजरात में भी खेला है। अभी वह पेरिस में खेल रहा है। शैलेश के साथ उसके जो भी साथी प्रैक्टिस में जाते थे, वह कहते थे कि हम तुमसे जीत नहीं पाएंगे। उसके साथ प्रैक्टिस करने के लिए कोई तैयार नहीं होता था। उसके साथ कई लड़कों ने प्रैक्टिस किया, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली।’