लातेहार: आपने काम कर रहे कर्मचारी, मजदूर , वर्कर्स की सप्ताह में 1 दिन छुट्टी सुनी होगी। लेकिन मवेशियों को भी सप्ताह में 1 दिन छुट्टी मिले यह सुनने में अटपटा सा लगता है। जी हां झारखंड के 20 से अधिक ऐसे गांव हैं जहां मवेशियों को साप्ताहिक छुट्टी दी जाती है। लातेहार जिले के गांव में रविवार को मवेशियों से कोई काम नहीं लिया जाता हैं। यहां तक कि गाय-भैंसों के दूध भी नहीं निकालते है। रविवार को मवेशियों की सेवा की जाती है। अच्छे से अच्छा आहार दिया जाता है। वही मवेशियों की छुट्टी पर गरग्रामीण खेतों में जाकर काम करते हैं। 100 सालों से गांव में यह परंपरा चली आ रही है।
वर्षो से चली आ रही है परम्पराए
ग्रामीणों का कहना है की यह परम्पराए वर्षों से चली आ रही है। उनके पुरखों ने पशुओं को 1 दिन आराम करने की परंपरा शुरू की थी। लातेहार जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉक्टर देव कुमार चौरसिया ने बताया कि यह परंपरा सराहनीय है। पशुओं को भी आराम की जरूरत है। आराम न मिलने से जिस तरह मनुष्य बीमार हो सकता है उसी प्रकार पशु भी कई बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।
20 गांव में है ऐसी परम्परा
पूर्व मुखिया रामेश्वर राव ने बताया कि करीब 100 साल पहले खेत की जुताई के समय एक बैल की मौत हो गई थी। इसे हमारे पूर्वजों ने गंभीरता से लिया और यह परंपराएं शुरू की। तब से रविवार को मवेशियों को आराम दिया जाता है। उनसे कोई काम नहीं लिया जाता है। वहीं रविवार को मवेशियों को नहलाना जाता है और तेल लगाया जाता हैं। पुरे दिन आराम करने दिया जाता है। यह परंपरा एक गांव से शुरू हुई थी और अब 20 गांव में ऐसा हो रहा है।
ये है वो गाँव
लातेहार के पकरार, हरखा ललगड़ी, मोंगर, कैमा, कढीमा, दोगिला, कलातुपू, होटावाग, गारू के कोटाम, मनिका के पल्लेहा, मटलौंग, जुंगुर, बालूमाथ के मुरपा, बालुभांग, बरवाडीह के कुरा, लंका, महुआडांड़ के दौना और दुरूप समेत 20 से अधिक गांवों में यह परंपरा चल रही है। पशुपालक कहते हैं कि इससे फायदा भी हो रहा है। पशु बीमार नहीं पड़ते। सिर्फ काम वाले पशुओं की ही नहीं, बल्कि बीमार और बूढ़े पशुओं की भी यहां तीमारदारी की जाती है।