बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा रहा है, जिस पर कई बार राज्य सरकार और राजभवन आमने सामने हो जाते हैं। विश्वविद्यालयों की संचालन नियमावली में कुलाधिपति सह राज्यपाल की शक्तियां कहीं अधिक हैं। लेकिन विश्वविद्यालयों के कई मामले राज्य सरकार से भी जुड़े होते हैं। दोनों में सामंजस्य की कमी कई बार अलग ही स्थिति ला देते हैं। एक मामला मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से जुड़ा है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे डॉ. राजेंद्र प्रसाद के खिलाफ राजभवन ने अभियोजन की स्वीकृति लगभग सवा 4 महीने बाद दी है। जबकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में प्रावधान यह है कि जांच एजेंसी जिस दिन चार्जशीट फाइल करेगी, उसके 3 माह के अंदर अभियोजन की स्वीकृति जरुरी है। वैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद के मामले में तो राजभवन की ओर से स्वीकृति मिल गई है लेकिन कई मामले ऐसे हैं, जिन पर अभी भी कार्रवाई लंबित है।
कुलाधिपति के आप्त सचिव पर भी लगे थे आरोप
विश्वविद्यालयों की तरह कई बार कुलाधिपति कार्यालय के अधिकारियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। इसमें एक मामला कुलाधिपति के आप्त सचिव विजय कुमार सिंह के साथ उनकी पुत्री पर भी चल रहा है। यह मामला तब का है जब बिहार के राज्यपाल सह विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में फागू चौहान का कार्यकाल था। यह मामला नियुक्तियों में भ्रष्टाचार से संबंधित था, जिस पर निगरानी में शिकायत की गई थी।
कर्मचारी को गलत प्रमोशन देने का भी आरोप
कुलाधिपति कार्यालय में आरोपों में एक यह भी है कि कर्मचारी को गलत तरीके से प्रमोशन दिया गया है। इस मामले में 26 फरवरी 2023 को राज्यपाल को शिकायत की गई है कि साक्षात्कार की अनिवार्य प्रक्रिया का संचालन किए बिना ही अनुकम्पा पर नियुक्ति निम्नवर्गीय लिपिक (LDC) आकांक्षा को सीधे वर्ग एक के आरक्षित पद विश्वविद्यालय निरीक्ष के पद पर नियुक्ति दे दी गई। गौरतलब है कि प्रावधानों के अनुरुप मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों को वर्ग 3 एवं वर्ग 4 के पदों पर नियुक्ति किया जा सकता है। साथ ही अनुकम्पा के आधार पर किसी पद पर नियुक्ति होने पर अनुकम्पा का दोबारा लाभ देते हुए उसकी पदोन्नति अथवा संवर्ग परिवर्तन नहीं किए जाने का भी प्रावधान है।
अब इस मामले में बिहार सरकार के शिक्षा विभाग की उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. रेखा कुमारी ने राजभवन के प्रधान सचिव को 24 जुलाई 2023 को पत्र भेजकर आवश्यक कार्रवाई करने के लिए प्रेषित कर दिया है। इससे पहले 15 जून को एक आवेदन के माध्यम से यह शिकायत की गई थी कि निम्न वर्गीय लिपिक समूह ‘ग’ वेतन स्तर 02 के कर्मी को समूह ‘क’ वेतन स्तर 11 के विश्वविद्यालय निरीक्षक के पद पर नियमों का उल्लंघन कर नियुक्ति की गई है। यही नहीं आकांक्षा की प्रोन्नति आनन फानन में बगैर राज्य सरकार से परामर्श लिए आरक्षित पद के विरुद्ध कर दी गई। जबकि आरक्षित पद पर अन्य कैटेगरी के उम्मीदवारों की नियुक्ति अपराध की श्रेणी में आता है ।
जिस प्रकार राजभवन ने मगध विवि के पूर्व कुलपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के मामले में अभियोजन की स्वीकृति SVU को दे दी है। उसी प्रकार राजभवन अन्य आरोपियों पर कार्रवाई कब करता है, यह देखना है।