बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी राजनीतिक शतरंज के माहिर खिलाड़ी है। फिलहाल तो वो बिहार की महागठबंधन सरकार में शामिल हैं। लेकिन अपने ढाई चाल से चौंकते रहते हैं। वो दो कदम महागठबंधन की तरफ चलते हैं, तो आधा कदम किसी और तरफ। उनके बयानों पर गौर करें तो इस बात का साफ प्रमाण भी मिल जाता है। मांझी की ढाई चाल का जिक्र एक बार फिर से सियासी गलियारों में शुरू हो गई है। इसका कारण उनका कोई बयान नहीं बल्कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से उनकी होने वाली मुलाकात है। इस मुलाकात को लेकर बड़ा सवाल ये है कि एक ओर जहां बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता अभियान में जुटे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन में सेंध तो नहीं लगेगी?
मांझी-शाह की मुलाकात
दरअसल जीतन राम मांझी आज केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलकात करने वाले है। उनकी इस मुलाकात को राजनीतिक रूप से अहम माना जा रहा है। हालांकि मांझी की पार्टी की तरफ से इस मुलकात के पीछे का कारण कुछ और बताया गया है। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा की तरफ से बताया गया है कि मांझी एक ज्ञापन लेकर अमित शाह से मिलने जा रहे हैं। जिसमें बिहार एक महापुरुषों दशरथ मांझी, कर्पूरी ठाकुर और श्रीकृष्ण सिंह को भारत रत्न देकर सम्मानित किए जाने की मांग हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल समय को लेकर हैं। ऐसे वक्त में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली जाकर विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं और उन्हें भाजपा के खिलाफ एकजुट करने का प्रयास कर रहे, उस वक्त मांझी और शाह की मुलाकात को राजीनीतिक चश्मा उतार कर नहीं देखा जा सकता है।
मांझी और BJP की नजदीकी
जीतन राम मांझी की भाजपा से नजदीकी को लेकर समय- समय पर चर्चाएं होती रहती है। मांझी कई बार ऐसा बयान दे देते हैं जिससे महागठबंधन में उनके मतभेद होने के संकेत भी मिलते हैं। शराबबंदी कानून के विरोध में वो हमेशा ही कुछ ना कुछ बोलते रहते हैं। वहीं कुछ समय पहले अपने बेटे को मुख्यमंत्री के रूप में देखने की चाह वाले उनके बयानों ने खुब सुर्खियाँ बटोरी थी। स्थिति ऐसी हो गई कि खुद नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर ये कहा था कि भाजपा जीतन राम मांझी पर डोरे डाल रही है। अब इनसब के बाद अमित शाह से जीतन राम मांझी की मुलकात नई राजनीतिक समीकरण की ओर इशारा कर रही है।