बिहार में जातीय गणना का बवाल विधानमंडल, कैबिनेट, सर्वदलीय बैठक के बाद अब सड़कों पर उतर गया है। जातीय गणना में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने राजभवन मार्च का ऐलान किया था। इसमें उपेंद्र कुशवाहा का आरोप है कि उनकी कुशवाहा जाति की आबादी को बिहार सरकार ने जानबूझ कर कम दिखाया है। कुशवाहा का आरोप यह भी कि बिहार में हुए इस जातीय गणना के आंकड़ों को ठीक से नहीं भरा गया है। सर्वे की टीम गली-मुहल्लों में घूमे बिना ही अपनी रिपोर्ट फाइल करती रही और उसी को आंकड़ा बनाकर बिहार सरकार ने पेश कर दिया।
जांच की मांग
उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि “बिहार जातीय गणना रिपोर्ट में कुर्मी कोइरी, अनुसूचित जाति और जनजाति, अति पिछड़ा समेत कई अन्य जातियों के आंकड़ों को पहले की तुलना में कम करके बताया गया है। यह गरीब और वंचित वर्गों के साथ अन्याय है। इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।” बिहार में जातीय गणना पूरी होने के बाद रिपोर्ट सरकार ने जारी कर दी है। इसके बाद यह पहला मौका है कि इन आंकड़ों को गलत बताते हुए कोई प्रदर्शन हो रहा है। हालांकि आंकड़ों पर सवाल उठाने वाले उपेंद्र कुशवाहा अकेले नहीं हैं। भाजपा के कई नेताओं ने भी आंकड़ों में गड़बड़ी का आरोप लगाया है।
जदयू ने दिया था जवाब
जातीय गणना के आंकड़ों पर पहले उपेंद्र कुशवाहा ने यह कहते हुए सवाल उठाया था कि उनकी और उनके परिवार के जाति की गणना नहीं हुई है। इसके बाद जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने अपनी ओर से एक डॉक्यूमेंट दिखाया, जिसके बाद आधार पर उनका दावा है कि उपेंद्र कुशवाहा और उनके परिवार की गणना हुई है। हालांकि उस डॉक्यूमेंट को लेकर भी कई सवाल हैं कि गोपनीय आंकड़ों वाले दस्तावेज जदयू नेता के पास कैसे हैं?
ताकत दिखाने की भी पहल!
वैसे उपेंद्र कुशवाहा जातीय गणना के विरोध के मामले में सभी दलों से अलग दिखते हुए सड़कों पर उतर गए हैं। उपेंद्र कुशवाहा के इस कदम को उनका शक्ति प्रदर्शन भी माना जा रहा है। उपेंद्र कुशवाहा अभी एनडीए में शामिल हो चुके हैं और वे लोकसभा चुनाव एनडीए में रहते हुए ही लड़ेंगे। ऐसे में सीटों के बंटवारे वे अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं कि उनकी हिस्सेदारी कम न हो।