रांची। जिसका वजूद खत्म होने को था वह नवरतन गढ़ फिर मुस्कराने की तैयारी में है। नवरतन गढ़ यानी देश देश की सबसे लंबी राजतंत्रीय व्यवस्था, नागवंशी राजाओं का राज कभी इसी किले से संचालित होता था। रांची से करीब 70 किलोमीटर दूर। रांची-गुमला रोड के सिसई प्रखंड में सड़क से करीब दस किलोमीटर भीतर, डोइसागढ़। यह कितने सालों तक शासन का केंद्र रहा और इसका निर्माण किसने और कब कराया इसे लेकर मतभेद है। एक मान्यता है कि करीब चार सौ साल पहले इसका निर्माण कराया गया था।
फणीमुकुट राय (ई.सन् 64 से 132) नागवंश के पहले राजा थे और लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव (1931-2014) अंतिम राजा। किवदंतियों के अनुसार फणीमुकुट पुंडरिका नाग के आश्रय में तालाब किराने मिले थे। तब बच्चे को सुतियांबे के मुखिया मदरा मुंडा के घर लाया गया। बाद में इनकी योग्यता के कारण इन्हें सुतियाम्बे की राजगद्दी पर बैठाया गया। सुतियाम्बे गढ़, चुटिया, खुखरागढ़, नवरतन गढ़, लालगढ़, रातु गढ़ इसकी राजधानी रही।
टूटे, ढहते, बिखरते राजप्रसाद के अवशेष
वरिष्ठ पत्रकार नवीन कुमार मिश्र कहते हैं कि किसी विरासती इमारत या ध्वंशावशेष में प्रवेश करते, घूमते और निकलते हुए अजीब सी टीस होती है। अनेकों सवाल मन में कौंधने लगते हैं। विरासत, संस्कृति, सभ्यता, उनकी भव्यता हमेशा आकर्षण का केंद्र रहे हैं तो टूटती हुई कड़ी बिखरते हुए अवशेष टीस की वजह। यहां यह सबकुछ महसूस हो रहा है।
भारत की सबसे लंबी राजतंत्रीय व्यवस्था में छोटानागपुर के नागवंशी राज का नाम है जिस का दुनिया की सबसे लंबी पांचवीं राजतंत्रीय व्यवस्था। कुछ इतिहासकार नागवंशी राज को दुनिया के सबसे लंबे राजतंत्र का श्रेय देते हैं। उसके शासन का केंद्र भी रतनगढ रहा। दो-तीन तरफ पहाड़ों से घिरे परिसर में। टूटे, ढहते, बिखरते राजप्रसाद के अवशेष।
खुदाई में मिले कमरे
कुछ माह पूर्व ही यहां सुरंग मिलने की खबर सामने आई थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण वालों ने खुदाई-सफाई की तो वह सुरंग, हॉल और कुछ कमरे दुनिया के सामने आए। वाल पुट्ठी की हुई दीवार की तरह चिकनी, सुर्खी चुना की दीवारें सतह के अवशेषों से बेहतर हालत में हैं। दीवारों पर मशाल-दिए केलिए बने ताखे अभी भी साबूत हैं। इतिहास, पुरातत्व, पर्यटन में दिलचस्पी रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए ये आकर्षण का यह केंद्र हो सकता है। अपने समय में जब यह शक्ति का बड़ा केंद्र था फिर लोग इसे इस तरह क्यों छोड़ गए होंगे सवाल है।
नौ मंजिल या पांच मंजिल, दिखता है सिर्फ तीन
बड़े से परिसर में जो सबसे ऊंचा खंडहर नुमा भवन दिख रहा है वह मंदिरों, मठों के बीच, उसके बारे में कहा जाता है कि राज परिवार के रहने का ठिकाना था। नौ मंजिल का। अब तो तीन मंजिल ही दिखता है। संभव है शेष भूमिगत हो, या ऊपर के कुछ हिस्से टूट गये हों। हर तल पर नौ कमरे थे। मोटी दीवारों वाले हवादार। छोटानागपुर के प्राचीन अवशेष पुस्तक में डॉ भुवनेश्वर अनुज ने लिखा है कि इतिहासकारों के अनुसार डोइसागढ़ पांच तल्ला था और प्रत्येक तल्ले में नौ-नौ कमरे थे।
रांची गजेटियर भी इसकी पुष्टि करता है लेकिन दंतकथा है कि यह नौ तल्ला था जिसमें से छह तल्ला जमीन में धंस गया। परिसर में अनेक ढह चुके, ढह रहे भवनों के अवशेष भी दिखेंगे। इनके बारे में कहा जाता है कि कपिलनाथ मंदिर, भैरव मंदिर, रानी लुकाई, कमल सरोवर रहे। काफी पहले राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के बाद 2018 में नवरतन गढ़ को वल्ड हेरिटेज की सूची में शामिल किया गया है। इसके बावजूद समय पर इसपर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया। भवन खंडहर बनते गये।
खुखरागढ़ से नवरतन गढ़ फिर पालकोट
पहले खुखरागढ़ नागवंशी राजाओं की राजधानी थी। 1615 की बात है दुर्जनशाल का शासन था उन्होंने मुगलों की अधीनता से इनकार किया, मालगुजारी देने से मना कर दिया। तब नाराज मुगल शासक जहांगीर ने अपने सेनापति इब्राहिम खां के नेतृत्व में सैनिकों को भेज खुखरागढ़ पर हमला कर दुर्जनशाल को गिरफ्तार कर लिया। ग्वालियर के किले में उन्हें कैद कर लिया गया।
दुर्जनशाल के बारे में माना जाता है कि वे हीरा के बड़े पारखी थे और इसी हुनर से उनकी जान बची। ग्वालियर में करीब 12 साल की कैद के बाद जहांगीर के दरबार में किसी मौके पर हीरे की परख का चमत्कार दिखाया तो जहांगीर इतना प्रसन्न हुआ कि दुर्जनशाल को कैद से मुक्ति दे दी। उसके बाद दुर्जनशाल ने सिसई के इसी डोइसागढ़ में किला यानी नवरतन गढ़ का निर्माण कराया, राजधानी घोषित कर यहीं से शासन संचालित करने लगा।
निर्माण पर विवाद
नवरतनगढ़ के निर्माण को लेकर गहरा विवाद है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रांची प्रमंडल द्वारा यहां लगाये गये बोर्ड में जिक्र है कि नागपुरिया नागवंशावली के अनुसार नागवंश के 49 वें शासक महाराज रघुनाथ शाह ने 18 वीं सदी के प्रारंभ में इन भवनों और मंदिरों का निर्माण कराया था। दूसरी परंपरा के अनुसार नागपुरिया नागवंशावली के 45 वें राजा दुर्जनशाल ने 17 वीं शताब्दी के मध्य में इनका निर्माण करवाया था। दोनों परंपराओं के अनुसार नागवंशी शासक इस स्थान पर बहुत कम समय तक रुके और अपनी राजधानी पालकोट स्थानांतरित कर दी।
वहीं डाक्टर भुवनेश्वर अनुज ने अपनी पुस्तक ”छोटानागपुर के प्राचीन स्मारक” में लिखा है कि गढ़ के निर्माण के संबंध में गहरा विवाद है। वास्तव में छोटनागपुर का कोई लिखित इतिहास नहीं है। नागवंशावली के अनुसार डोइसागढ़ का निर्माण नागवंशी राजा बैरीशाल ने कराया था और 14 वर्षों तक शासन किया। बैरीशाल 45 वां राजा थे तथा इनका शासनकाल 1512 से 1530 (इतिहास से मेल नहीं खाता है) तक माना जाता है।
अनुज ने लिखा है कि रांची गजेटियर के अनुसार डोइसागढ़ काम्प्लेक्स का निर्माण काल 1687 से 1711 ई माना गया है। अगर इसे माना जाये तो नागवंशावली कुर्सीनामा के अनुसार रघुनाथ शाही शासक थे। मेजर डेयरी के अनुसार छोटानागपुर के राजा रघुनाथ शाही ने डोइसागढ़ का निर्माण 18 वीं शताब्दी में कराया था।
कुछ लोगों का कहना है कि इसका निर्माण राजा दुर्जनशाल के शासनकाल में हुआ था और कुछ ही वर्षों तक यहां राजधानी रखी गई और फिर इस गढ़ का परित्याग कर दिया गया। तथा यहां से राजा अपनी राजधानी पालकोट ले गये। पालकोट में राजधानी 1664 ई के आसपास बनी थी ऐसा बताया जाता है। पीटर शांति नवरंगी, एसजे ने छोटानागपुर का संक्षिप्त इतिहास में लिखा है कि डोइसागढ़ का निर्माण 1683 ई में प्रारंभ हुआ और यह 1711 में बनकर तैयार हुआ।
बैरीशाल का कार्यकाल 1609 से प्रारंभ होता है
डॉ कुमार सुरेश सिंह ने बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन में राजा दुर्जनशाल द्वारा 1711 में गढ़ के निर्माण का उल्लेख किया है। अनुज ने आगे लिखा है कि …… बेनीराम की नागवंशावली में बैरीशाल को इनाम मिलने की बात कही गई है। इसका अर्थ है कि दुर्जनशाल के पिता बैरीशाल ने डोइसागढ़ का निर्माण प्रारंभ कराया और दुर्जनशाल ने इसे पूर्ण कराया। बैरीशाल का कार्यकाल 1609 से प्रारंभ होता है और इन्होंने 30 साल तक राज किया।
बैरीशाल के बाद दुर्जनशाल ने शासन संभाला। जहांगीर ने 1616 ई में आक्रमण कर दुर्जनशाल को पराजित कर उनके पास के हीरे और 23 हाथियों के साथ उन्हें दिल्ली ले गया। दुर्जनशाल को 12 साल ग्वालियर के महल में कैद किया गया और मुगल बादशाह ने दुर्जनशाल को 6 हजार रुपये मालगुजारी देने का आदेश दिया। दुर्जनशाल रिहा होने के बाद अपने साथ भवन निर्माण करने वाले कारीगरों को साथ लेकर आये थे।
क्या है परिसर में
पुरातत्व सर्वे के बोर्ड के अनुसार नवरतन गढ़ परिसर में 10 मुख्य संरचनाएं हैं। जगन्नाथ मंदिर, रानी लुकाई मंदिर, कमल शाही महल एवं समीपस्थ मंदिर, योगी मठ, शाही सरोवर, शाही महल, लोहू थोपा मठ, शैलकृत योनिपीठ के साथ शिवलिंग, शैलकृत भगवान गणेश की प्रतिमा, जगन्नाथ मंदिर-2 । इसके स्थापत्य में उत्तर मुगलकालीन वास्तुकला के साथ-साथ राजपूत एवं स्थानीय निर्माण शैली का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। मंदिरों में उड़ीसा एवं बंगाल के मंदिर निर्माण की प्रांतीय शैलियों के प्रभाव को भी देखा जा सकता है। जगन्नाथ मंदिर में दो अभिलेख हैं, पहले अभिलेख के अनुसार राजकीय धर्म गुरू हरिनाथ के द्वारा 1683 ईस्वी सन् में निर्मित यह मंदिर भगवान जगन्नाथ को समर्पित था। दूसरे अभिलेख के अनुसार राजा रघुनाथ ने 1683 ईस्वी सन् में भगवान श्रीकृष्ण के इस मंदिर का निर्माण कराया गया था।
अंतराष्ट्रीय धरोहर की सूची में शामिल
बहरहाल राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय धरोहर की सूची में शामिल होने के बावजूद यहां की सरकारों ने खंडहर होते इस विरासती भवन पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया। यह पूरी तरह जमींदोज ही होने वाला था। मगर अंतिम मुकाम पर पहल हुई। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण इसे बचाने में जुट गया है। बीते कुछ माह से पुनरुद्धार का काम शुरू हुआ है। यह मानक के अनुसार हो और लोग भी अपनी थाती से जुड़ें। पर्यटकीय महत्व के रूप में स्थापित होगा तो लोग भी आएंगे कुछ स्थानीय लोगों केलिए भी अवसर पैदा हो सकता है।