गांव में नहीं है उच्च विद्यालय, प्रखंड मुख्यालय भी 25 किमी है दूर
HAZARIBAGH : वैसे तो केंद्र और राज्य सरकार विकास के तरह-तरह की दावे करती है लेकिन उन दावों की जमीनी हकीकत ठीक उसके विपरित है। इसी का नतीजा है कि ग्रामीण स्तर पर न तो ठीक से सड़क और स्वास्थ्य की व्यवस्था हो पाई है और ना ही शिक्षा की। ऐसी ही एक तस्वीर चतरा जिले से सामने आई है। जहां गांव में हाई स्कूल नही होने के कारण चतरा-हजारीबाग सीमा से सटे केरेडारी प्रखंड के लोहरा गांव के दो दर्जन से अधिक बच्चे बरसात के दिनो में नदी पार कर चतरा जिले के टंडवा प्रखंड क्षेत्र के उत्क्रमित उच्च विद्यालय हेसातु में पढ़ने के लिए जाते हैं।
नक्सल प्रभावित ईलाके की वजह से गांव मे विकास की रफ्तार काफी धीमी
केरेडारी प्रखंड का लोहरा गांव और टंडवा प्रखंड का हेसातु गांव दोनो ही घने जंगलो से घिरे नक्सल प्रभावित इलाको मे आता है। लिहाजा दोनो गांवों मे विकास की रफ्तार काफी धीमी है। ऐसे में आम दिनो मे बच्चो को घने जंगलो को तो पार करके पढ़ने के लिए जाना ही पड़ता है लेकिन बरसात के दिनो में उनकी मुश्किलें दोगुनी बढ़ जाती है। एक तो घने जंगल और ऊपर से बरसात के कारण गहरे पानी से भरे नदी को पार करना, इनके लिए न जाने कब आफत बन जाए। लेकिन फिर भी शिक्षा का जुनून ऐसा कि इन दोनो आफतो को पार कर दो दर्जन से अधिक बच्चे और बच्चियां स्कूल पहूंचती है। बरसात के दिनो मे नदी को पार करने में कपड़े तो भींग जाते हैं ऐसे मे बच्चे कपड़े के दुसरे सेट को भी अपने साथ बैग में डालकर साथ चलते हैं और फिर नदी पार करते हीं उसे बदलकर स्कूल चले जाते हैं। इस दौरान कभी-कभार लगातार बारिश होने कारण उनका ड्रेस भी नही सूखता जिसके कारण भींगे हुए ड्रेस को ही पहनकर स्कूल में जाना पड़ता है। तो कभी कभार लगातार बारिश होने के कारण या तो स्कूल नहीं जाते या फिर स्कूल में जाने के बाद तेज बारिश होने के कारण किसी के घर में रुकना पड़ता है।
गांव से तकरीबन 15 किलोमीटर की दूरी पर हाई स्कूल
नदी पार कर स्कूल जाने वाली बच्चियां बताती है कि देश के प्रधानमंत्री बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देते हैं, लेकिन नदी में पुल और गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं होने के कारण ना तो बेटी सुरक्षित है और ना ही पढ़ पा रही है। छात्राएं बताती है कि गांव में आठवीं कक्षा तक का स्कूल तो है लेकिन उसके बाद की पढ़ाई करने के लिए गांव से तकरीबन 15 किलोमीटर की दूरी में हाई स्कूल है। ऐसे मे गांव में यातायात का कोई समुचित साधन भी नहीं है जिसके कारण गांव से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी मे संचालित उत्क्रमित उच्च विद्यालय हेसातु उनके लिए नजदीक तो है लेकिन सड़क और पुल नहीं होने के कारण मुश्किलों से भरा है।
बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ने के लिए स्कूल में आते हैं : शिक्षक
विद्यालय के शिक्षक भी बताते हैं कि बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ने के लिए स्कूल में आते हैं। वे बताते हैं कि गांव के बच्चे जब विद्यालय से घर के लिए निकलते हैं तो हम लोगों को यह चिंता सताए रहती है कि बीच रास्ते में बच्चों के साथ किसी तरह की कोई अनहोनी नहीं हो जाए। शिक्षकों का कहना है कि जिस पगडंगी के सहारे लोहरा गांव के बच्चे विद्यालय में पढ़ने आते हैं उस पर सड़क और पूल का निर्माण हो जाता तो उस गांव में बच्चे अधिक शिक्षित होते। वे बताते हैं कि गांव में हाई स्कूल के नहीं होने के कारण अधिकांश बच्चे आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं। ऐसे में सरकार के शिक्षित और जागरूक गांव के सपने भी अधूरे रह जाते हैं।
ग्रामीणों को बच्चों को पढ़ाई के लिए स्कूल भेजने में लगता है डर
वहीं गांव के ग्रामीण बताते हैं कि हमारा गांव हजारीबाग जिले में तो जरूर है लेकिन प्रखंड मुख्यालय की दूरी 25 किलोमीटर होने के कारण हमारी दिनचर्या चतरा जिले के टंडवा प्रखंड से ही चलती है। ऐसे में हमारे बच्चों को स्कूल जाना भी यही नजदीक होता है। लेकिन गांव को जोड़ने वाली कच्ची सड़क में पक्की सड़क और नदी पर पुल के नहीं होने के कारण खासकर बरसात के दिनों में बच्चो को पढ़ाई के लिए स्कूल भेजने में डर लगता है। वहीं गांव की महिलाएं बताती है कि अगर किसी महिला को प्रसव के लिए ले जाना होता है तो केरेडारी के बजाए टंडवा प्रखंड के मिश्रौल अथवा अन्य जगहों पर जाना आसान होता है। गांव के ग्रामीण सरकार और जिला प्रशासन से दोनों गांवों को जोड़ने वाली पगडंडी वाली सड़क पर पक्की सड़क और पुल निर्माण की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है सड़क और पुल के बनने से शिक्षा,स्वास्थ्य और रोजगार में ग्रामीणों को सहुलियत मिलेगी।
बहरहाल सरकार और जिला प्रशासन लोहरा गांव के इस सड़क और पुल वाली समस्या पर सरकार को गंभीर होना चाहिए ताकि न सिर्फ गांव के बच्चे और बच्चियां सुरक्षित स्कूल तक पहुंचकर बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सके बल्कि सरकार के शिक्षित और संपन्न गांव के सपने को भी साकार किया जा सके।