RANCHI : सीवियर एक्यूट मालन्यूट्रीशन के प्रबंधन के लिए रिम्स में स्थापित स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (SCoE-SAM), द्वारा दो दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला किया गया। अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने कहा कि 73% ग्रामीण आबादी तक मानक सुविधाएं भी नहीं पहुंच रही है। ऐसे में बच्चों में कुपोषण और जन्म दोष स्वाभाविक है। इसलिए मातृ और शिशु देखभाल इकाइयों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना महत्वपूर्ण है। ये सेवाएं माताओं और बच्चों दोनों के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने कहा, यदि हम शिशुओं और माताओं की शुरुआती दौर में ही देखभाल करने में सक्षम होते हैं तभी भविष्य में अपने नागरिकों की देखभाल कर सकेंगे। मौके पर रिम्स चिकित्सा अधीक्षक डॉ हीरेन्द्र बिरुआ, राजेश प्रजापति, संयुक्त सचिव, महिला, बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा विभाग व रिम्स के शिशु रोग विभाग के चिकित्सक मौजूद थे।
स्वास्थ्य सेवा में कमियों को दूर करेंगे
उन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न पहलुओं में व्यापक सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जैसे स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच, स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण, आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति की उपलब्धता और देखभाल के लिए समग्र मानक। इन मुद्दों को संबोधित करके, आदिवासी समुदाय का उत्थान करना और स्वास्थ्य सेवाओं में मौजूदा कमियों को दूर करना मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे कार्यक्रमों की समीक्षा कर प्रतिक्रिया लेना आवश्यक है ताकि जरुरत के अनुसार वहां की जनता के लिए कार्यक्रम का सूत्रीकरण हो सके। बीरेंद्र प्रताप सिंह, मुख्य निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं ने कहा की स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके हमे उस ओर ध्यान केंद्रित करने की जरुरत है। साथ ही उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ तभी मिलेगा जब ज्ञान और प्रयास का समिश्रण होगा।
कम उम्र में विवाह से एनीमिया
डॉ कनिका मित्रा, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, UNICEF ने अपने सम्बोधन में झारखण्ड में किशोर लड़कियों की कम उम्र में विवाह के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि इससे एनीमिया की कमी हो सकती है और जल्दी गर्भधारण भी हो सकता है। जिसके परिणामस्वरूप शिशु मृत्यु दर बढ़ सकता है। उन्होंने कहा, हमारे लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सभी महिलाओं की देखभाल की गुणवत्ता पर ध्यान देने के साथ-साथ पर्याप्त प्रसवपूर्व देखभाल और सेवाएं प्राप्त हों।
झारखंड में अब भी अधिक कुपोषण
गौरतलब है की सरकार के केंद्रित प्रयासों से तीव्र कुपोषण वाले बच्चों के अनुपात को 2015-16 में 29% से 2019-21 में 22% तक लाने में सफलता मिली है। इसी अवधि में नाटे बच्चों का अनुपात 45.3% से घटकर 39.6% हुआ है। बच्चों में गंभीर तीव्र कुपोषण का प्रसार 2015-16 में 11.4% से घटकर 2019-21 में 9.1% हो गया है। लेकिन पोषण संबंधी आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में कुपोषण अभी भी अधिक है और 6 महीने से कम उम्र के शिशुओं में सीवियर एक्यूट मालन्यूट्रीशन की समस्या तेजी से सामने आ रही है।
6 महीने से कम के बच्चों पर ध्यान जरूरी
झारखंड के आंकड़ों से पता चलता है कि 6 महीने से कम उम्र के शिशुओं में वेस्टिंग और ग्रोथ फेलियर का प्रसार सबसे अधिक है जो 32% है। इसलिए 6 महीने से कम उम्र के शिशुओं पर ध्यान देने के साथ इसकी रोकथाम, प्रारंभिक पहचान और प्रबंधन के लिए कार्यक्रमों और योजनाओं को मजबूत करना अतिआवश्यक है। इस संदर्भ में, कार्यशाला के दौरान राज्य में सुविधा और सामुदायिक स्तर दोनों पर जोखिम वाले शिशुओं में प्रारंभिक विकास विफलता/पोषण को संबोधित करने के लिए प्रमुख रणनीतियों और कार्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया जायेगा| इस कार्यशाला में सभी राजकीय मेडिकल कॉलेजों के फैकल्टी, विशेषज्ञ, शिक्षाविद और विकास भागीदार हिस्सा ले रहे हैं।