स्वर्णरेखा नदी के प्रदूषण पर सांसद सेठ ने सदन में जताई चिंता
RANCHI : स्वर्णरेखा नदी के प्रदूषित होने और उसे स्वच्छ करने का मामला सांसद संजय सेठ ने शून्य काल के दौरान लोकसभा में उठाया। सांसद ने कहा कि मेरे लोकसभा क्षेत्र के नगड़ी नामक स्थान से नदी स्वर्णरेखा निकलती है। जो राँची शहर से होकर गुजरती हुई जमशेदपुर होते हुए सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती है। 474 किलोमीटर लंबी इस नदी को झारखंड की लाईफलाइन भी कहा जाता है।
सांसद सेठ ने कहा कि झारखंड की प्राचीन संस्कृति में इस नदी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। राँची में चुटिया नामक स्थान में स्वर्णरेखा नदी एक सहायक नदी हरमू से आकर मिलती है। इस संगम पर करीब 500 वर्ष पुराने नागवंशीकालीन 21 शिवलिंग नदी के चट्टानों में उत्कीर्ण है। कभी नागवंशी राजाओं की राजधानी रही चुटिया में यह सांस्कृतिक अवशेष एक जीवंत और धनाढ्य संस्कृति की कहानी कहती है।
संजय सेठ ने कहा कि गैर योजना से तेजी से बढ़ते शहरीकरण ने इसकी सहायक नदी हरमू को एक नाले में बदल कर रख दिया। नदियों के किनारे अतिक्रमण और शहर भी के सीवरेज सिस्टम का गंदा पानी अब स्वर्णरेखा भी तेजी से प्रदूषित हो रही है। दिल्ली की यमुना नदी से भी खराब स्थिति इसकी हो चुकी है। इन दोनों नदियों के संगम स्थल के बाद से स्वर्णरेखा बिल्कुल काली पड़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि आज से 10-15 साल पूर्व तक हजारों की संख्या में छठव्रती अर्घ्य देते थे, वहीं कार्तिक पूर्णिमा में यहां आयोजित मेले में स्नान और दरिद्रनाराण भोजन करने दूर दूर से लोग आते थे। हरेक घर से एक एक मुट्ठी चावल और दाल लेकर प्रसाद बनाया जाता था, जो सामाजिक समरसता का अनुपम उदाहरण था। लेकिन नदी के प्रदूषित होने के कारण लोगों ने इस नदी से खुद को दूर कर लिया, अब छठ और कार्तिक पूर्णिमा दोनों में श्रद्धालुओं की संख्या काफी कम हो गई है। नदी की चट्टानों में उत्कीर्ण 21 शिवलिंग भी तेजी से क्षरण हो रहे हैं।
सांसद ने सदन में कहा कि अगर समय रहते इस नदी को प्रदूषण से नहीं बचाया गया, तो जल्द ही यह महत्वपूर्ण नदी एक नाला बनकर रह जाएगी। अतः सरकार से आग्रह है कि उक्त नदी और विस्मृत होते यहां के सांस्कृतिक धरोहर को बचाने की दिशा में आवश्यक कार्रवाई की जाए।