हूल दिवस आज मनाया जा रहा है। आज ही के दिन अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल 1855 में फूंका गया था। उस समय अंग्रेजों के खिलाफ हूल का नेतृत्व झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह गांव के मुर्मू कबीले के चार भाइयों सिदो, कान्हो, चांद, भैरव और उनकी दो बहनें फूलो-झानो ने किया था। आज राज्यभर में उन्हें बलिदान के लिए याद किया जा रहा है। कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे है। इस बीच झारखंड के पूर्व डीजीपी रहे नीरज सिन्हा ने लिखा कि हूल (मुक्ति) की भूमि साहिबगंज से होने पर गर्व है।
साथ ही उन्होंने लिखा कि कैसे 1793 में कॉर्नवालिस द्वारा शुरू किए गए ‘स्थाई बंदोबस्त’ के तहत जमींदार बनाने के लिए, अंग्रेजों ने संथाल किसानों की जमीन किसी ऐसे व्यक्ति को नीलाम कर दी, जो उन्हें निश्चित राजस्व की गारंटी देगा। संथाल के किसानों ने भूमि पर अपना अधिकार खो दिया। इसके अलावा, जमींदारों को नगद भुगतान करना पड़ता था। संथाल किसानों को साहूकारों से बहुत ऊंची ब्याज दरों पर पैसा उधार लेना पड़ता था और वे सूदखोरी के दुष्चक्र में फंस जाते थे।
संताल के किसान विद्रोह पर उतरे
परिणामस्वरूप, 1855 के हूल (मुक्ति) में संताल किसान विद्रोह पर उतर आए। हूल का नेतृत्व झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह गांव के मुर्मू कबीले के चार भाइयों-सिदो, कान्हो, चांद, भैरव और उनकी दो बहनें फूलो-झानो ने किया था। संथाल योद्धाओं ने राजमहल पहाड़ियों (झारखंड में) से लेकर भागलपुर जिले (बिहार में) से वीरभूम (पश्चिम बंगाल में) तक फैले भूमि के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। संथाल भयंकर योद्धा थे, लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की अत्याधुनिक आग्नेयास्त्रों के सामने उनके पास कोई मौका नहीं था। सिदो और कान्हो सहित लगभग 20,000 संथाल किसानों को अंग्रेजों ने मार डाला। यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। इसके बाद 1857 आया।