कुछ दिनों पहले ही शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में प्रतिनियुक्त नहीं करने का निर्देश दिया। चिट्ठी के मुताबिक शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में प्रतिनियुक्त कर देने की वजह से विद्यालय की शैक्षणिक व्यवस्था बिगड़ जाती है। शिक्षा व्यवस्था ठीक से चलती रहे, इसीलिए सभी शिक्षकों का प्रशिक्षण अविलंब खत्म करने का निर्देश दिया गया था। वहीं दूसरी ओर केके पाठक ने शिक्षकों से जनगणना करवाने को लेकर कोई आपत्ति जाहिर नहीं की। बल्कि चिट्ठी निकाल कर शिक्षकों को जनगणना में हिस्सा लेने की अनुमति दे दी। उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि बस इस बात का ख्याल रखा जाए की शिक्षकों की ड्यूटी लगाते समय बस इस बात का ध्यान रखा जाए की कोई भी विद्यालय पूरी तरह शिक्षक विहीन ना हो जाए।
ये दोहरा मापदंड नही तो और क्या है?
टीईटी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमित विक्रम एवं प्रदेश महासचिव बलवंत सिंह ने संयुक्त रूप से कहा कि अब सवाल यह है कि जो केके पाठक अभी कुछ दिनों पहले ही शिक्षकों को बीएलओ प्रशिक्षण में भी जाने की अनुमति नहीं दे रहे थे, अब जातीय जनगणना में जाने की अनुमति कैसे दे दी? उनका कहना था कि शिक्षकों से शैक्षणिक कार्य के अलावा और किसी भी प्रकार का कार्य नही करवाना चाहिए। तो क्या जनगणना शैक्षणिक कार्य है? एक तरफ शिक्षा विभाग शिक्षकों के साथ इतनी कड़ाई से पेश आ रहा है ताकि विद्यालय का काम ससमय सुचारू ढंग से चल सके दूसरी तरफ उनसे अन्य काम भी करवाए जा रहे। अगर शिक्षक अन्य कामों में अपना समय देंगे तो बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर जरूर पड़ेगा। फिर आगे चलकर उसके लिए भी शिक्षकों को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा।