कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसकी आहट भर से जीवन की डोर थमने लगती है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम रिपोर्ट 2020 के अनुसार, देश में कैंसर के 14 लाख से अधिक मामले हैं। यह आंकड़ा 2025 तक 15.7 लाख तक पहुंच सकता है। लेकिन इस बीमारी के हो जाने पर क्या किया जाए, यह कोई नहीं बताता। प्रसिद्ध हिंदी पत्रकार हैं रवि प्रकाश। जो पिछले सवा साल से लंग्स कैंसर के चौथे स्टेज में हैं। रवि प्रकाश बतौर पत्रकार काम अभी भी कर रहे हैं और कैंसर को लेकर उनकी अलग राय है। उनका कहना है कि बीमारी को बीमारी की तरह ही लें। कैंसर युद्ध भी नहीं है, जो इसमें जीत या हार हो। हम बस इसका इलाज कराते हैं। दूसरी बीमारियों की तरह ही। अगर शरीर में कोशिकाएं हैं, तो उनमें कैंसर भी पनप सकता है। यह समझना आसान है। इसे समझने की जरुरत है।
कैंसर को लिखा पत्र
रवि प्रकाश ने अपने सोशल मीडिया वॉल पर कैंसर को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने कैंसर को शुक्रिया तक कह दिया है। किसी को ये अतिरेक लग सकता है लेकिन रवि प्रकाश, जो खुद कैंसर को जी रहे हैं उनके नजरिए से समझना सबसे अधिक व्यवहारिक होगा। हम इस पत्र को पब्लिश कर रहे हैं, जिससे कैंसर को समझने का आपका नजरिया अलग हो सकता है।
रवि प्रकाश का कैंसर के नाम पत्र
प्रिय कैंसर,
तुम्हारे साथ रहते हुए क़रीब सवा साल गुजर गए। कुछ दिनों के असहनीय कष्टों को भूल जाएँ, तो बाक़ी के महीने शानदार रहे। इसकी वजह तुम हो। तुम्हारे कारण मैंने अपने लिए वक़्त निकालता सीखा। हमने अपने हर दुख के बीच छिपी बहुसंख्य ख़ुशियाँ तलाशनी शुरू कर दी। इन ख़ुशियों ने हमें बीमारी के शोक से बाहर आने का रास्ता दिखाया। तुम कितने अच्छे हो। तुम्हारा शुक्रिया। तुमने मेरी ज़िंदगी बदल दी है।
‘कीमोथेरेपी के 21 सत्र’
अब तक कीमोथेरेपी के 21 सत्र पूरे हो चुके है। साइड इफ़ेक्ट के ग्रेड 2 में पहुँच जाने के कारण टारगेटेड थेरेपी 10 दिनों के लिए रोकी गई है। 22 तारीख़ से वह फिर से शुरू हो जाएगी। ये दोनों थेरेपीज चलती हैं, तो आत्मविश्वास बना रहता है। लगता है कि तुम अपना और हम अपना काम कर रहे हैं। काम करने की यह फ़्रीक्वेंसी बनी रहे, तो तुम्हारे साथ कुछ और साल गुज़ारने का मौक़ा मिल सकता है। मुझे भरोसा है कि तुम नाउम्मीद नहीं करोगे। हम कई और साल साथ गुज़ारेंगे।
‘कीमोथेरेपी का शतक बनाना है’
मैं दरअसल कीमोथेरेपी का शतक बनाना चाहता हूँ। ताकि, आने वाले वक्त में लोग कहें कि कीमोथेरेपी से क्या डरना। देखो उसने तो 100 या उससे अधिक बार कीमोथेरेपी ली। कैंसर के दूसरे मरीज़ों का विश्वास इस उदाहरण से और पुख़्ता हो कि कीमो सिर्फ़ एक थेरेपी है, किसी को तकलीफ़ में डालने की क़वायद नहीं। इसी तरह टारगेटेड थेरेपी उस म्यूटेशन को टारगेट करती है, जिसके कारण हमारे शरीर में कैंसर की कोशिकाएँ पलल्वित होती हैं। कैंसर का इलाज कराने के दौरान डॉक्टर्स से हुई बातचीत और कैंसर से संबंधित कई किताबों को पढ़ने के बाद मैं लिख सकता हूँ कि कीमोथेरेपी व टारगेटेड थेरेपी की ही तरह इम्यूनोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, सर्जरी या इलाज की दूसरी मानक पद्धतियाँ भी हमें ठीक करने (क्यूरेटिव) या ठीक रखने (पैलियेटिव) के लिए हैं। तकलीफ़ में डालने के लिए नहीं। भारत सरकार ने इन तरीक़ों की स्वीकृति कई मरीज़ों पर किए गए क्लिनिकल ट्रायल्स के बाद दी है। इसलिए इनपर संदेह की गुंजाइश नहीं बचती। मैंने यह समझा है कि कैंसर का इलाज दरअसल एक मेडिकल प्रोटोकॉल है, इसका पालन करना ही चाहिए।
‘दोषी नहीं है कैंसर’
प्रिय कैंसर, तुम तो यह सारी बातें जानते-समझते हो। तुम हमारे शरीर में आए भी तो इसमें तुम्हारा क्या दोष। शरीर के जीन्स में कुछ नए म्यूटेशंस हुए और हमारी कुछ कोशिकाएँ तुम पर आसक्त हो गईं। बस इतनी-सी कहानी है। लिहाज़ा, मैं तुम्हें दोषी नहीं मानता। मैं तो तुम्हारा एहसानमंद हूँ, क्योंकि तुमने जीने का तजुर्बा दिया है। ये अच्छा हुआ कि तुम चुपके से आए। जब तुम्हारे आने की मुनादी हुई, तबतक स्टेज 4 था। मेडिकल की भाषा में इसे कैंसर का अंतिम स्टेज कहते हैं। अब मैं चाहकर भी सर्जरी नहीं करा सकता। तुम मेरे साथ ही रहोगे।
‘ उदाहरण बनना है, बशर्ते तुम मेरा साथ दो’
मशहूर अमेरिकी साइक्लिस्ट लांस आर्मस्ट्रांग जैसे कई लोगों के साथ तुम चौथे स्टेज में भी लंबा साथ निभा रहे हो। स्टार भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह और बॉलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोईराला भी कैंसर के चौथे स्टेज से बाहर आई हैं। मेरे और इनमें सिर्फ़ इतना फ़र्क़ है कि इन सबका ऑपरेशन संभव था। इसलिए उनलोगों ने सर्जरी कराकर तुम्हें बाय कर दिया। लेकिन, तुम मेरे फेफड़ों में हो। मैं सर्जरी नहीं करा सकता। तुम्हारे साथ ही रहना है अब। सो, मैंने पहले ही दिन तुम्हें दोस्ती का प्रस्ताव दिया, प्रेम प्रस्ताव दिया और तुम मान गए। हम सवा साल से साथ हैं। इस साथ को यथासंभव लंबा रखना है। उदाहरण बनाना है। उदाहरण बनना है। बशर्ते तुम मेरा साथ दो। क्योंकि, मेरे साथ कुछ और लोग भी रहते हैं। उनके वास्ते तुमसे कुछ वक्त की गुज़ारिश है।
अभी के लिए बस इतना ही। यह खतो-खितावत यदा-कदा चलती रहेगी।
तुम्हारा
रवि प्रकाश
साभार : रवि प्रकाश, वरिष्ठ पत्रकार