सामान्यत: किसी आदमी की उम्र अधिकतम सौ-सवा सौ साल होती है। अगर किसी की उम्र सैकड़ों या हजारों साल हो आपका चौंकना स्वाभाविक है। महावतार बाबा जी की उम्र वही है। कहा जाता है कि बाबा जी के लिए भूत, वर्तमान, भविष्य आदि समय की परस्पर संबंधित अवस्थाओं का अस्तित्व नहीं है। धरती पर क्रिया योग के प्राचीन विज्ञान को पुन: आरंभ करने वाले महावतार बाबा जी के बारे में उनके अनुयायी मानते हैं कि वे हिमालय की कंदराओं में आज भी जीवित हैं, सशरीर। उनके बारे में अवधारणा है कि उनकी उम्र सैकड़ों या हजारों साल है मगर आज भी 25 साल के चिर युवा की तरह दिखते हैं। बाबा जी ने क्रिया योग के रहस्य को लाहिड़ी महाशय को बताया जिसे उन्होंने श्री युक्तेश्वर जी को प्रदान किया।
महावतार बाबा जी से योगानंद जी की मुलाकात 1920 में हुई थी
रांची में 1917 में योगदा सत्संग की स्थापना करने और दुनिया को क्रिया योग से अवगत कराने वाले परमहंस योगानंद जी को उनके गुरू श्रीयुक्तेश्वर जी से क्रिया योग का ज्ञान प्राप्त हुआ था। चमत्कार यह भी कि महावतार बाबा जी से योगानंद जी की मुलाकात 1920 में हुई थी। उनसे कहा था कि ”तुम्हें ही मैंने पााश्चात्य जगत में क्रिया योग के संदेश का प्रचार प्रसार करने के लिए चुना है।” जबकि 1895 में देह त्यागने वाले लाहिड़ी महाशय की पहली बार 1861 में मुलाकात हुई थी। योगानंद जी के गुरू श्रीयुक्तेश्वर जी की भी कुंभ में बाबाजी से मुलाकात हुई थी। लाहिड़ी महाशय बिहार के दानापुर में सरकार के मिटरी इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत थे और 1861 में अचानक उनका तबादला हिमालय की तराई में रानी खेत कर दिया गया, वहां सेना का कैंप स्थापित किया जा रहा था।
पुस्तक में बाबा जी के एक से एक चमत्कारिक किस्से दर्ज हैं
वहीं बाबा जी से उनकी मुलाकात हुई। हालांकि बाबा जी के जन्म स्थान या परिवार के बारे में किसी को कुछ ज्ञात नहीं है। मगर बाबा जी के बारे में कहा जाता है कि वे किसी भी भाषा में आसानी से बोल लेते हैं। बाबा जी के बारे में पहली बार 1946 में ‘ऑटो बायोग्राफी ऑफ ए योगी’ के माध्यम से ही सर्व साधारण को जानकारी मिली। इस पुस्तक में बाबा जी के एक से एक चमत्कारिक किस्से दर्ज हैं।
रेणुका राणे के लिखती हैं कि, ऐसा कहा जाता है कि एक अवतार सर्वव्यापक ब्रह्म में निवास करता है। वह देश-काल के सातत्य से परे होता है; उसके लिए भूतकाल, वर्तमानकाल, और भविष्यकाल की कोई सापेक्षता नहीं होती है। उसकी जीवन्त उपस्थिति — दिव्यता की एक अमर अभिव्यक्ति — मानवीय बोध के परे होती है। अमर योगी, श्री श्री महावतार बाबाजी मानवजाति के एक ऐसे ही उद्धारक हैं जो अनेक शताब्दियों से जनमानस की दृष्टि से दूर रहकर अत्यंत विनम्रतापूर्वक पृष्ठभूमि में अपना कार्य कर रहे हैं।
इस संसार में महावतार बाबाजी को प्रमुख रूप से श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा लिखित उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक पुस्तक योगी कथामृत में सम्मिलित विवरणों के माध्यम से जाना जाता है। वे विश्व के सभी वर्तमान क्रियायोगियों के परमगुरू हैं और अत्यंत उदारतापूर्वक उनके आध्यात्मिक प्रयासों का मार्गदर्शन करते रहते हैं। अन्धकार युगों में प्राचीन क्रियायोग प्रविधि के लुप्त हो जाने के पश्चात् बाबाजी ने ही पुनः उसे प्रकट कर परिष्कृत किया था।
आधुनिक युग में क्रियायोग विज्ञान का पुनरुत्थान
क्रियायोग की यात्रा 150 वर्षों से भी अधिक पूर्व सन् 1861 में रानीखेत (उत्तराखंड) के निकट हिमालय की एक गुफ़ा से प्रारम्भ हुई थी, जहां बाबाजी ने श्री श्री लाहिड़ी महाशय को इस पवित्र विज्ञान की शिक्षा प्रदान की थी। इस अवसर पर बाबाजी ने कहा था, “इस 19वीं शताब्दी में विश्व को मैं जो क्रियायोग तुम्हारे माध्यम से दे रहा हूं, यह उसी विज्ञान का पुनरुत्थान है जो भगवान् श्रीकृष्ण ने सहस्राब्दियों पूर्व अर्जुन को दिया था और जो बाद में पतंजलि, ईसा मसीह, सेंट जॉन, सेंट पॉल, और ईसा मसीह के अन्य शिष्यों को प्राप्त हुआ था।”
क्रियायोग की दीक्षा प्रदान करने की अनुमति प्रदान की थी
बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय को “विनम्रतापूर्वक ग्रहण करने की इच्छा प्रकट करने वाले सभी सत्यान्वेषियों” को क्रियायोग की दीक्षा प्रदान करने की अनुमति प्रदान की थी। क्रियायोग, जिसे प्राणायाम का सर्वोच्च स्वरूप माना जाता है, एक मनोदैहिक प्रणाली होने के साथ-साथ एक सम्पूर्ण विज्ञान है जिसके नियमित अभ्यास से साधक श्वास, आंतरिक प्राणशक्ति और मन के ऊपर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है, जिसके परिणामस्वरूप ये सूक्ष्म क्षमताएं मुक्त हो जाती हैं और उन्हें उच्चतर और आध्यात्मिक मुक्तिदायक कार्य में प्रयुक्त किया जा सकता है। क्रियायोग के विधिपूर्वक अभ्यास की प्रभावोत्पादकता से लघु अहंकार की अहंकारजन्य अस्तित्व से ब्रह्माण्डीय चेतना के मध्य की यात्रा की गति तीव्र हो जाती है।
अपने गुरू स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी, जो लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे, के आदेश पर, क्रियायोग शिक्षाओं का प्रसार करने के लिए और ईश्वर के साथ व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करने में सत्यान्वेषियों की सहायता करने के लिए योगानन्दजी ने भारत में सन् 1917 में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) और अमेरिका में सन् 1920 में सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) की स्थापना की।
वाईएसएस महावतार बाबाजी स्मृति दिवस के रूप में मनाता है
वाईएसएस प्रत्येक वर्ष 25 जुलाई का दिन महावतार बाबाजी स्मृति दिवस के रूप में मनाता है। यह उस पवित्र अवसर का प्रतीक है जब सन् 1920 में योगानन्दजी को दर्शन देने और एक युवा संन्यासी के रूप में उनके अमेरिका प्रस्थान करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए आशीर्वाद प्रदान के लिए कोलकाता स्थित उनके पिताजी के घर में बाबाजी स्वयं प्रकट हुए थे। बाबाजी ने उन्हें आश्वासन दिया था और उनसे कहा था, “तुम ही वह हो जिसे मैंने पाश्चात्य जगत् में क्रियायोग के सन्देश का प्रसार करने के लिए चुना है।”
संसार के लिए एक दिव्य योजना अस्तित्व में है
योगानन्दजी ने बाबाजी को आधुनिक भारत के महावतार के नाम से सम्बोधित किया है। उन्होंने दृढ़तापूर्वक यह कहा कि बाबाजी और ईसा मसीह परस्पर सम्पर्क में रहते हैं, जगत् के उद्धार के स्पन्दन भेजते रहते हैं, इस युग के लिए आध्यात्मिक मुक्ति की योजना बनाते हैं, और राष्ट्रों को युद्ध, वंशविद्वेष, धार्मिक भेदभाव तथा भौतिकवाद की बुराइयों को त्यागने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। बाबाजी को पूर्व तथा पश्चिम, दोनों में समान रूप से योग के आत्मोद्धारक ज्ञान का प्रसार करने की आवश्यकता का भान है।
योगी कथामृत में यह वर्णन है कि बाबाजी अपने उन्नत शिष्यों के समूह के साथ सुदूरवर्ती हिमालय के क्षेत्रों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते रहते हैं, और स्वयं को अत्यल्प गिने-चुने लोगों के सम्मुख ही प्रकट करते हैं। लाहिड़ी महाशय का यह कथन, “जब भी कोई श्रद्धा के साथ बाबाजी का नाम लेता है, उसे तत्क्षण आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त होता है” एक ऐसा सत्य है जिसकी पुष्टि दिव्य अवतार के सभी सच्चे भक्तों द्वारा की गयी है। निस्सन्देह, महावतार बाबाजी ने सभी निष्ठावान् क्रियायोगियों के लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग में उनकी सुरक्षा और मार्गदर्शन का वचन दिया है। अधिक जानकारी: yssofindia.org