बिहार की राजनीति में सीएम नीतीश कुमार की हालत कुछ ऐसी हो गई है कि वे पुरानी कहावत दुहरा रहे होंगे कि “खूंटे में मोर दाल बा, का खाउं-का पीउं, का ले के परदेस जाउं?” दरअसल, नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में उस मोड़ पर खड़े हैं, जहां वे ऐसी इमेज बनाने की कोशिश में हैं कि उन्होंने वो किया जो कोई न कर सका। राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर उनके हिस्से कई ऐसे काम हैं भी, जिन्हें बता कर वे सुकून पा सकते हैं। लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में उनकी ऐसी कोई गहरी छाप नहीं है, जिसके वे ख्वाहिशमंद रहे हैं। आज नीतीश कुमार की हालत ऐसी है कि उनकी पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और पूर्व कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी उनके सामने ही ऐसे भिड़ गए जैसे वे एक दल में हैं ही नहीं। यही नहीं उनके साथ सालों तक काम करने वाले आज उनके विरोध में ऐसा कह रहे हैं कि नाक रगड़ने पर भी माफी नहीं मिलेगी। तो सवाल यह उठता है कि नीतीश कुमार ने गलती क्या की है या उनसे चूक कहां हो रही है?
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नियंत्रण में न जुबां, न पार्टी के नेता
दरअसल, नीतीश कुमार ऐसी स्थिति में आ गए हैं जहां उनकी जुबां लड़खड़ा रही है और उनकी पार्टी के नेता टकरा रहे हैं। लड़खड़ाहट में नीतीश कुमार कभी यह भूल जाते हैं कि राज्य के गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी उन्हीं की है। तो कभी चंद्रयान के मिशन को लेकर अपडेट नहीं दिखते। तो कभी यह भी भूल जाते हैं कि उनकी पार्टी किस बड़े आयोजन में शामिल ही नहीं हुई। तो दूसरी ओर ललन सिंह और अशोक चौधरी के टकराव से नीतीश कुमार की इमेज को गहरा धक्का लगा है। क्योंकि दो दिन पहले ही अशोक चौधरी से गलबहियां करती उनकी तस्वीर सबके सामने थी। तो ललन सिंह के साथ उनका साथ सालों पुराना है।
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लालू के द्वार दौड़ रहे नीतीश कुमार
अमूमन बिहार की राजनीति में ऐसे कम ही मौके आए होंगे, जब नीतीश कुमार अपने किसी सहयोगी दल के नेता से मिलने लगातार दूसरे दिन भी उनके घर पहुंच जाते होंगे। नीतीश कुमार बिहार में भाजपा के सहयोगी रहे हैं और सुशील मोदी से उनकी अच्छी छनती रही है। लेकिन उनके आवास पर नीतीश कुमार शायद ही कभी दोबारा गए हों। वैसे आज तो सुशील मोदी ने यहां तक कह दिया कि नीतीश कुमार नाक रगड़ कर माफी मांगेंगे तो भी उन्हें भाजपा में प्रवेश नहीं मिलेगा। दूसरी ओर नीतीश कुमार अपनी इमेज से अलग सरकार में सहयोगी राजद के सुप्रीमो लालू यादव के घर दो दिनों में दूसरी बार पहुंचे, तो सभी चौंक गए। सवाल यह है कि आखिरी इतनी क्या इमरजेंसी है कि लालू-राबड़ी आवास पर नीतीश कुमार के जाने की फ्रीक्वेंसी ऐसे बढ़ी हुई है।
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नीतीश कुमार बार बार कहते रहें कि वे पीएम पद के दावेदार नहीं है लेकिन उनकी पार्टी के नेता यह दर्जनों बार बता चुके हैं कि नरेंद्र मोदी के सामने नीतीश कुमार से बेहतर कोई उम्मीदवार है ही नहीं। अब अपनी नहीं तो पार्टी नेताओं की ही भावनाओं का सम्मान अगर नीतीश कुमार को करना है तो उन्हें बिहार छोड़कर बाहर निकलना होगा। तो दूसरी ओर उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ललन सिंह और अशोक चौधरी का उनके सामने ही एक जिले में भ्रमण को लेकर भिड़ जाना, नीतीश कुमार को घर में ही कमजोर कर देने वाली स्थिति की आशंका में डाल रहा है। ऐसे में नीतीश कुमार की मौजूदा स्थिति पर तो यही कहावत फिट बैठती है कि “खूंटे में मोर दाल बा, का खाउं-का पीउं, का ले के परदेस जाउं?”