देवघर के बाबाधाम को लेकर देश दुनिया में धार्मिक पर्यटन को लेकर झारखंड की अपनी पहचान है। सावन में तो झारखंड, बिहार क्या देश भर से आने वालों की कतार लगी रहती है। अंतिम सोमवारी के अंतिम दिन तो तीन लाख से अधिक कांवरियों ने बाबाधाम में जलार्पण किया। झारखंड में शिव भक्तों की बड़ी कतार है क्या आदिवासी क्या गैर आदिवासी। आदिवासियों में भी पूज्य होने का नतीजा है कि यहां गुमला, लोहरदगा, रांची सहित अनेक ऐसे इलाके हैं जहां कई गांवों में तो एक ही स्थल पर दर्जन के हिसाब से सैकड़ों साल प्राचीन शिवलिंग मिल जायेंगे।
एक ही कक्ष में दो अरघे में दो शिवलिंग हैं
देश के शिव मंदिरों में सामान्यत: एक अरघे में एक शिवलिंग का दर्शन होता है। झारखंड में खास बात यह है कि यहां दो ऐसे शिव मंदिर हैं जहां एक ही कक्ष में दो अरघे में दो शिवलिंग हैं। और दोनों मंदिर प्राचीन हैं। एक रांची में तो दूसरा रामगढ़ में। रांची से करीब 50 किलोमीटर दूर बुढ़मू के उमेडंडा में एक शिव मंदिर है, सुर्खी चूने से बना। साथ में बड़े आकार का तालाब भी। मंदिर के पुजारी संजय कई पीढ़ी से इसकी सेवा करते आ रहे हैं। उनके अनुसार नागवंशी राजा ने उनके पुर्खों को इसकी सेवा का जिम्मा सौंपा था।
मंदिर का अस्तित्व उसके बहुत पहले से है। इसके बारे में एक किवदंती यह भी है कि रातों रात भगवान की कृपा से मंदिर और तालाब ने आकार ले लिया था। मंदिर में दो अरघे में दो शिवलिंग विराजमान हैं। एक बड़े आकार का शिवलिंग है तो दूसरा थोड़ा छोटे आकार का। संजय कहते हैं कि दो अरघे का रहस्य नहीं समझ में आया मगर प्रारंभ से ही यह है।
करीब साढ़े तीन सौ साल पहले 1670 में हुआ था
रामगढ़ का शिव मंदिर गोला रोड़ पर एनएच के किनारे, रामगढ़ से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर है। सुर्खी-चूने से बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण करीब साढ़े तीन सौ साल पहले 1670 में हुआ था। हजारीबाग स्थित पद्मा स्टेट के राजा दलेर सिंह ने जब अपनी राजधानी रामगढ़ ले गये तो उसी दौरान इस मंदिर का निर्माण कराया था। यह विशाल इमारत है, खंडहरनुमा। इसे राष्ट्रीय धरोहर की भी मान्यता मिल गई है। शिव मंदिर ऊपर के माले पर है। मंदिर के नीचे एक गुफा भी है जहां कैथेश्वरी देवी का मंदिर है। इसी वजह से लोग इसे कैथा शिव मंदिर के नाम से भी पुकारते हैं। यहां भी दो अरघे में दो शिवलिंग हैं।
मान्यता है कि एक शिवलिंग स्थापना काल से है जबकि दूसरा बाद में स्थापित किया गया। हालांकि दूसरे शिवलिंग की स्थापना भी प्रारंभिक दौर में ही हुई। यहां भी मंदिर के बगल में विशाल आकार का तालाब है। ग्रामीण कहते हैं कि राज परिवार के लोग इसी तालाब में स्नान करते के बाद सुरंग के रास्ते से मंदिर जाते थे।यह सुरंग करीब दो किलोमीटर से अधिक लंबा बताया जाता है। अब सुरंग बंद है। मंदिर को लेकर लोगों की गहरी आस्था और भांति-भांति की मान्यतायें हैं। ऐतिहासिक नजरिये से इस विरासती इमारत को देखने का अपना सुख भी है।