जनजातीय महोत्सव के बहाने हेमन्त ने नया दांव चला है। दरअसल झारखंड में आदिवासी वोटों को लेकर मार मची है। सत्ता का गलियारा आदिवासी वोटों के सहारे ही तय होता है। अलग राज्य बनने के बाद इस तरह से पहलीबार जनजातीय महोत्सव का भव्य रूप में आयोजन किया गया। पहले दिन ही हेमन्त सोरेन ने अपना इरादा साफ कर दिया। पहचान के सवाल पर अलग धर्म कोड का दर्द दिखाई पड़ा तो अंतिम पायदान पर खड़े गरीब आदिवासियों के प्रति हमदर्दी भी। अपील कर दी ऊंची दर पर कर्ज देने महाजनों को पैसे वापस न करें। कहा कि आदिवासी परिवार में किसी की भी शादी के अवसर पर एवं मृत्यु होने पर उन्हें 100 किलोग्राम चावल तथा 10 किलो दाल दिया जाएगा। इससे सामूहिक भोज के लिए अब उन्हें कर्ज नहीं लेना पडेगा।
मेरी अपील होगी कि सामूहिक भोज करने के लिए कर्ज लेने से बचें। कर्ज लेना भी हो तो बैंक से लें। महाजनों से मंहगे ब्याज पर लिया गया कर्ज अब आपको वापस नहीं करना है। इसकी शिकायत मिलने पर महाजन पर कार्रवाई होगी। हम अपने लोगों को साहुकारों-महाजनों के भरोसे नहीं छोड़ सकते। बैंकों के रवैये पर कहा कि मैं भी लोन लेने जाऊं तो उसे पहली दफा नकार देंगे। यह गरीब आदिवासियों की दुखती रग पर हाथ रखने जैसा है। इनके लिए किये गये और किये जाने वाले और काम भी गिनाये।
81 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटें इसी समाज के लिए आरक्षित हैं
26-28 प्रतिशत जनजाति वोटों को लेकर यहां राजनीति चलती रहती है। झारखंड मुक्ति मोर्चा की पहचान ही इसी समाज को लेकर है। 81 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटें इसी समाज के लिए आरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी भाजपा इन 28 में दो सीटों पर सिमटना पड़ा तो सत्ता से भी बेदखल होना पड़ा। वहीं इन सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करते हुए सत्ता में आने के बावजूद झामुमो ने इस पर कब्जा बढ़ाने की चाल चली। आदिवासी समाज की पहचान और अस्मिता को जोड़ते हुए जनगणना में अलग धर्म कोड की मांग कर दी। विधानसभा से सर्वसम्मत प्रस्ताव पास करा लिया। इसके बावजूद तकनीकी कारणों से इसे अब तक मान्यता नहीं मिली है। झामुमो के इस दांव का भाजपा को कोई काट नहीं सूझा तो पिछले साल बिरसा मुंडा की जयंती को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का निर्णय किया।
आदिवासी के नाते झामुमो को एलानिया द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करना पड़ा
अभी द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के उम्मीदवार बना दिया तो यह झामुमो के लिए सरना कोड जैसा हो गया। धुर विरोधी विचार धारा के बावजूद आदिवासी के नाते झामुमो को एलानिया द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करना पड़ा। हालांकि इसके पीछे की राजनीति को लेकर झामुमो के भीतर गहरी बेचैनी रही। तब हेमन्त ने विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर जनजातीय महोत्सव का आयोजन किया। झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने मौके पर कहा कि अलग राज्य बनने के बाद पहली बार इनके भव्य रूप में समारोह का आयोजन हो रहा है। मौके पर कई राज्यों के जनजातीय समाज से आने वाले कलाकार, चिंतक और आदिवासी प्रतिनिधि भी शामिल हुए। हेमन्त सोरेन भी खुलकर बोले। कहा मेरे लिए मेरी आदिवासी पहचान सबसे महत्वपूर्ण है, यही मेरी सच्चाई है। आज हम एक ढंग से अपने समाज के पंचायत में खड़े होकर बोल रहे हैं।
संवैधानिक प्रावधान सिर्फ चर्चा का विषय बन के रह गये हैं
आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड पर इशारों इशारों में तीखा हमला किया। कहा यह सच है कि संविधान के माध्यम से अनेकों प्रावधान किये गए हैं जिससे कि आदिवासी समाज के जीवन स्तर में बदलाव आ सके। परन्तु, बाद के नीति निर्माताओं की बेरुखी का नतीजा है कि आज भी देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित एवं शोषित वर्ग आदिवासी वर्ग है। आज आदिवासी समाज के समक्ष अपनी पहचान को लेकर संकट खड़ा हो गया है। क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं है? संवैधानिक प्रावधान सिर्फ चर्चा का विषय बन के रह गये हैं।
विभिन्न जनजातीय भाषा बोलने वालों के पास न तो संख्या बल और न ही धन बल। उदाहरण के लिए हिन्दू संस्कृति के लिए असुर हम आदिवासी ही हैं। जिसके बारे में बहुसंख्यक संस्कृति में घृणा का भाव लिखा गया है, मूर्तियों के माध्यम से द्वेष दर्शाया गया है, आखिर उसका बचाव कैसे सुनिश्चित होगा इस पर हमें सोचना होगा। धन बल भी होता तो जैन/पारसी समुदाय जैसा अपनी संस्कृति को बचा पाते हम। ऐसे में विविधता से भरे इस समूह पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
कुछ लोगों को तो आदिवासी शब्द से भी चिढ़ है
भाजपा पर हमला भी किया, कहा कि कुछ लोगों को तो आदिवासी शब्द से भी चिढ़ है। वे हमें वनवासी कह कर पुकारना चाहते हैं। आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हमें जाति-धर्म क्षेत्र के आधार पर बांट कर बताया जाता है। हमें अपने आप को पहचानने की जरुरत है। जातिवाद पार्टी वाद क्षेत्रवाद से ऊपर उठना होगा। बहरहाल हेमन्त ने आदिवासियों के विवाह और मृत्यु पर आयोजित समारोह में 110 किलो अनाज की घोषणा का उन्हें मोहने की कोशिश की है। वहीं महाजनों के खिलाफ आंदोलन चलाकर शिबू से दिशोम गुरू बने शिबू सोरेन के फार्मूले को हेमन्त ने फिर जिंदा किया है। महाजनों को पैसे वापस मत करे। अब देखना है कि हेमन्त की रेवड़ी का यहां के आदिवासियों पर क्या असर पड़ता है। उनकी कोशिश होगी कि ये मुद्दे आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव तक जिंदा रहें, परवान च़ढ़ें।