विश्व हाथी दिवस हर साल 12 अगस्त को मनाया जाता है। एलिफेंट रिइंट्रोडक्शन फाउंडेशन और फिल्म निर्माताओं पेट्रीसिया सिम्स और माइकल क्लार्क द्वारा साल 2011 में इस दिवस को मनाने का फैसला किया गया और पहली बार अंतरराष्ट्रीय हाथी दिवस 12 अगस्त 2012 को मनाया गया। दरअसल, एशियाई और अफ्रीकी हाथियों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता फैलाने और उनकी तरफ ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से इस दिवस को मनाने की शुरुआत की गई थी।
हाथियों को दलमा पसंद आ रहा है
हाथी को भारत में राष्ट्रीय धरोहर के पशु का दर्जा हासिल है। हर पांच साल में हाथियों की गिनती की जाती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मुताबिक, साल 2017 में देश में लगभग 23 राज्यों से लिए गए आंकड़ों के अनुसार लगभग 27,312 हाथी थे। इनमें झारखंड में 679 थे। साल 2012 में इनकी संख्या 29,576 के आसपास थी। देश के अन्य राज्यों में गजराज की संख्या में भले ही कमी आयी है, लेकिन झारखंड में हाथियों की संख्या में इजाफा हुआ है। वर्ष 2019 में दलमा में हाथियों की संख्या 67 थी जो वर्ष 2022 में बढ़कर 104 हो चुकी है। यानी, दो सालों में हाथियों की संख्या में 37 बढ़ गये हैं। वन विभाग के अधिकारियों की मानें तो हाथियों को दलमा पसंद आ रहा है।
22 सालों में 1700 लोगों की ली जान
वहीं झारखंड में हाथी-मानव द्वंद लगातार जारी है, जिसे वन विभाग अब तक रोक नहीं पाया है। राज्य गठन के बाद से लेकर पिछले 22 सालों में गजराज ने अब तक लगभग 1700 से अधिक लोगों की जानें लील ली है। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार अब तक हाथी और जंगली जानवरों से एक लाख 90 हजार 800 लोग प्रभावित हो चुके हैं जिसमें फसलों का नुकसान, पशुओं का नुकसान, मकानों का नुकसान और अनाज का नुकसान शामिल है।
वन विभाग 13 करोड़ रुपये मुआवजा बांट चुका है
जंगली जानवरों के शिकार(मौत) हो चुके लोगों पर इसके एवज में वन विभाग 13 करोड़ रुपये मुआवजा बांट चुका है। 1900 लोग घायल हो चुके हैं, इसके एवज में 3.50 करोड़ रुपये मुआवजा बांटा गया है। 109500 लोगों के फसल का नुकसान, पशु का नुकसान, मकान का नुकसान और अनाज का नुकसान हुआ। इसके एवज में 32 करोड़ रुपये मुआवजा बांटा जा चुका है।
अब तक नहीं बन पाया कॉरिडोर
हाथियों के भ्रमण के लिये कॉरिडोर (एक प्राकृतिक स्थल से दूसरे प्राकृतिक स्थल तक) तैयार किया जाना था, इसके लिये जीआइएस मैपिंग भी हुई, लेकिन यह कॉरिडोर अब तक नहीं बन पाया है। राज्य के अंदर पूर्वी सिंहभूम, प।सिंहभूम, गिरिडीह और दुमका में कॉरिडोर बनाना था। वहीं अंतरराज्यीय कॉरिडोर उड़ीसा-चाईबासा, उड़ीसा- सारंडा, पूर्णिया-दलमा और सरायकेला- बंगाल में बनाया जाना था। लेकिन यह योजना भी धरी की धरी रह गई।
एलिफेंट रेसक्यू सेंटर भी केवल कागज पर ही
राज्य गठन के बाद से हाथियों के लिये एलिफेंट रेसक्यू सेंटर भी बनाया जाना था पर वह भी नहीं बन पाया। धनबाद के वन क्षेत्र और दलमा में रेसक्यू सेंटर बनाने का प्रस्ताव था। वन विभाग के अनुसार, एक हाथी दो से पांच वर्ग किलोमीटर में भ्रमण करता है। इस हिसाब से धनबाद का वन क्षेत्र रेसक्यू सेंटर के लिये उचित नहीं है।