बिहार में नीतीश कुमार की नई सरकार का विश्वासमत चल रहा था। संसदीय मंत्री विजय चौधरी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही कहा, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता… कुछ तो मजबूरियां रही होंगी। विजय चौधरी का ये कहना नीतीश कुमार के पॉलिटिकल नैरेटिव में बड़े अंतर को दिखा रहा था। खुलेआम हो गया कि ये नए नीतीश कुमार हैं। जदयू नेता नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनावों में पांच बार जीत हासिल की और आठ बार सीएम बने। पूर्ण बहुमत के बावजूद राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का नया मॉडल है नीतीश मॉडल। इसमें एक ही जनादेश से दोस्त और दुश्मन दोनों के साथ कभी नरम, कभी गरम रहते हुए मुख्यमंत्री बने रहना। सवाल पूछा जाता है ऐसा क्यों तो जवाब कभी नैतिकता का तकाजा तो कभी अंतरात्मा की आवाज के रूप में सामने आता है।
नीतीश वाला गठबंधन ही सुपरस्टार
साल 2000 में नीतीश पहली बार सीएम बने। लेकिन बहुमत हासिल करने से पहले ही हट गए थे, क्योंकि संख्याबल था नहीं। इसके बाद हर बार बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को दिल खोलकर बहुमत दिया है या यूं कहें कि नीतीश वाले गठबंधन को। पिछले दो दशकों में चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधान सभा चुनाव, त्रिशंकु सदन अब कांसेप्ट से अलग हो चुका है। अब पूर्ण बहुमत की सरकार बनती है। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इलेक्टोरल डेमोक्रेसी के सामने नई चुनौती पैदा कर दी है। जोड़ तोड़ कर सरकार बनाने की तो कई कोशिशें देखीं गई हैं। लेकिन नीतीश कुमार मॉडल इनमें सबसे खास है।
इस्तीफे और शपथ का खेल
पूर्ण जनादेश के बावजूद रातों रात राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के महारथी नीतीश कुमार पांच साल के टर्म में दो-दो बार इस्तीफे और शपथ का खेल खेल चुके हैं। ये लगातार 2017 से हो रहा है। इसकी शुरुआत नीतीश ने की थी नैतिकता का हवाला देकर 2014 में। जब जीतन राम मांझी को उन्होंने खुद मुख्यमंत्री बना दिया। यह कहते हुए कि नरेंद्र मोदी के लहर को बिहार में नहीं रोक पाना उनकी विफलता है। इसलिए नैतिकता का तकाजा है कि जनादेश का सम्मान किया जाए। दशरथ मांझी को भी नीतीश ने कुछ मिनटों के लिए कुर्सी पर बिठाया था और शोहरत लूटी थी। अब एक महादलित की बारी थी। सीएम को कुर्सी सौंपते ही उनपर फूल वर्षा होने लगी।
नैतिकता के त्याग की डेडलाइन
राजनीति में नैतिकता की भी एक एक्सपायरी डेट होती है। 2015 के शुरू में नीतीश कुमार को लगा कि मांझी कुर्सी नहीं छोड़ेंगे, तब नैतिकता त्यागने का समय आ चुका था। नीतीश कुमार ने भाजपा पर पार्टी को हाईजैक करने का आरोप तब भी लगाया था। जेडीयू के 12 विधायक मांझी के साथ खड़े थे। मांझी को पार्टी से निकाला गया और नीतीश कुमार को फिर से नेता चुना गया। हालांकि विश्वासमत से पहले ही मांझी ने इस्तीफा दे दिया क्योंकि 233 सदस्यों वाली विधानसभा में 103 का समर्थन ही उनको हासिल था और ज्यादा समर्थन वो हासिल नहीं कर पाए या भाजपा उनके लिए जुटा नहीं पाई।
सोशल इंजीनियर से पॉलिटिकल इंजीनियर
नीतीश कुमार खुद इंजीनियर हैं। सोशल इंजीनियर भी है, लेकिन पूर्ण बहुमत के बाद इस तरह की पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का उनका नया फार्मेट सोए पड़े विपक्ष को फिर जागृत कर रहा है। अगर उत्तराखंड में 21 साल में 12 सीएम हुए तो इसके पीछे पार्टी के भीतर और दूसरी पार्टी में जोड़ तोड़ की गहरी साजिश थी, लेकिन नीतीश कुमार यहां खुद ही राजनीतिक अस्थिरता का अभिनव प्रयोग कर रहे थे। आगे बढ़ें तो पूरी नैतिकता के साथ उन्होंने लालू के सहारे 2015 का चुनाव जीता। पर अंतरआत्मा से आवाज आई कि तेजस्वी यादव इनकम टैक्स के छापे पर सफाई नहीं दे रहे हैं, इसलिए इस्तीफा दे दिया जाए। तो 27 जुलाई 2017 अंतरात्मा उनको भाजपा के पास ले गई।
अंतरात्मा बनाम नैतिकता
अब आते हैं अंतरात्मा बनाम नैतिकता की लड़ाई पर। जनता को लगा नैतिकता से बेहतर अंतरात्मा की आवाज है। इसलिए अंतरात्मा से उपजे फैसले को जनता ने 2020 में पूरा प्यार दिया। नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए को तो पूर्ण समर्थन मिला। लेकिन जेडीयू खिसककर चली गई तीसरे पायदान पर। सीएम बनने के बाद नीतीश को यही चिंता सताने लगी कि पार्टी बचेगी या नहीं। इसमें डर ज्यादा था, सच्चाई का पता नहीं। लेकिन अभी 9 अगस्त को नीतीश कुमार की अंतरात्मा फिर जगी। उन्होंने भाजपा से गठजोड़ तोड़ दिया। तेजस्वी के साथ हो गए और अब तो सरकार चलने लगी है। सवाल भी उठने लगे हैं कि अंतरात्मा की आवाज़ क्या जन मानस की आवाज हो सकती है? यह तो जनादेश से ही पता चल सकता है, जिसकी चोरी दो बार हो चुकी है, बिहार में। इसलिए अगले चुनाव में नीतीश कुमार की नैतिकता का टेस्ट हो सकता है।
पलटने से ज्यादा कारण पर बात
गठबंधन से पलटने की पहली इनिंग में नीतीश कंपनी अटैकिंग मोड में थी। तेजस्वी और लालू यादव पलटूराम का आरोप लगाते तो करारा जवाब मिलता था। नीतीश कैम्प राजद के साथ बिताए गए 2015-17 के काल को भटकाव बताता रहा है और भाजपा को सही साझीदार। आज वही नीतीश कैम्प ये मान रहा है कि लेकिन जनता प्लीज ये समझे कि ऐसा क्यों हुआ।
अब कितना सम्मान?
CM नीतीश जताना चाहते हैं कि भाजपा की साजिश के कारण उन्हें पलटने पर मजबूर होना पड़ा है। मतलब सबके लिए भाजपा जिम्मेदार है। अब नैतिकता की तो कोई चर्चा ही नहीं हो रही। नीतीश कैम्प भाजपा पर नैतिकता खोने का आरोप लगा रहा है। उधर से बस यही कहा जा रहा है कि नीतीश जी आपको तो 43 सीटों के बाद भी सीएम बनाया। अब कितना सम्मान दें? ऊपर से जबरदस्ती सीएम बनाने की बात कह कर नीतीश कुमार खुद ही भाजपा की नैतिकता को ऊंचा साबित कर रहे हैं। यानि वो खुद ये स्वीकार कर रहे हैं कि उनको सीएम जबरदस्ती बनाया गया। अब गठबंधन धर्म के नाते इसकी सराहना की जाए या इसकी आलोचना की जाए, ये नीतीश कुमार ही बता सकते हैं।