सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत वैध विवाह के लिए केवल विवाह प्रमाण पत्र पर्याप्त नहीं है। अदालत ने कहा है कि विवाह एक पवित्र संस्कार है और इसकी वैधता के लिए सप्तपदी जैसे हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों का पालन करना आवश्यक है।
यह फैसला 19 अप्रैल, 2024 को जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया था। महिला ने तलाक की याचिका को बिहार के मुजफ्फरपुर से झारखंड के रांची में स्थानांतरित करने की मांग की थी।
पीठ ने अपने फैसले में कहा:
- विवाह केवल नाच-गाने, दावत या दहेज का अवसर नहीं है।
- यह एक पवित्र समारोह है जो पति-पत्नी के बीच जीवन भर का संबंध स्थापित करता है।
- हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7(2) के तहत सप्तपदी (अग्नि के सात फेरे) सहित हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों का पालन करना अनिवार्य है।
- विवाह का पंजीकरण केवल औपचारिकता है और यह विवाह की वैधता का निर्धारण नहीं करता है।
पीठ ने यह भी कहा:
- हिंदू विवाह संतानोत्पत्ति, परिवार की मजबूती और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
- यह एक पवित्र मिलन है जो दो व्यक्तियों को आजीवन, सम्मानजनक, समान, सहमतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन प्रदान करता है।
- हिंदू विवाह को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है, खासकर जब सभी रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है।