महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के साथ बगावत करने वालों की तुलना सड़े हुए पत्तों से की है। चुनौती दी है कि अगर बागियों में हिम्मत है, तो शिवसेना और बालासाहेब ठाकरे का नाम लिए बिना अपने दम पर चुनाव जीत कर दिखाएं। शिवसेना के मुखपत्र को दिए इंटरव्यू में उद्धव ठाकरे ने कहा कि मुझे अपनी चिंता नहीं है, न ही शिवसेना की है। चिंता मराठी मानुष और हिंदुत्व की है।
‘फूट डालने की कोशिश’
शिंदे व विरोधी गुट पर भड़के उद्धव ठाकरे ने कहा है कि मराठी मानुष की एकजुटता तोड़ने की, हिंदुत्व में फूट डालने की कोशिश हो रही है। जो मेहनत बालासाहेब ने जिंदगी भर की मराठियों और हिंदुओं को एकजुट करने की, उसे मेरी ही पार्टी के कुछ कपटी लोगों द्वारा बर्बाद करने की कोशिश की जा रही है। जिस वक़्त पार्टी को संभालने का वक़्त था, उस वक़्त इनकी पार्टी तोड़ने की हलचल तेज थी। मैंने इन्हें नंबर दो की पोस्ट दी, इन पर अंधा विश्वास किया। ऐसे में मेरे साथ विश्वासघात किया गया। जब में ऑपरेशन थियेटर में बेहोशी में था, उसी समय शिवसेना तो तोड़ने की साजिश की गई। आज उछल-उछल कर कह रहे हैं कि हमने हिंदुत्व छोड़ दिया।
‘हमारी राजनीति का मकसद हिंदुत्व’
उद्धव ठाकरे ने कहा है कि विरोधियों से पूछना है कि 2014 में जब बीजेपी ने शिवसेना से गठबंधन तोड़ा था, तब उन्होंने क्या छोड़ा था। 2014 में शिवसेना अकेली चुनाव लड़ी थी और 63 सीटें जीतकर आई थी। थोड़े दिनों के लिए विरोध में भी बैठी थी, तब भी नेता विपक्ष का पद एकनाथ शिंदे दिया था। BJP ने अभी जो किया, उस वक़्त करती तो सम्मान से साथ सब होता। भारत भ्रमण की जरूरत नहीं पड़ती। मैंने कहीं पढ़ा कि इसके लिए हजारों करोड़ खर्च हुए, विमान के, होटल के और बाकी चीजों के। वह सब फोकट में होता लेकिन इन्हें शिवसेना को खत्म करना है। शिवसेना हिंदुत्व के लिए राजनीति करती है और ये लोग राजनीति के लिए हिंदुत्व का यूज करते है, यह फर्क है इनमें और हम में।