बिहार की राजनीति में एक बार फिर चाचा-भतीजा काफी करीब आ गए हैं। हफ्ते भर के अंतराल पर दोनों का मिलना-जुलना चल रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की घंटों बातचीत और एक-दूसरे को पिक और ड्रॉप करने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। यह केवल एक शिष्टाचार मुलाकात या किसी मुद्दे पर बातचीत तक सीमित नहीं है।
पहले लाउडस्पीकर और अब जातीय जनगणना पर साथ
पांच साल बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की दूरियां इस साल इफ्तार पार्टी में नजदीकियों में बदल गईं। राबड़ी आवास पर आयोजित इफ्तार पार्टी में तेजस्वी और नीतीश की घंटों बातचीत ने देश को चौंकाया। सिलसिला यही नहीं थमा जदयू की इफ्तार पार्टी में नीतीश द्वारा तेजस्वी का स्वागत आम नहीं था। फिर लाउड स्पीकर के बवाल पर चाचा-भतीजे ने एक ही बयान दिया। कहा कि यह सब बेकार की बातें हैं, जिनका जिक्र क्या करना।
जातीय जनगणना पर सहमति या वोट बैंक पर एकजुटता
बिहार में जातीय जनगणना का मुद्दा फिर गरमाया है। इस पर बीजेपी की राय अलग है, जबकि सत्ता में सहयोगी जदयू की राय इतर। वहीं, जदयू की राय को राजद का समर्थन है। एक दिन पहले नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने बंद कमरे में घंटों बातचीत की। हालांकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह बातचीत सिर्फ जातीय जनगणना पर केंद्र नहीं हो सकती है। इन दोनों नेताओं द्वारा कोई दूर की प्लानिंग की जा रही है। जाहिर सी बात है कि बिहार में बीजेपी के बढ़ते कद से जदयू को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। ऐसे में जदयू अपनी पार्टी को मजबूत बनाने और सत्ता की चाबी अपने पास रखने के लिए राजद का सहारा लेना चाह रही है। अगले लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जदयू अभी से लगी है, जिसके लिए वह राजद से अच्छे संबंध स्थापित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा।