जनता दल यूनाइटेड में नीतीश कुमार के भरोसेमंद से कार्यकर्ताओं के सिरमौर तक का सफर आरसीपी सिंह के कॅरियर की दूसरी पारी थी। पहली पारी में आरसीपी सिंह ने IAS अधिकारी के तौर पर नीतीश कुमार का भरोसा हासिल किया। दूसरी पारी राजनीति में नीतीश कुमार के सहयोगी के रूप में शुरू हुई जो आरसीपी सिंह को JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी तक ले गई। लेकिन जिस केंद्रीय मंत्री पद के लिए आरसीपी सिंह ने राष्ट्रीय पद का त्याग कर दिया, उस पर संकट के बादल आ गए हैं। इसका परोक्ष और प्रत्यक्ष, जो मान लें, कारण JDU के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह हैं। जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के साथ मिलकर ललन सिंह ने एकतरह से आरसीपी सिंह को निपटा दिया है।
UP चुनाव से पहले खुल कर सामने आई ‘दुश्मनी’
आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच की दुश्मनी पुरानी नहीं है। दोनों जदयू के बड़े और नीतीश कुमार के विश्वस्त रहे हैं। लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने के बाद आरसीपी सिंह के तथाकथित भाजपा के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर ने ललन सिंह को नाराज कर दिया। दरअसल, यूपी चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन की जिम्मेदारी आरसीपी सिंह को सौंपी गई थी। लेकिन गठबंधन हुआ नहीं। आरोप लगे कि गठबंधन के मामले में आरसीपी ने नीतीश को अंधेरे में रखा।
सदस्यता अभियान के ऐलान पर बवाल
आरसीपी-ललन विवाद और तेज तब हो गया जब नीतीश कुमार के जन्मदिन के अवसर पर पार्टी का सदस्यता अभियान का ऐलान आरसीपी सिंह ने कर दिया। आरसीपी सिंह जदयू के संगठन में किसी पद पर नहीं थे। इसके बावजूद उन्होंने ऐलान कर दिया तो ललन सिंह उखड़ गए। ललन ने स्पष्ट कर दिया कि जदयू का सदस्यता अभियान 2019 में ही शुरू हुआ था और अक्टूबर 2022 तक चलेगा। इसके बाद दुबारा सदस्यता अभियान कब शुरू होगा, इसका निर्णय संगठन नेतृत्व के द्वारा किया जाएगा।
ललन को मंत्री बनने की थी इच्छा
2019 में लोकसभा चुनाव में जीत के बाद जदयू ने मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया। दरअसल, उस समय जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार थे। भाजपा ने जदयू को सांकेतिक प्रतिनिधित्व के तौर पर एक सीट ऑफर की। लेकिन नीतीश कुमार कम से कम दो पद चाहते थे, जिसमें एक पद पर आरसीपी सिंह और दूसरे पर ललन सिंह मंत्री बनते। लेकिन भाजपा द्वारा एक ही सीट देने पर जदयू मंत्रिमंडल से अलग रहा। लेकिन बाद में आरसीपी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में एक सीट के ऑफर को स्वीकार कर लिया और खुद केंद्र में मंत्री बन गए।
उपेंद्र कुशवाहा बनना चाहते हैं नीतीश के उत्तराधिकारी!
नीतीश कुमार का बिहार में कार्यकाल 2025 तक है। राजनीतिक स्थितियों में बदलाव नहीं हुआ तो इस कार्यकाल के पूरा होने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन उसके बाद नीतीश के उत्तराधिकारी की तलाश पार्टी के कार्यकर्ताओं को है। नीतीश के सबसे करीबी के नाम पर आरसीपी का नाम जुड़ा हुआ है। आरसीपी ने नीतीश के साथ ही राजनीति शुरू की और अब तक कहीं नहीं गए। जबकि उपेंद्र कुशवाहा अलग पार्टी बनाकर वापस लौटे हैं। ललन सिंह भी नीतीश की खिलाफत कर कर वापस आ चुके हैं। ऐसे में ललन-उपेंद्र की राह का सबसे बड़ा कांटा आरसीपी सिंह ही थे। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद आरसीपी सिंह के तेवरों ने ललन-उपेंद्र की राह आसान की और उन्हें इस हद तक ला दिया कि उन्हें राज्यसभा से पार्टी ने बेदखल कर दिया।