लोकसभा चुनाव 2024 में सीट शेयरिंग सबसे बड़ा पेंच है और यह विपक्षी गठबंधन में शामिल दल बखूबी समझ रहे हैं। यही कारण है कि गठबंधन इस मुद्दे को चार बैठकों में चर्चा पर भी नहीं ला सका। लेकिन सीट शेयरिंग तो करनी ही है। इस गठबंधन की नींव बिहार में पड़ी थी और बिहार में गठबंधन अपने पूर्ण स्वरूप में है। यानि बिहार गठबंधन में शामिल दलों के बीच यूपी, पश्चिम बंगाल और दिल्ली-पंजाब की तरह नैतिक खींचतान नहीं है। लेकिन सीट शेयरिंग फिर भी नहीं हो पा रही है। इसके पीछे का कारण जदयू सांसद ललन सिंह और कुछ दूसरे सांसदों की सीटें बताई जा रही हैं।
जदयू को अब नहीं है कांग्रेस का इंतजार, लोकसभा चुनाव में उतारे उम्मीदवार
2019 के आधार पर कांग्रेस चाहती है सीट शेयरिंग?
दरअसल, कांग्रेस अपने लिए कम से कम 9 सीटें मांग रही है। 2019 में भी कांग्रेस ने 9 सीटों पर ही चुनाव लड़ा था। वे सीटें पटना साहिब, समस्तीपुर, किशनगंज, कटिहार, मुंगेर, सासाराम, पूर्णिया, वाल्मिकीनगर और सुपौल थीं। हालांकि इसमें जीत सिर्फ किशनगंज में मिली थी। लेकिन राजद तो कोई सीट जीत ही नहीं सका था। अब इन 9 सीटों में से 5 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस को जदयू के उम्मीदवार ने हराया था। कांग्रेस सीट शेयरिंग में अपनी जीती सीट के अलावा इन पांच सीटों पर भी समझौता नहीं चाहता है।
अपनी जीत सीट के अलावा दूसरे नंबर वाली पांच सीटों को मिलाकर कांग्रेस का दावा छह सीट का हो जाता है। इसके अलावा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह भी चुनाव लड़ने के इच्छुक बताए जाते हैं। उनकी पसंदीदा सीट इन छह सीटों से अलग होगी। ऐसे में 7 सीटों पर कांग्रेस स्पष्ट दावा कर रही है। इसके अलावा कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता दो अन्य सीटों की मांग कर रहे हैं। इस तरह कांग्रेस 9 सीटों की मांग पर अड़ी हुई है।
कांग्रेस द्वारा मांगी जा रही 9 सीटों में एक सीट मुंगेर भी है, जहां से ललन सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार नीलम देवी को 2019 में हराया था। इसके अलावा तारिक अनवर के लिए कटिहार, रंजीत रंजन या उनके बेटे के लिए सुपौल, उदय सिंह के लिए पूर्णिया भी कांग्रेस की विश लिस्ट में शामिल है। समस्तीपुर पर अशोक राम और पश्चिमी चंपारण पर अन्य कांग्रेसी नेताओं का दावा भी है। ऐसे में इन सीटों पर बातें सुलझेंगी, सीट शेयरिंग का फार्मूला तभी निकल पाएगा।