बिहार में बांका लोकसभा सीट का इतिहास कुछ अलग सा ही है। 1957 में बनी इस सीट पर अभी जदयू के गिरधारी यादव सांसद हैं। लेकिन जदयू को इस सीट के लिए 20 सालों का इंतजार करना पड़ा है। नीतीश कुमार की पार्टी के टिकट पर गिरधारी यादव से पहले आखिरी उम्मीदवार 1999 में जीता था। उसके बाद से जदयू वहां सफल नहीं हो पाई थी। लेकिन 2019 में एनडीए में साथ गई जदयू को बांका में जीत मिली।
भागलपुर लोकसभा सीट: 2019 में JDU के अजय की ऐतिहासिक विजय, 2023 में बदले-बदले समीकरण
बांका वो लोकसभा सीट है, जो नीतीश कुमार के लिए बड़ी राजनीतिक हार से कम नहीं है। दरअसल, इस सीट से नीतीश कुमार की पार्टी के टिकट पर दिग्विजय सिंह सांसद चुने गए थे। लेकिन 2004 में दिग्विजय सिंह बांका से चुनाव हार गए। मौजूदा सांसद गिरधारी यादव तब राजद के टिकट पर लोकसभा चुनाव में जीते थे। इसके बाद 2009 में नीतीश कुमार ने दिग्विजय सिंह का टिकट काट दिया। तब दिग्विजय सिंह ने नीतीश कुमार से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा। यही नहीं दिग्विजय सिंह जीत भी गए। उन्होंने राजद के जयप्रकाश यादव को चुनाव हराया था।
भले ही राजद और जदयू दोनों के उम्मीदवारों को बांका सीट पर जीत मिली है लेकिन कमोबेश दोनों पार्टियों का इतिहास फिसड्डी ही रहा है। राजद के उम्मीदवारों को 2014 के बाद से बांका सीट पर जीत नहीं मिली है। तो 20 साल बाद जदयू का उम्मीदवार भाजपा के साझेदारी में जीता। अब यह साझेदारी अगले चुनाव में होती दिख नहीं रही है।
भाजपा के लिए राह सबसे मुश्किल
अगर राजद और जदयू के लिए बांका सीट का गणित हाल के चुनावों में उलझा रहा है, तो भाजपा के पास तो इस सीट को जीतने का मंत्र अब तक नहीं आया है। भाजपा का कोई उम्मीदवार बांका सीट पर कभी सांसद नहीं रहा। दिग्विजय सिंह की मौत के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बांका से सांसद बनीं पुतुल देवी को 2014 में भाजपा ने अपने टिकट पर मैदान में उतारा तो मोदी लहर के बावजूद वो सीट भाजपा के खाते में नहीं आई। 2019 में भाजपा ने फिर इस सीट से तौबा कर ली और जदयू को दे दी। पुतुल देवी एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ीं, लेकिन जीत नहीं सकीं।
विधानसभा सीटों पर महागठबंधन भारी
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में एनडीए को बड़ी जीत मिली थी। इस लोकसभा क्षेत्र के अंदर आने वाली 6 सीटों में से 5 पर एनडीए ने जीत दर्ज की थी। लेकिन 2022 में एनडीए में से जदयू के निकल जाने से अब विधानसभा सीटों पर महागठबंधन यानि जदयू राजद का पलड़ा भारी हो गया है। 6 में से 4 सीटें महागठबंधन के खाते में आ गई हैं।