बिहार में 2008 के बाद लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में कई बदलाव हुए। इसमें चंपारण क्षेत्र की तीनों सीटों के नाम और पहचान सबकुछ बदल गए। तभी अस्तित्व में आया पूर्वी चंपारण जहां पहला चुनाव 2009 में हुआ। इससे पहले यह सीट मोतिहारी के नाम से थी। वैसे पूर्वी चंपारण सीट की नई पहचान ने भाजपा इस क्षेत्र में स्थापित कर दिया। इससे पहले के 20 सालों में भाजपा एक चुनाव जीतती थी, तो दूसरा हार जाती थी। लेकिन 2009 में पूर्वी चंपारण सीट पर भाजपा ने अब तक हुए तीनों चुनाव शानदार मार्जिन से जीते हैं। अब 2024 के चुनाव में पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में बड़े बदलाव की उम्मीद की जा रही है। 1989 में मोतिहारी सीट पर पहला चुनाव जीतने के बाद राधामोहन सिंह इस क्षेत्र में भाजपा की पहचान बन गए। 2009 में सीट की पहचान मोतिहारी से पूर्वी चंपारण हो गई लेकिन भाजपा के लिए राधामोहन सिंह ही चेहरा रहे।
भाजपा के ‘अश्वमेघ का घोड़ा’ यहां कभी नहीं रुका, जीत का अंतर हर बार दोगुना से ज्यादा
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तीन दशकों से राधामोहन ही उम्मीदवार
राधा मोहन सिंह ने पहली बार लोकसभा चुनाव 1989 में मोतिहारी से लड़ा। तब पहली बार मोतिहारी सीट पर कमल खिला। लेकिन 1991 में फिर सीपीआई के कमला मिश्र मधुकर ने राधामोहन सिंह को हरा दिया। 1996 में राधामोहन सिंह ने तीसरी बार चुनाव लड़ा और दूसरी बार जीत दर्ज की। इसके बाद से 1996 से 2004 तक हुए चार चुनावों में दो बार जीत राधामोहन सिंह के खाते आई और दो बार उन्हें हार मिली। उन्हें हराने वालों शिवहर की मौजूदा सांसद रमा देवी भी हैं, जो अभी भाजपा में ही हैं। जबकि एक बार कांग्रेस के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने उन्हें हराया था। लेकिन परिसीमन के बाद 2008 में मोतिहारी बन गया पूर्वी चंपारण और उसके बाद अब तक हुए तीन चुनावों में से राधामोहन सिंह ने कोई चुनाव नहीं हारा। ऐसे में पिछले चार दशकों से इस इलाके में भाजपा के लिए राधामोहन सिंह ही उम्मीदवार रहे हैं।
पिता-पुत्र दोनों को राधामोहन ने हराया
पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट के अस्तित्व में आने के ठीक पहले हुए 2004 के चुनाव में मोतिहारी सीट पर राधामोहन सिंह को राजद के टिकट पर चुनाव लड़े अखिलेश प्रसाद सिंह ने हरा दिया था। लेकिन 2009 में अखिलेश प्रसाद सिंह अपनी जीत कायम नहीं रख पाए। अखिलेश प्रसाद सिंह तब भी राजद के टिकट पर लड़े थे और राधामोहन सिंह ने उन्हें 79,290 वोटों से हराया। यही नहीं अखिलेश प्रसाद सिंह के बेटे आकाश प्रसाद सिंह ने 2019 में रालोसपा के टिकट पर राधामोहन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा। लेकिन 2,93,648 वोटों से जीत राधामोहन सिंह के खाते में आई। जबकि 2014 में राधामोहन सिंह ने राजद के उम्मीदवार बिनोद कुमार श्रीवास्तव को 1,92,163 वोटों से हराया था।
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खिलाड़ी बदलने के आसार
2024 के चुनाव से पहले चर्चा यह चल रही है कि 30 सालों से भाजपा के उम्मीदवार रहे राधामोहन सिंह 2024 में चुनाव में नहीं उतरेंगे। इस चर्चा के पीछे का कारण उनकी उम्र बताई जा रही है। राधा मोहन सिंह 2024 में 75 वर्ष के हो जाएंगे। भाजपा में कई बार चर्चा रही है कि 75 वर्ष से अधिक के उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया जाएगा। हालांकि ये नियम टूटते भी रहे हैं। लेकिन राधामोहन सिंह के चुनाव नहीं लड़ने की चर्चा इसलिए भी अधिक है क्योंकि 2014 में बनी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तो उन्हें कृषि विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभाग का मंत्रालय सौंपा गया था। लेकिन 2019 में चुनाव जीतने के बाद भी उन्हें कोई मंत्रालय नहीं मिला। मंत्रिमंडल से बाहर हुए राधामोहन सिंह को संगठन में शिफ्ट किया गया है। वे अभी भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।
वैसे भाजपा ने पूर्वी चंपारण सीट पर उम्मीदवार बदल दिया तो नए उम्मीदवार के सामने कई चुनौतियां होंगी। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव के आधार पर देखें तो तब तक भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली छह सीटों में चार पर भाजपा के विधायक जीते हैं। जबकि एक विधायक जदयू और एक राजद के पास है। हालात जो भी हों, पूर्वी चंपारण सीट पर आने वाला चुनाव मजेदार ही होगा, इतना तय है।