किसी भी चुनाव में गठबंधन के दलों में सीटों का बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती हमेशा से रही है। इस बार भी लोकसभा चुनाव में यह चुनौती बरकरार रही। लेकिन एनडीए ने इसे सबसे पहले सुलझा लिया। थोड़ी बहुत नाराजगी तो दिखी लेकिन बड़ा उलटफेर या विद्रोह सामने नहीं आया। इसमें जदयू ने 2019 में अपनी जीत के नंबर के हिसाब से ही 16 सीटें प्राप्त करने में शुरुआती सफलता हासिल कर ली। कुछ सीटों में फेरबदल जरूर हुआ लेकिन आखिरकार सबकुछ ऐसा ही लगा कि जदयू की मनमर्जी इसमें शामिल रही है। लेकिन जदयू को मिले 16 सीटों में उम्मीदवारों के चयन में एक टोटका एक सीट पर फंस गया। दरअसल, गोपालगंज सीट नीतीश कुमार की फेवरेट सीट रही है। यहां समता पार्टी के भी उम्मीदवार जीते हैं और जनता दल यूनाइटेड के भी। लेकिन इतिहास ने खुद को फिर दुहराया तो जदयू का खेल गोपालगंज में खराब हो सकता है। हालांकि इतिहास और रिकॉर्ड के बारे में यह भी कहा जाता है कि इन पर नए रंग चढ़ते रहते हैं।
‘रोहिणी आचार्य के लिए काम कर रहे पदाधिकारी’, बीजेपी ने लगाए SDM-SDPO पर गंभीर आरोप
गोपालगंज सीट का इतिहास रहा है कि 1977 के बाद जितने भी चुनाव हुए हैं, उसमें वहां की जनता ने किसी नेता को लगातार दो बार संसद का टिकट नहीं थमाया। सिर्फ अब्दुल गफूर ही ऐसे रहे हैं, जिन्हें 1977 के बाद हुए चुनावों में दो बार जीत का अवसर मिला है। लेकिन यह जीत लगातार नहीं रही। 1997 में जीते अब्दुल गफूर को 1996 में मौका नहीं मिला। 1997 का चुनाव अब्दुल गफूर जरुर जीतने में कामयाब रहे। यह सीट 2004 के चुनाव तक सामान्य सीट थी। लेकिन 2009 के चुनाव में यह सुरक्षित सीट हो गई। सामान्य हो या सुरक्षित, गोपालगंज की जनता ने किसी उम्मीदवार को लगातार दो बार जीत नहीं दी।
जदयू के लिए सेफ मानी जाती है सीट
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के लिए गोपालगंज की सीट सेफ किस्म की मानी जाती है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि जब नीतीश कुमार ने समता पार्टी बनाई थी, 1997 में अब्दुल गफूर और 1999 में रघुनाथ झा ने समता पार्टी से ही चुनाव जीता था। इसके बाद नीतीश कुमार जदयू में आ गए। तो उनकी पार्टी के उम्मीदवार पूर्णमासी राम 2009 में और डॉ. आलोक कुमार सुमन 2019 में जीते। हालांकि इन तमाम जीत वाले चुनावों में नीतीश कुमार भाजपा के साथ गठबंधन में रहे। 2014 में भाजपा और जदयू का गठबंधन नहीं था तो नीतीश कुमार की पार्टी यह चुनाव हार गई थी।
नीतीश ने रिपीट किया है जदयू उम्मीदवार
गोपालगंज सीट का इतिहास यह रहा है कि 1977 के बाद के चुनाव नतीजों में किसी उम्मीदवार लगातार दूसरी बार जीत नहीं मिलती है। इसके बावजूद इस रिकॉर्ड को दरकिनार कर 2019 में जदयू के टिकट पर जीते डॉ. आलोक कुमार सुमन को ही उम्मीदवार बनाया है। जदयू के डॉ. आलोक कुमार सुमन ने 2019 में एनडीए उम्मीदवार के तौर पर 2.86 लाख वोटों से जीत दर्ज की थी। इस बार भी यह सीट जदयू के खाते में गई तो दूसरी कई सीटों की तरह जदयू ने यहां कोई बदलाव नहीं किया।
बात गोपालगंज लोकसभा सीट के इतिहास की करें तो 1952 से हुए 17 चुनावों में शुरुआत के पांच चुनाव कांग्रेस ने जीते। 1952 और 1957 में सैयद महमूद कांग्रेस के टिकट पर जीते। उसके बाद 1962, 1967 और 1971 का चुनाव द्वारिका नाथ तिवारी ने कांग्रेस से जीता। 1977 में द्वारिका नाथ तिवारी चौथी बार जीते लेकिन तब वे जनता पार्टी के टिकट पर जीते। इसके बाद फिर कांग्रेस की वापसी नगीना राय ने 1980 में कराई। लेकिन 1984 में पहली बार गोपालगंज से काली प्रसाद पांडेय के रूप में निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की।
इसके बाद 1989 में राज मंगल मिश्रा, 1991 में अब्दुल गफूर और 1996 में लाल बाबू प्रसाद यादव जनता दल के टिकट पर गोपालगंज लोकसभा सीट से जीते। 1998 में अब्दुल गफूर और 1999 में रघुनाथ झा समता पार्टी से जीते। 2004 में साधु यादव राजद के टिकट पर गोपालगंज के सांसद बने तो 2009 में पूर्णमासी राम जदयू् के टिकट पर संसद पहुंचे। 2014 में पहली बार भाजपा गोपालगंज से लड़ी और जीती, तब जनक राम सांसद चुने गए। 2019 में यह सीट जदयू को मिली तो डॉ. आलोक कुमार सुमन पहली बार संसद पहुंचे। इस बार भी डॉ. आलोक कुमार सुमन जदयू से उम्मीदवार हैं। महागठबंधन में यह सीट वीआईपी को मिली है, जहां से उम्मीदवार अभी तक तय नहीं है।