लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की हारी सीटों पर सर्वाधिक चर्चा भले ही उत्तर प्रदेश की हो रही हो, लेकिन बिहार भी कम डैमेज नहीं हुआ है। बिहार में बड़ा नुकसान भाजपा को ही हुआ है। अब इस नुकसान के वजहों की बात करें तो एक नाम सबके सामने है और वो है पवन सिंह का। भोजपुरी अभिनेता और गायक पवन सिंह को राजनीति में आने की ऐसी तलब जगी कि वे आसनसोल में भाजपा का टिकट ठुकराकर बिहार की काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े। खुद भी हारे, उपेंद्र कुशवाहा को भी हरवाया और साथ ही भाजपा की पांच सीटें हारने का कारण भी बने।
भाजपा की 5 और एनडीए की 6 सीटों पर हार का कारण बने पवन सिंह
बिहार में राजद ने जीती लोकसभा की 4 सीटें तो जिद में गंवा भी दी चार सीटें!
भाजपा ने 2019 के चुनाव में पहली बार बिहार में अपनी लड़ी सभी सीटों को जीतने का रिकॉर्ड बनाया। लेकिन यह रिकॉर्ड एक चुनाव ही चला। 2024 में बिहार की अपनी 30 फीसदी यानि 17 में से 5 सीटें भाजपा हार गई। अब इसके कारणों की समीक्षा होगी, तो कई कारण सामने आएंगे। इन कारणों में पहला नाम है पवन सिंह का, जो इस चुनाव के पहले तक भाजपा में ही शामिल थे।
पवन सिंह का काराकाट के चुनाव में कूदना भाजपा को भारी पड़ गया। काराकाट सीट आमतौर पर कुशवाहा सांसदों के कारण जानी जाती है। हाल के चुनावों में उपेंद्र कुशवाहा, महाबली सिंह कुशवाहा उस सीट से जीते हैं। जातीय समीकरण का ही ख्याल रखते हुए दोनों गठबंधनों की ओर से काराकाट में कुशवाहा जाति के ही उम्मीदवार दिए गए। लेकिन पवन सिंह की काराकाट में एंट्री पर उनके राजपूत समर्थकों ने जिस हर्ष का परिचय दिया, उससे कुशवाहा वोटर्स में नाराजगी गहरी हो गई।
एक तरफ लालू यादव ने कुशवाहा उम्मीदवारों की झड़ी महागठबंधन से लगवा दी तो दूसरी ओर पवन सिंह का कुशवाहा उम्मीदवारों के बीच में कूदना, भाजपा की पांच सीटों पर हार का बड़ा कारण बना। पवन सिंह ने अप्रैल में अपने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला तब सार्वजनिक किया जब महज एक हफ्ते में औरंगाबाद सीट पर नामांकन होना था। औरंगाबाद में भाजपा की ओर से राजपूत जाति के सुशील सिंह उम्मीदवार थे। जबकि राजद ने कुशवाहा जाति के अभय कुमार को मैदान में उतारा। राजपूतों ने औरंगाबाद में सुशील सिंह को वोट किया तो वहां कुशवाहा वोटर्स अभय कुमार के साथ जुड़ गए। जबकि राजपूत और कुशवाहा दोनों औरंगाबाद में भाजपा के समर्थक माने जाते रहे हैं। लेकिन इस बार परिस्थितियां बदलीं और नतीजा यह हुआ कि सुशील सिंह 79,111 वोट से हार गए।
इसी तरह पाटलिपुत्र में कुशवाहा वोटर्स ने मीसा भारती को सपोर्ट किया। तो आरा, बक्सर और सासाराम में भी यही स्थिति रही। पाटलिपुत्र, आरा और सासाराम चारों ऐसी सीटें रहीं जहां राजपूत वोटर्स ने एनडीए का साथ दिया लेकिन कुशवाहा वोटर्स ने एनडीए का साथ नहीं दिया। राजपूत वोटर्स ने बक्सर में राजद का तो काराकाट में पवन सिंह का साथ दिया। इसलिए कुशवाहा वोटर्स ने भी तय किया कि वे उसी गठबंधन का साथ देंगे, जिन्होंने अधिक सीटें कुशवाहा जाति के उम्मीदवारों को दी है। महागठबंधन की ओर से सात कुशवाहा उम्मीदवार थे।
कुशवाहा वोटर्स राजद या महागठबंधन के पक्ष में अपनी जाति के अधिक उम्मीदवारों के कारण गए। साथ ही पवन सिंह के लिए राजपूत समर्थकों का प्रेम भी कुशवाहा वोटर्स को एनडीए से दूर ले गया। यानि कह सकते हैं कि तेजस्वी यादव ने अपने प्रचार के भरोसे राजद को 4 सीटें जितवाई तो पवन सिंह ने अपने चक्कर में भाजपा की 5 और एनडीए की 6 सीटें हरवा दी।