संसद का विशेष सत्र खत्म हो गया है। यह विशेष सत्र जितना ऐतिहासिक महिला आरक्षण बिल के पारित होने को लेकर रहा। उससे कहीं कम इसने विवाद नहीं खड़े किए। पहले तो इसके बुलाए जाने पर ही आपत्ति थी। उसके बाद संसद में कुछ ऐसे वक्तव्य आए, जो लगातार विवाद उठा रहे हैं। एक विवाद भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी का आया, जिस पर तत्काल बवाल शुरू हो गया। तो दूसरा विवाद राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा के बयान पर आया है। हालांकि मनोज झा के बयान पर विवाद संसद सत्र खत्म होने और बयान देने के पांच दिन बाद शुरू हुआ है। शुरुआत किसी और ने नहीं उन्हीं की पार्टी राजद के विधायन चेतन आनंद ने की है। हालांकि मनोज झा अकेले नहीं पड़े हैं क्योंकि उनके समर्थन में भी सारण विकास मंच के संयोजक शैलेंद्र प्रताप सिंह आ गए हैं।
चेतन ने कहा धरना देता, आनंद मोहन बोले जीभ खींच लेता
यह विवाद राज्यसभा सांसद मनोज झा की उस बौद्धिक स्पीच के बाद शुरू हुआ। इसमें मनोज झा ने ओमप्रकाश वाल्मीकी की कविता के सहारे लोगों के अंदर के ठाकुर यानि सामंत को मारने की बात कही। लेकिन इस कविता में ठाकुर का इतना जिक्र हुआ है कि राजद के अंदरुनी ठाकुर यानि विधायक चेतन आनंद भड़क गए। चेतन आनंद ने कहा कि आपको ठाकुरों से क्या एलर्जी है? अगर ठाकुरों पे कविता है, तो ब्राह्मणों पे भी कविताएं है। लेकिन क्योंकि आप ब्राह्मण हैं तो आपने वो कविता नहीं सुनाई। किसी को सॉफ्ट टारगेट बनाना, हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। अगर हम उस समय वहां मौजूद होते तो धरना देते, ऐसे लोगों के खिलाफ प्रोटेस्ट करते, चुपचाप तो नहीं सुनते। चेतन आनंद ने तो संवैधानिक प्रोटेस्ट की बात की।
राजद के नेता पहले जदयू से भिड़े, अब आपस में भिड़ रहे
लेकिन उनके पिता व पूर्व सांसद आनंद मोहन तो इस पर इतना तैश में आ गए कि जीभ खींच लेने की बात कर दी। आनंद मोहन ने कहा कि अगर मैं उस वक्त राज्यसभा में होता तो उनकी जीभ खींचकर आसन की तरफ उछाल देता, सभापति की ओर। आप इतने बड़े समाजवादी हो तो झा क्यों लगाते हो। आप पहले अपने अंदर के ब्राह्मण को मारो। रामायण में ठाकुर, महाभारत में ठाकुर, सभी कथा में ठाकुर। मंदिर में ठाकुर हैं कहां-कहां से भगाओगे।
भाजपा ने भी मिला आनंद मोहन से सुर
जैसे ही राजद के दो नेता आपस में लड़े, भाजपा विधायक व पूर्व मंत्री नीरज सिंह बबलू ने आनंद मोहन के सुर में सुर मिला दिया। नीरज बबलू ने कहा कि ठाकुरों ने देश की रक्षा की है। अगर ठाकुर नहीं होते, तो हिंदुस्तान का नाम मुगलिस्तान होता। मुगलों से लड़ाई में ठाकुरों ने कितनी कुर्बानी दी। मनोज झा राजद के इशारे पर ऐसा बयान दे रहे हैं। अगर मेरे सामने ऐसा बयान देते तो पटक कर उनका मुंह तोड़ देता। वह ये क्यों नहीं कहते कि अंदर के रावण मारो?
मैं पटक कर मुंह तोड़ देता…, BJP विधायक ने मिलाया आनंद मोहन के सुर में सुर
मनोज झा के बयान पर शैलेंद्र प्रताप भी बोले
वहीं दूसरी ओर मनोज झा के बयान पर सारण विकास मंच के शैलेंद्र प्रताप सिंह ने सोशल मीडिया पर अपनी बात साझा की है।
अफवाह उड़ी कि कौआ कान ले गया। कुछ लोग कौए को मारने दौड़ पड़े, उनमें से किसी ने कान देख लेने की तकलीफ नहीं उठाई। यही हो रहा है आजकल। व्हाट्सएप पर कुछ पढ़ लिया, फेसबुक पर कुछ देख लिया, ट्विटर पर कुछ नजर में आ गया… उठा लिया डंडा और झंडा, कूद पड़े ऐसे जैसे सबकुछ इन्हें पता ही हो। संसद के विशेष सत्र के दौरान माननीय राज्यसभा सांसद मनोज झा ने अपने बयान के दौरान एक कविता सुनाई, जो ओमप्रकाश वाल्मीकि की लिखी हुई। कविता में ठाकुर शब्द का जिक्र है, जिसको लेकर अचानक कुछ क्षत्रिय भाइयों की भावना आहत हो गई है। लेकिन जिनकी भावना आहत हो गई है, उन्होंने न तो मनोज झा जी का पूरा वक्तव्य सुना, न संसद की कार्यवाही देखी और न ही इसे समझने का प्रयास किया। कविता की शुरुआत से पहले ही मनोज झा कहते हैं कि “इसमें जो प्रतीक हैं, वो किसी जाति विशेष के लिए नहीं हैं। क्योंकि हम सब के अंदर एक ठाकुर है। जो न्यायालयों में बैठा हुआ है, विश्वविद्यालयों में बैठा हुआ है, संसद की दहलीज पर बैठा है।” कविता समाप्त करते ही मनोज झा जी ने स्पष्ट कहा है कि “वो ठाकुर मैं भी हूं, वो ठाकुर संसद में है, वो संसद में है, वो विधायिका को कंट्रोल करता है, इस ठाकुर को मारो”। मनोज झा जी तो प्रोफेसर हैं, लेकिन हिंदी का सामान्य ज्ञान और सामाजिकता की रत्ती भर भी जानकारी रखने वाले व्यक्ति को यह पूरा वक्तव्य सुनाया जाए तो साफ होगा कि इसमें जो बात है, उसमें किसी जाति के लिए कुछ भी नहीं कहा गया है। बल्कि इशारा सामंती और तानाशाही के प्रतीकों की ओर है, जो समाज में रहे हैं और आज भी हैं। वैसे जिस कविता को लेकर इतना बवाल हो रहा है, उस कविता की प्रेरणा तो हिंदी साहित्य के सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘ठाकुर का कुआं’ है। उस कहानी में जोखू का दर्द और गंगी की वेदना, अगर इस समाज की सच्चाई से आप परिचित नहीं हैं, तो माफ कीजिएगा लेकिन न आपको इतिहास का पता है और न ही भविष्य के निर्धारण की योजना है। मनोज झा जी ने जिस संदर्भ में इस कविता को पढ़ा, उसे गलत तरीके से परिभाषित करने वाले लोग कुछ और नहीं बस समाज में वैमनस्य चाहते हैं, युवाओं को भड़काना चाहते हैं। आग्रह है जातीय शान के कसीदे पढ़ने वाले महानुभावों से कि कुछ भी बोलने से पहले सुनना सीखें और सुनें, देखें तो पूरा देखें सुने। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी असली जीवन की परीक्षा में कभी उत्तीर्ण नहीं हो सकते।
शैलेंद्र प्रताप सिंह , संयोजक, सारण विकास मंच
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