बिहार में आजादी के बाद से कांग्रेस के हाथ में सत्ता आई। पहले सीएम बने श्रीकृष्ण सिंह। इसके बाद 10 मार्च 1990 तक बिहार में कांग्रेस के 14 मुख्यमंत्रियों ने सालों तक राज्य में सत्ता संभाली। लेकिन 10 मार्च 1990 के बाद से कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। लालू यादव ने कांग्रेस को पछाड़ बिहार में जिस नए युग की स्थापना की, उसमें कांग्रेस आज की स्थिति में 19 विधायकों और एक लोकसभा सांसद वाली पार्टी रह गई है। 243 विधायकों की विधानसभा और 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में भले ही कांग्रेस आज सत्ता में है, लेकिन सत्ता के नाम पर उसके पास दो मंत्री पद हैं। कांग्रेस की मुदार इसे बढ़ाने की है, जिसपर अब फैसला हो सकता है। मंत्रिमंडल विस्तार की आधिकारिक सूचना भले ही सीएम कार्यालय से जारी नहीं हुई हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस के भावी मंत्रियों के नाम पर चर्चा शुरू हो चुकी है।
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सवर्ण उम्मीद्वारों पर खेल सकती है दांव
बिहार की सत्ता में शामिल दलों ने अपने हिसाब से वोटों का अलिखित बंटवारा पहले ही कर लिया है। बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी राजद के लिए मुस्लिम-यादव यानि M-Y वोट बैंक, विरासत की तरह है। तो दूसरे नंबर पर खड़ी जदयू ने अपने खाते में कुर्मी-कुशवाहा और ईबीसी जातियों को रखा है। राजद और जदयू के फोकस एरिया से अलग हटते हुए, कांग्रेस ने सवर्णों वाला हिस्सा अपने साथ मिलाने की कोशिश की है। संभावना है कि मंत्रिमंडल विस्तार में सवर्ण दांव ही कांग्रेस चलेगी।
भूमिहारों को लग सकती हैं निराशा
सवर्ण दांव की बात जैसे ही सामने आती है, भूमिहार प्रतिनिधित्व के नाम पर कयासबाजी शुरू हो जाती है। मंत्री कांग्रेस से बनने हैं तो भूमिहारों की संभावना और अधिक इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि पिछले दिनों हुए संगठन विस्तार में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व भूमिहारों को ही बिहार कांग्रेस ने दिया था। कांग्रेस ने बिहार के 38 जिलों में 39 जिलाध्यक्ष नियुक्त किए थे। इनमें सबसे अधिक 11 जिलों में भूमिहार नेताओं को कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन इन आंकड़ों को मंत्रिमंडल विस्तार का आधार समझना ठीक नहीं क्योंकि संभावना ये है कि कांग्रेस इस बार भी मंत्रिमंडल विस्तार में किसी भूमिहार नेता को मौका नहीं देगी।
राजपूत और ब्राह्मण की संभावना
राजनीतिक हलकों में सबसे अधिक चर्चा इस बात की है कि इस बार कांग्रेस मंत्रिमंडल विस्तार में दो सीटें लेगी। इसमें एक सीट राजपूत नेता के हिस्से जाएगी। जबकि दूसरी सीट से ब्राह्मण उम्मीदवार को मौका मिल सकता है। संभावना है कि राजपूत नेताओं में विधान पार्षद समीर कुमार सिंह का नाम आगे है जबकि ब्राह्मण नेताओं में मदन मोहन झा को मौका मिल सकता है। हालांकि विजय शंकर दूबे का भी नाम मंत्रिमंडल शामिल करने की चर्चा है। लेकिन मदन मोहन झा और विजय शंकर दूबे में से एक को ही मंत्रालय मिलेगा।