केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार में हैं। एक नहीं दो दिनों के लिए। वो भी सरकारी नहीं पार्टी के काम से। अब चुनावी राजनीति के हिसाब से यह परिस्थिति थोड़ी अजीब है। क्योंकि मौजूदा वक्त में चुनावी बयार तो कर्नाटक में चल रही है। भाजपा वहां सत्ता में है और हर हाल में कर्नाटक के चुनाव को जीतकर सत्ता में वापसी चाहती है। लेकिन भाजपा के सबसे बड़े स्टार प्रचारकों में से एक अमित शाह बिहार के दौरे पर हैं। अमित शाह के दौरे के दो कार्यक्रम अभी तक रद्द हो चुके हैं। सासाराम का दौरा भी रद्द हो गया है और पटना में एसएसबी भवन के भूमि पूजन को भी रद्द कर दिया गया। अमित शाह सिर्फ नवादा में जनता के सामने होंगे।
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बिहार की सरकार में बेचैनी
कर्नाटक में सभी 224 विधानसभा सीटों के लिए 10 मई को मतदान होना है। ऐसे में अब भाजपा के पास 224 सीटों पर प्रचार के लिए एक माह का ही वक्त बचा है। लेकिन स्टार प्रचारक अमित शाह बिहार में है। अमित शाह की बिहार में मौजूदगी के कई मायने निकाले जा रहे हैं। ऐसा इसलिए भी शुरू हुआ है क्योंकि अमित शाह के इस बिहार दौरे पर भी बिहार की सरकार में शामिल दल असहज हो रहे हैं। सीएम नीतीश कुमार ने तो कहा कि क्यों आए हैं, कुछ पता नहीं। जबकि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह कह रहे हैं सासाराम में भीड़ नहीं जुटने वाली थी, इसलिए अमित शाह ने वहां का कार्यक्रम रद्द कर दिया है।
भाजपा का प्लान क्या?
भले ही बिहार की सरकार में शामिल दलों को अमित शाह का बार-बार बिहार आना नहीं भा रहा हो, लेकिन यह भाजपा की सोची-समझी चाल है। दरअसल, बिहार में सत्ता पक्ष अमित शाह के हर दौरे पर हमलावर हो रहा है। भाजपा समझ रही है कि यह जदयू-राजद की हताशा है। दूसरी ओर भाजपा कर्नाटक में विपक्षी एकता का शंख नहीं चाहती। भाजपा चाहती है कि विपक्ष बिखरा रहे। नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव, कर्नाटक में हस्तक्षेप न कर सकें। तेजस्वी यादव के पास वैसे ही वक्त कम है क्योंकि वे कानूनी मामले में फंसे हैं। दूसरी ओर नीतीश कुमार जिसतरह अमित शाह के बिहार दौरों को लेकर रिएक्शन दे रहे हैं, उससे भाजपा अपनी रणनीति में सफल होती दिख रही है।