जदयू की पूर्व प्रदेश प्रवक्ता प्रो. सुहेली मेहता ने सोमवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। सोमवार को एक प्रेस कांफ्रेंस ने प्रो. मेहता ने जदयू पर कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि “मैं तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में पार्टी से जुड़कर काम करने आई थी। वर्षों तक पूरी ईमानदारी से काम भी किया। उन्होंने पार्टी में प्रतिष्ठा भी दी लेकिन अफसोस ये है कि अब पार्टी में उनकी नहीं चलती। पार्टी एक ऐसे गिरोह के हाथ लग गयी है, जिसमें कुंठित लोगों की जमात है। ये कुंठा से ग्रसित लोग कार्यकर्ताओं को शर्तों से समझौता करने को मजबूर करते हैं। महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली पार्टी एक महिला को गिरे हुए लोगों के सामने घुटने टेकने के शर्त पर पार्टी की राजनीति करने को कहते हैं।
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प्रो. मेहता ने कहा कि ये लोग सिर्फ महिलाओं पर राजनीति करते हैं लेकिन महिलाओं को राजनीति नहीं करने देना चाहते। उन्होंने जदयू को मूल आधार से भटकने का आरोप लगाते हुए कहा कि लव और कुश के समीकरण पर पार्टी की स्थापना हुई थी। लेकिन आज जदयू में जो भी नीतीश कुमार के साथ रहते हैं, उनमें से कोई लव-कुश समीकरण का नहीं है। प्रो. मेहता ने यह भी आरोप लगाया कि नीतीश जी अब बदल गए हैं। जिस अपराध और अपराधियों के खिलाफ मुहिम चलाने में जनता ने बिहार की बागडोर इनके हाथ में दिया था, आज अपराधियों को जेल से निकालने के लिए इन्होंने जेल के नियम तक को बदल डाला। महिलाएं NDA की सरकार में अपराधियों के खौफ से दूर थीं, अब आशंकित हैं।
यही नहीं प्रो. मेहता ने नीतीश कुमार की नीतियों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि शराबबंदी की मुहिम जनता के साथ धोखा है| महिलाओं के नाम पर इन्होंने शराबबंदी लागू किया लेकिन हालात सुधरने से ज्यादा लोग बिगड़ गए। माफिया डंके की चोट पर शराब की होम डिलीवरी करवा रहे हैं और बेचारे गरीब शराब की खाली बोतल रखने के जुर्म में भी जेल में बंद हैं। ये माफियाओं पर नियंत्रण नहीं कर सकते, सिर्फ गरीबों का शोषण करते हैं। सरकारी विद्यालयों में सिर्फ वही बच्चे पढ़ रहे हैं जिनके अविभावक प्राइवेट स्कूल का खर्च बिलकुल नहीं उठा सकते। बिना सोचे समझे स्कूलों में ठेके पर शिक्षकों की बहाली कराकर समाज की नजरों में शिक्षकों की प्रतिष्ठा को कम किया। बार-बार परीक्षा लेकर इनकी बेइज्जती की। आपने इन्हें ट्रेनिंग नहीं दिया लेकिन समाज के सामने बेइज्जत जरुर किया। आज BPSC के माध्यम से बहाली के नाम पर जो शिक्षक 15-20 वर्षों से लगातार पढ़ा रहे हैं, उन्हें भी परीक्षा देने को कहकर फिर बेइज्जत कीजिएगा। सरकार की नीतियों में नियत साफ़ नहीं दिखता और इसलिए संसाधन रहते हुए बिहार आज भी पिछड़ा हुआ है।