बिहार की महागठबंधन सरकार में जब भी सब कुछ ठीक होता हुआ नजर आता है,तभी कोई ना कोई नया विवाद खड़ा हो जाता है। पिछले कुछ समय से तो ऐसा ही दृश्य देखने को मिल रहा हैं। जेडीयू और राजद के बयानवीर नेता बयानों की तीर छोड़ना छोड़ नहीं रहे। स्थिति ऐसी बन जा रही है कि जेडीयू और राजद के नेताओं के बीच ही रह-रह कर तलवार खींच जा रही है। पहले सुधाकर सिंह का प्रकरण सामने आया। उसके बाद शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव के रामचरित मानस पर दिए विवादित बयान को लेकर दोनों पार्टियों के अलग-अलग सुर देखने को मिले।
अब मंत्री आलोक मेहता के एक बयान ने नए विवाद को जन्म दे दिया है। जिसमें उन्होंने उन्होंने EWS आरक्षण को लेकर कहा कि जिन्हें आज 10% में गिना जाता है वह पहले मंदिर में घंटी बजाते थे और अंग्रेजो के दलाल थे। उनके इस बयान को लेकर विपक्ष तो हमलावर है ही अब साथी जेडीयू के नेताओं द्वारा भी सवाल खड़ा किया जा रहा है।
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‘इतिहास का ज्ञान ले आलोक मेहता’
हालांकि बाद में मंत्री आलोक मेहता अपाने बयान पर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जेडीयू एमएलसी नीरज कुमार ने उन्हें अपने टारगेट पर ले लिया। नीरज कुमार ने मंत्री आलोक मेहता के बयान को काफी दुखद और अपमानजनक बताया। उन्होंने कहा की आलोक मेहता को इतिहास की जनकारी नहीं है। सबसे पहले उन्हें इतिहास का सही ज्ञान लेना चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए की आजादी की लड़ाई जातीय आधार पर नहीं लड़ी गई थी। सभी जातियों के लोगों ने आजादी के लिए बलिदान दिया है। सवर्ण जाति के लोगों ने अपने खेत-खलिहान को बेच कर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी साथ ही उनलोगों ने कारावास भी कटा था। बिहार, बिहारी स्वतंत्रता सेनानी के बेटों का है। साथ ही नीरजा कुमार ने ये भी कहा कि कोई किसी के पूर्वज को सार्वजानिक रूप से दलाल कहेगा तो ये बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
‘भीख या कृपा से नहीं मिली 10% आरक्षण’
नीरज कुमार यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे कहा कि सवर्णों को 10 प्रतिशत का आरक्षण कोई भीख में नहीं मिली है और ना ही ये किसी कृपा का नतीजा है। ये कानून संसद बना और सुप्रीम कोर्ट ने उसपर मुहर भी लगाई है। बिहार ही वो पहला राज्य है जहां 2011 में सवर्ण आयोग की रिपोर्ट आई। इसलिए इस तरह का बयान देकर समाज को बाटनें का काम गलत है।