2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत हुई। सीटें कम भी हुई, तो भी तय था कि सीएम नीतीश कुमार ही बनेंगे। लेकिन बाकि पूरा कैबिनेट बदल गया। यहां तक कि बिहार में भाजपा के सबसे अग्रणी नेताओं में से एक सुशील कुमार मोदी को बिहार की राजनीति से उसी चुनाव के बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। नीतीश के करीबी होने के आरोप सुशील मोदी पर पहले भी लगते रहे। लेकिन लगभग डेढ़ साल से बिहार की राजनीति से बाहर सुशील कुमार मोदी वापस लौटे हैं नए रूप में।
‘उपराष्ट्रपति नहीं बनाने का गुस्सा निकाल रहे नीतीश’
बिहार में नई सरकार के बनने के लिए नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ा है। तोड़ने का कारण नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह का भाजपा के प्रति झुकाव बताया है। लेकिन सुशील मोदी इसे काउंटर कर रहे हैं। एक दिन पहले ट्वीट कर नीतीश कुमार को झूठा बताने वाले सुशील मोदी मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि आरसीपी मंत्री नीतीश की इच्छा से ही बने थे। एक ही मंत्री पद हर सहयोगी दल को मिला तो नीतीश ने आरसीपी का नाम आगे किया था। मोदी ने कहा कि जदयू नीतीश को उपराष्ट्रपति बनवाना चाहता था, जिसका प्रस्ताव भी दिया गया। लेकिन ये संभव ही नहीं था। उनकी नाराजगी इस बात को लेकर है। लेकिन वो आरोप झूठे लगा रहे हैं।
‘सहयोगियों को नहीं तोड़ते’
सुशील मोदी ने नीतीश कुमार के उस आरोप पर भी जवाब दिया है जिसमें भाजपा पर जदयू को तोड़ने के आरोप लगे। मोदी ने कहा कि जदयू को तोड़कर मिलता क्या? सरकार तो बन नहीं पाती। वैसे भी भाजपा अपने सहयोगियों को मजबूत करती है तोड़ती नहीं है। नई सरकार के बनने से पहले ही सुशील मोदी ने नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से वादों को पूरा करने की मांग की है। वैसे तो जब से सुशील मोदी राज्यसभा भेज दिए गए थे, उनकी बिहार में दिलचस्पी कम हो गई थी। लेकिन एक बार फिर सुशील मोदी बिहार की पॉलिटिक्स में इंट्री कर गए हैं।
इस बार नीतीश टारगेट!
दरअसल, सुशील मोदी अगर लंबे समय तक नीतीश के डिप्टी के रूप में काम करने के बाद भी आज सिर्फ राज्यसभा सांसद हैं, तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह नीतीश से उनकी नजदीकी रही है। कई मौकों पर भाजपा के कई नेता इसकी मुखालफत करते रहे हैं। 2015 में महागठबंधन की सरकार को गिरवाने और भाजपा की वापसी कराने में सुशील मोदी की भूमिका कोई नहीं भूल सकता। वे रोज प्रेस कांफ्रेंस कर लालू परिवार पर भ्रष्टाचार की सिलसिलेवार प्रस्तुति करते रहे। अंत में नीतीश कुमार उन्हीं आरोपों को आधार बनाकर वापस भाजपा के पक्ष में लौट आए।
नहीं मिला मोदी को इनाम
2017 में जदयू-राजद को अलग करवाने के बाद नई सरकार में एक बार फिर सुशील मोदी डिप्टी सीएम बनाए गए। लेकिन 2020 के चुनाव के बाद उन्हें बिहार की राजनीति से भाजपा ने बाहर कर दिया। हालांकि नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि उनकी इच्छा थी कि सुशील मोदी बिहार में ही रहें। लेकिन भाजपा ने नीतीश की इच्छा को दरकिनार कर दिया। बताया जाता है कि सुशील मोदी का मन भी बिहार की राजनीति में अधिक लगता है। शायद यही कारण है कि सुशील मोदी भाजपा से सत्ता छिनने के मौके को भुनाना चाहते हैं। वैसे अपनी इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए सुशील मोदी अपने पुराने प्रशंसक नीतीश कुमार को भी अपने आरोपों से छलनी करने के लिए तैयार हैं।