बदलाव अगर सृष्टि का नियम है तो सृष्टि जिस भगवान सूर्य के प्रकाश से उज्ज्वल होती है, बदलाव उनमें भी होना ही है। छठ महापर्व का मौका है, जिसमें सूर्य उपासना की बड़ी भूमिका है। हम आपको बता रहे हैं कि बदलते वक्त के साथ भगवान सूर्य की मूर्तियों और आभूषणों में भी बदलाव आता रहा है। बिहार भगवान सूर्य की अराधना का केंद्र प्राचीन काल से ही रहा है और इसी को और पुख्ता करती हैं अलग अलग काल खंड में भगवान सूर्य की मूर्तियों के पहनावे।
किस काल में कैसे रहे भगवान सूर्य के वस्त्र-आभूषण
- शुंग काल : शुंग कालीन सूर्य प्रतिमा बोधगया के आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम में है। यह स्तंभ पर बनी मूर्ति है। यह भी इस स्वरूप की बिहार की सबसे पुरानी मूर्ति है। इस प्रतिमा में सूर्य के रथ में चार घोड़े जुते हुए हैं।
- गुप्त काल : वैशाली के चेचर में मौजूद सूर्य प्रतिमा गुप्त काल की हैं। उत्तर बिहार की यह सबसे पुरानी सूर्य प्रतिमा है। इसमें सूर्य धोती पहने हुए हैं। यह प्रतिमा गंगा किनारे एक मंदिर में है।
- पाल काल : बिहार में सबसे अधिक सूर्य प्रतिमा पालकालीन मिलती हैं, जिनमें तत्कालीन वेषभूषा दिखती है। इनमें सात घोड़ों से जुते हुए रथ पर सूर्य सवार रहते हैं, जिनके दोनों हाथ में कमल,कमर में तलवार तथा धोती के अलावा पैरों में जूते भी दिखते हैं।
- कुषाण काल : गया के तपोवन में मिली एक प्राचीन सूर्य मूर्ति नवादा के नारद: संग्रहालय में रखी हुई है। यह बिहार की सबसे पुरानी सूर्य की स्वतंत्र प्रतिमा है। यह ऊपर से खंडित है। यह कुषाण शासन काल की ईरानी वेशभूषा में है। इसकी बाईं तरफ कमर में तलवार है। दोनाें तरफ एक-एक मूर्ति है। बाईं तरफ दंड की मूर्ति है, जिनके हाथ में दंड है। वहीं दाहिनी तरफ पिंगल की प्रतिमा है जिनके हाथ में कलम एवं दवात है।
- कर्णाट काल : नारद: संग्रहालय में इस समय की एक दुर्लभ मूर्ति रुद्र भास्कर की है, जिसमें शिव एवं सूर्य का समन्वित रूप है। दरभंगा के चंद्रधारी संग्रहालय में हरिहरार्क की एक दुर्लभ मूर्ति है जिसमें शिव, विष्णु एवं सूर्य का समन्वित रूप है। यह मूर्ति कर्णाट कालीन है। तत्कालीन वेषभूषा का स्पष्ट प्रभाव इस प्रतिमा पर है।