बिहार में नई सरकार के गठन के बाद मंत्रिमंडल गठन बड़ी चुनौती है। वैसे तो CM Nitish Kumar मंत्रिमंडल गठन की तारीख पर सहज दिखते हैं। कह भी रहे हैं कि जितना जल्दी हो सकेगा, हो जाएगा। लेकिन यह इतना आसान है नहीं। वैसे तो सात दल हैं इस महागठबंधन की सरकार में। लेकिन मंत्रिमंडल में सहभागिता चार दलों की होगी।
राष्ट्रीय स्तर पर ही फैसला!
जदयू, राजद और कांग्रेस के अलावा हम को ही मंत्रिमंडल में शामिल होना है। लेकिन किसे कितने मंत्री पद मिलेंगे, यह तय नहीं है। यह फैसला आसान भी नहीं है। इसलिए सभी पार्टियों के सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष ही मंत्रिमंडल तय करने की कोशिश में जुट गए हैं। यही कारण है कि राष्ट्रीय अध्यक्षों का दौरा जारी है। पहले JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव से मिले। तो अब लालू यादव के प्रतिनिधि के रूप में तेजस्वी यादव कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलेंगे।
संख्या से लेकर चेहरों पर माथापच्ची
बिहार सरकार के नए मंत्रिमंडल में किस दल की कितनी हिस्सेदारी रहेगी, यह तय नहीं है। सीएम-डिप्टी सीएम का पद जदयू-राजद ने आपस में बांट लिया है। विधानसभा अध्यक्ष पद किसके पास जाएगा, यह भी सार्वजनिक नहीं हुआ है। नीतीश-तेजस्वी सरकार की की बड़ी चुनौती यह है कि किस दल को कितने पद मिलेंगे। पदों की संख्या का मामला सुलझा तो विभागों के बंटवारा करना भी चुनौती होगी। इसके बाद की चुनौती पार्टी स्तर की है कि स्वीकृत पदों पर चेहरे कौन जाएंगे।
कांग्रेस-हम में सिरफुटौव्वल, निर्दलीय संशय में
सरकार बनने के साथ ही हिस्सेदारी को लेकर बवाल शुरू है। जीतन राम मांझी ने वैसे तो बिना शर्त समर्थन देने की बात कही है। लेकिन अपनी बात में यह भी जोड़ा है कि इस बार कम से कम दो मंत्री पद तो मिलने ही चाहिए। वहीं कांग्रेस की हिस्सेदारी पर कोई फैसला नहीं हुआ है। लेकिन कांग्रेसी विधायक छत्रपति यादव सिर्फ इसलिए मंत्री बनना चाहते हैं क्योंकि वे यादव समाज से आने वाले कांग्रेस के अकेले विधायक हैं। वहीं कांग्रेस की ही विधायक प्रतिमा दास का कहना है कि कांग्रेस कोटे से उन्हें मंत्री बनाया जाना चाहिए क्योंकि वे महिला हैं और मंत्री पद की एक सीट महिला को मिलनी ही चाहिए। दूसरी ओर सरकार को समर्थन दे रहे और मंत्री रहे निर्दलीय विधायक सुमित कुमार सिंह की क्या जगह होगी, यह भी नीतीश कुमार के लिए दुविधा होगी।