नीतीश-तेजस्वी सरकार के गठन की सभी प्रक्रिया पूरी हो चुकी हैं। भाजपा से अलग होने और राजद के साथ आने के बाद इस सरकार के पास चुनौतियों का अंबार खड़ा है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती अधिकारियों पर सामंजस्य की है। नीतीश कुमार की सरकार पर ये आरोप लगते रहे हैं कि अधिकारी जन प्रतिनिधियों की नहीं सुनते। अब एक मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि अधिकारी हाई कोर्ट की भी जल्दी नहीं सुनते।
अवमानना के मामले बढ़े
दरअसल, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पटना हाई कोर्ट में अवमानना की नौ हजार याचिकाएं लंबित हैं। यानि अदालत ने जो आदेश दिया है, उसका पालन नहीं हुआ। ऐसी ही याचिकाओं पर अब हाई कोर्ट सख्त है। एक तरह से अल्टीमेटम ही दिया गया है कि या तो संबंधित अधिकारी आदेश का पालन करें या फिर जेल जाएं। पालन नहीं करने की एक ही शर्त है कि उपरी अदालत ने स्टे दिया हो। कोर्ट अब हर दिन 100 अवमानना के याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
सत्तापक्ष के विधायक भी परेशान
अधिकारियों के मनमाने रवैए से सत्तापक्ष के विधायक भी परेशान हैं। अभी कुछ दिन पहले ही मुजफ्फरपुर की कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र से राजद विधायक अनिल सहनी ने अपनी खीज अधिकारियों पर निकाली। वैसे अनिल सहनी तो इसे राजनीतिक अंदाज दे बैठे। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को एनडीए सरकार वाली आदत पड़ी हुई है। उसे तेजस्वी यादव सुधार देंगे। विधायक की बातों के दो अर्थ निकलते हैं। वैसे अर्थ से ज्यादा जरुरी ये है कि जन प्रतिनिधि भी अधिकारियों की बेलगाम स्थिति से परेशान हैं।
अधिकारियों पर कार्रवाई भी धीमी!
अभी 22 अगस्त को ही पटना में एक एडीएम केके सिंह ने खुलेआम एक प्रदर्शनकारी को पीटा। मामले ने तूल पकड़ लिया तो जांच कमेटी का गठन किया गया। लेकिन जांच के मिले दो दिनों का वक्त नाकाफी रहा। जिसकी फुटेज पूरी मीडिया में तैर रही थी, उसे कलेक्ट करने के लिए जांच अधिकारी ने पांच दिनों का वक्त मांगा। बहरहाल, जांच कब होगी यह भी देखना होगा और हाई कोर्ट की फटकार का कितना असर होगा, यह भी देखना होगा।