[Team Insider] एक से एक रहस्य समेटे दुनिया की सबसे प्राचीन धरती में शुमार झारखंड से क्या भगवान राम का रिश्ता रहा है। रांची से लगभग 45 किलोमीटर दूर दो जोड़ी प्राचीन चरण चिह्न मिलने के बाद यह सवाल फिर चर्चा में है। चतरा के ईटखोरी स्थित भद्र काली मंदिर परिसर में लगे शिलालेख में दर्ज है कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह स्थल प्रागैतिहासिक है और महाकाव्य काल, पुराणकाल से संबंधित है। किवदंती है कि वनवास काल में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता इस अरण्य में निवास किये थे। साथ ही धर्म राज युधिष्ठिर के अज्ञात वास स्थल और तपो भूमि भी यही क्षेत्र है।
एक चट्टान पर दो जोड़ी चरण चिह्न
दरअसल रांची से कोई 45 किमी दूर पिस्का नगड़ी से बेड़ो जाने वाले रास्ते में भीतर के एक गांव में एक चट्टान पर दो जोड़ी चरण चिह्न हैं। गांव के लोग इसे भगवान राम और लक्ष्मण के चरण चिह्न मानकर पूजा करते हैं। यहां के जंगलों, पहाड़ों में भ्रमण कर उनमें छुपे इतिहास की पड़ताल करने वाले भूविज्ञानी डॉ नीतीश प्रियदर्शी ने भी भगवान के चरण चिह्न वाले गांव का भ्रमण किया।
भगवान राम और लक्ष्मण के पद चिह्न मान कर करते है पूजा
उनके अनुसार गांव के लोग इन पदचिह्नों को भगवान राम और लक्ष्मण के पद चिह्न मान कर पूजा करते हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि राम और लक्ष्मण पंपापुर आज के पालकोट जाने के क्रम में यहां रुके थे। माना जाता है कि यह क्षेत्र रामायण काल में किष्किंधा का क्षेत्र था। दोनों जोड़ी पद चिह्न ग्रेनाइट पत्थर पर बने हैं। किसी भी पदचिह्न को बनने के लिए उस जगह की या मिट्टी का दलदली अवस्था में होना जरूरी है। क्योंकि दलदली अवस्था में किसी चीज का छाप उभर सकती है। जब ये चट्टान ठोस हो रहे थे। उस समय पृथ्वी पर कोई आबादी नहीं थी। इससे साफ पता चलता है कि इसे पत्थर का तराशनकर काट कर बनाया गया है।
खड़ाऊं के है पद चिन्ह
पद चिह्न के कुछ भाग हल्के से अपरदित हो चुके हैं। ये काफी पुराने मालूम पड़ते हैं। इसकी मापी कर उन्होंने बताया कि एक जोड़ा पद चिह्न की लंबाई 11 इंच और चौड़ाई पांच इंच है, दूसरे जोड़े की लंबाई 10 इंच और चौड़ाई साढ़े चार इंच है। बड़े पद चिह्न को देखकर लगता है कि उस व्यक्ति की ऊंचाई साढ़े छह-सात फीट तक रही होगी। ये पद चिह्न खड़ाऊं के हैं। भारत में इसे पहनने की प्रथा ईसा पूर्व से है और पैर और पद चिह्नों की पूजा प्राचीन काल से होती आ रही है।
स्कॉटलैंड में भी मिले है ऐसे पद चिह्न
इसी तरह के पद चिह्न स्कॉटलैंड में भी मिले हैं। रांची में इस तरह के पद चिह्न मिलने की यह पहली घटना है। इस तरह के पद चिह्नों की आयु की गणना विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में पाए गए पद चिह्नों पर की गई है। कहीं इनकी आयु 10,000 वर्ष से लाख वर्ष तक पाई गई है। रांची के आसपास के इलाकों में हाथ, लेख जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका, मानव आकृति, पलंग आकार के पत्थर भी मिलते रहे हैं। रांची के पास जहां से पद्चिह्न पाए गए हैं, वहां पर चट्टानों को तोड़ा जा रहा है और इस पद्चिह्न का अस्तित्व खतरे में है।वैसे भी प्रदेश में पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में है।
संकट में 53 पहाड़
छह जिलों में करीब 53 पहाड़ संकट का सामना कर रहे हैं। प्रदेश के 24 पहाड़ तो खत्म होने के कगार पर हैं। प्रियदर्शी के अनुसार इसमें 14 हजारीबाग के, चार पलामू के, तीन साहिबगंज के, दो लोहरदगा के और एक कोडरमा का है। यही हाल रहा तो रांची का यह ऐतिहासिक पद चिह्न भी गायब हो जायेगा। धार्मिक अस्था की वजह से अभी तक गांव के लोगों ने इसे बचा कर रखा है। रांची शहर के अनेक मेगालिथों का अस्तित्व भी खतरे में हैं। किसी का ध्यान नहीं है।
पहली जमीन, पहला सुनामी
पहले भी अपने अध्ययन के क्रम में प्रियदर्शी बता चुके हैं कि झारखण्ड के सिंहभूम में सबसे पहले समुद्र से निकली थी धरती और सबसे पहले सुनामी भी आया था । उनके अनुसार रहस्यों से भरा हुआ है झारखण्ड। भूवैज्ञानिक शोध नए नए परतों को खोल रहा है। कुछ दिन पहले एक शोध आया कि अफ्रीका नहीं झारखण्ड के सिंहभूम में सबसे पहले समुद्र से धरती निकली थी । इस ताज़ा शोध में उस व्यापक धारणा को चुनौती दी गई। जिसमे जलप्रलय के बाद करीब ढाई अरब साल पहले विभिन्न महाद्वीपों के समुद्र से निकलने के बारे में तमाम दावे किए गए थे।
3.2 अरब साल पहले धरती पहली बार समुद्र से बाहर निकली
ताज़ा शोध में कहा गया है कि करीब 3.2 अरब साल पहले धरती पहली बार समुद्र से बाहर निकली थी और जो इलाका सबसे पहले निकला था , वह झारखण्ड का सिंहभूम इलाका हो सकता है। इस शोध में भारत , ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के भूवैज्ञानिक शामिल थे। वैज्ञानिकों ने पाया की सिंहभूम के बलुआ पत्थर में प्राचीन नदी चैनल, ज्वार भाटा और तट करीब 3.2 अरब साल पुराने होने के भूगर्भीय संकेत मिले हैं। इससे पता चलता है धरती का यही इलाका सबसे पहले समुद्र से बाहर निकला था।
विस्फोट का ये सिलसिला कई हज़ार साल तक रहा जारी
मोनाथ विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता चौधरी प्रियदर्शी ने कहा की हमने यूरेनियम और छोटे छोटे खनिजों का विश्लेषण करके चट्टानों की उम्र का पता लगाया। शोधकर्ताओं ने ग्रेनाइट चट्टानों का अध्यन किया जिससे सिंहभूम इलाके की महाद्वीपीय परत बनी है और इनका निर्माण व्यापक ज्वालामुखी विस्फोट से हुआ। ये विस्फोट धरती के अंदर 35 से 45 किलोमीटर की गहराई में हुआ। विस्फोट का ये सिलसिला कई हज़ार साल तक जारी रहा। इसके बाद मैग्मा कठोर हुआ और इस इलाके में एक मोटी महाद्वीपीय परत उभर के सामने आई। अपनी मोटाई और कम घनत्व के कारण महाद्वीपीय परत समुद्र के पानी के बाहर आ गई।
पहला भूकंप और सुनामी झारखण्ड में 1600 मिलियन वर्ष पहले आया
वर्ष 2006 में भी एक शोध आया था की विश्व का पहला भूकंप और सुनामी झारखण्ड में 1600 मिलियन वर्ष पहले आया था। इस शोध में भारत, पोलैंड और जापान के वैज्ञानिक शामिल थे। वैज्ञानिकों ने झारखण्ड के चाईबासा फार्मेशन के अवसादी चट्टानों का विश्लेषण किया था। सिंहभूम की चट्टानें आज भी रहस्य बनी हुई हैं। रांची के आस पास भी प्राचीन समुद्र के अवशेष मिलने की भावना है।
देश के पहले ड्रैगन फ्लाई का जीवाश्म
देश के पहले ड्रैगन फ्लाई का जीवाश्म डॉ नीतीश प्रियदर्शी के अनुसार झारखण्ड के लातेहार जिला में भारत का सबसे पहला ड्रैगनफ्लाई का जीवाश्म मिला। करेंट साइंस में यह शोध प्रकाशित हुआ। भूवैज्ञानिकों के अनुसार ये जीवाश्म की आयु 2.5 मिलियन वर्ष पहले की है। ड्रैगन फ्लाई जिसे हमलोग बचपन इस पकड़ा करते थे और पूंछ में धागा बांधकर उड़ाते थे, लेकिन यह नहीं जानते थे की कीट हमसे भी करोड़ों साल पहले से इस धरती पर है। यह व्याध पतंग या ‘ड्रैगन फ्लाई’ एक कीट है। इसकी बड़ी आंखें, दो जोड़ी मजबूत पारदर्शी पंख और हेलिकॉप्टर जैसा लम्बा शरीर इसकी मुख्य विशेषता हैं। इनके छः पैर होते हैं किन्तु ये ठीक से चल नहीं सकते। माना जाता है कि ये दुनिया के सबसे पहले पंख वाले कीट थे।