[Team Insider]: झारखंड कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह के जाने के बाद कांग्रेस ने झारखंड पर अपना फोकस बढ़ा दिया है। चाल तेज कर दी है। प्रकारांतर से हेमन्त सरकार को भी संदेश दे दिया है। आरपीएन के जाते ही अविनाश पांडेय को सूबे का प्रभारी बना दिया गया। वे आये और दो साल से कांग्रेस में पुनर्वापसी की वाट जोह रहे दो प्रदेश अध्यक्षों सुखदेव भगत और प्रदीप बालमुचू की वापसी हो गई। इतना ही नहीं जिसका दो साल से इंतजार था, सरकार से समन्वय के लिए 14 सदस्यीय को आर्डिनेशन कमेटी का गठन कर दिया गया। हालांकि बड़े भाई झामुमो की ओर से समन्वय के मसले पर पहल शेष है।मिनिकम कॉमन प्रोग्राम की अभी तक औपचारिक घोषणा नहीं हुई है।
पांच लोगों में तीन कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष
कांग्रेस की को-आर्डिनेशन कमेटी में उन पांच लोगों को भी जगह दी गई है। जो प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद पार्टी में शामिल हुए। इसमें तीन कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। डॉ. अजय कुमार, सुखदेव भगत और प्रदीप बालमुचू। इन तीनों के विधानसभा चुनाव के एन मौके पर जाने का नतीजा रहा कि पार्टी में कोई पूर्व अध्यक्ष तक नहीं रह गया था। इसके अतिरिक्त झारखंड विकास मोर्चा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को भी शामिल किया गया है। प्रदेश अध्यक्ष और चारों मंत्री तो हैं ही। को-आर्डिनेशन कमेटी में शामिल होने से जो मंत्री नहीं हैं। उन्हें भी सरकार में अपनी भागीदारी का सीधा एहसास होगा। सरकारी योजनाओं, नीतियों को लेकर सीधा हस्तक्षेप कर सकेंगे।
प्रभार संभालने के बाद अनिवाश झारखंड के तीन दिवसीय दौरे पर आए
हालांकि डॉ. अजय कुमार, बंधु और प्रदीप को पहले ही सम्मानित किया जा चुका है। अजय की वापसी के कुछ ही दिनों के बाद उन्हें पूर्वोत्तर के तीन राज्यों का प्रभारी बना दिया गया तो बंधु तिर्की को नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में राजेश ठाकुर की तैनाती के साथ प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी पकड़ाई गई। प्रदीप यादव को भी बीते दिसंबर के अंत में विधायक दल का उप नेता बना दिया गया। हालांकि बाबूलाल मरांडी मुद्दे की वजह से इन्हें अभी तक विधानसभा में कांग्रेस विधायक के रूप में विधिवत मान्यता नहीं मिल सकी है। झारखंड का प्रभार संभालने के बाद अनिवाश पांडेय झारखंड के तीन दिवसीय दौरे पर आए, मगर हेमन्त सोरेन को भी एहसास करा गए। बता दें कि उनकी प्राथमिकता पहले पार्टी है, संगठन है। वे मुख्यमंत्री से मिलने तक नहीं गये, हां फोन पर बात की। उनके जाने के बाद प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता ने उनका फैसला सुनाया कि जनता से समन्वय के लिए मंत्री हर माह छह जिलों का दौरा कर जनता दरबार लगायेंगे। यह एक प्रकार से आपके अधिकार, आपकी सरकार आपके द्वार का काउंटर है। अभी बोर्ड निगम और विभिन्न आयोगों में समायोजन का काम शेष है।
तेज होगी गुटबंदी
संगठन की मजबूती के नाम पर लोगों की पुनर्वापसी हुई है। मगर, इससे कांग्रेस की अंदरूनी कलह भी तेज होगी। टिकट न मिलने से नाराज होकर सुखदेव भगत ने भाजपा का दामन थाम तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव के खिलाफ चुनाव लड़े थे। रामेश्वर उरांव आते पलामू से हैं। मगर, उनकी राजनीतिक जमीन लोहरदगा ही है। वे अपने बेटे के लिए भी जगह बना रहे हैं। रामेश्वर उरांव भी सुखदेव की वापसी में बाधक थे। लोहरदगा से आने वाले राज्यसभा सदस्य धीरज साहू भी रामेश्वर उरांव के करीबी हैं। जाहिर है आने वाले दिनों में लोहरदगा में कलह तेज होगी।
प्रदीप 2019 का चुनाव घाटशिला से लड़ना चाहते थे
प्रदीप बालमुचू को खुद और अपने उत्तराधिकारी की चिंता है। 2014 के विधानसभा चुनाव में प्रदीप बालमुचू की बेटी घाटशिला से चुनाव लड़कर तीसरे नंबर पर रही थी। दूसरे नंबर पर झामुमो था। ऐसे में 2019 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन में यह सीट दूसरे नंबर पर रहे झामुमो के पास चला गया। यहां से झामुमो का विधायक है। 2019 के चुनाव में प्रदीप बालमुचू खुद घाटशिला से लड़ना चाहते थे। बालमुचू के बाहर चले जाने से जमशेदपुर में स्वास्थ मंत्री बन्ना गुप्ता का एकछत्र था। जिसमें अब खलल पड़ेगी। बालमुचू के लिए घाटशिला का मोह त्यागना आसान नहीं है। जहां तक डॉ. अजय कुमार का सवाल है। वे जमशेदपुर से पूर्व में झाविमो के टिकट पर सांसद चुने गये थे। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान उनके और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय के समर्थकों के बीच के टकराव को लोग भूले नहीं हैं। प्रदीप बालमुचू ने भी उस दौरान जमकर इनका विरोध किया था। दलील कि दक्षिण के व्यक्ति की यहां कोई जमीन नहीं है। मगर कांग्रेस में अजय कुमार की वापसी भी दिलचस्प रही। दक्षिण लाबी के सहारे जब वे ज्वाइनिंग लेकर यहां पहुंचे, तब तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव को उनके कांग्रेस में वापस होने की जानकारी मिली थी।
झाविमो से प्रदीप यादव के कांग्रेस में शामिल होने के दौरान संताल से ही आने वाले कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. इरफान अंसारी की बगावत और मीडिया में उनका विरोध किसी से छुपा नहीं है। जाहिर है आने वाले दिनों में इस तरह की कटुता का असर कांग्रेस को झेलना पड़ेगा।