कालिदास रंगालय में सांस्कृतिक संस्था अनवेषा द्वारा सांस्कृतिक मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से डॉ. राम कुमार वर्मा लिखित ऐतिहासिक हिंदी नाटक कौमुदी महोत्सव का मंचन आशीष कुमार निर्देशन में किया गया। नाटक प्राचीन पाटलिपुत्र पर अधिकार प्राप्त करने के बाद चंद्रगुप्त और चाणक्य के आपसी रिश्तों को आधार बनाकर लिखा गया है। नंद वंश के विनाश के बाद चंद्रगुप्त पाटलिपुत्र का सम्राट बनता है। महाराज नंद का गुप्तचर वसुगुप्त चंद्रगुप्त का धोखे से विश्वास जीतकर मंत्री बन जाता है। वसुगुप्त चंद्रगुप्त की हत्या के इरादे से कौमुदी महोत्सव का आयोजन करवाना चाहता है। जिसमें विषकन्या राजनर्तकी अलका की सहायता से चंद्रगुप्त की हत्या का षड्यंत्र रचता है परन्तु चाणक्य को इस षड्यंत्र की जानकारी मिल जाती है।
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चाणक्य द्वारा आयोजन के लिए मना किए जाने पर चंद्रगुप्त गुस्सा हो जाता है जिसके कारण दोनों में विवाद उत्पन्न हो जाता है जो बहस का रूप धारण कर लेता है। चंद्रगुप्त चाणक्य के सामने सच साबित करने का शर्त रखता है चाणक्य अपने चतुरता से चंद्रगुप्त के सामने वसुगुप्त और अलका के षड्यंत्र का पर्दाफाश करते हैं और अपने शर्त के अनुसार चंद्रगुप्त साथ छोड़कर जंगल में चले जाते हैं। इस प्रकार कौमुदी महोत्सव का आयोजन नहीं हो पाता है।
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नाटक में भाग लेने वाले कलाकार थे चंद्रगुप्त -राजशेखर,चाणक्य- रोशन कुमार, राजनर्तकी अलका- उज्वला गांगुली, वसुगुप्त- सुमित कुमार, यशोवर्मन- श्याम अग्रवाल, पुष्पदंत- अल्ताफ रजा, सैनिक- गौरव ठाकुर, पंकज कुमार, अविनाश अकेला। नेपथ्य में भूमिका निभा रहे थे प्रकाश सज्जा- इरफान अहमद, मंच व्यवस्था- प्रदीप गांगुली एवं वैभव विशाल, रूप सज्जा-उपेंद्र कुमार, संगीत-आयुष कुमार गुप्ता, सिद्धार्थ कुमार,वस्त्रविन्यास- तनुजा, प्रतिज्ञा भारती । डॉ रामकुमार वर्मा लिखित नाटक का सह निर्देशन उज्जवला गांगुली एवं निर्देशन आशीष कुमार द्वारा किया गया था।