RANCHI : झारखंड के लिए तीन दिन खास रहे। आखिर हो भी क्यों न राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तीन दिनों तक यहां मेहमान बनकर रही। वह देश की पहली राष्ट्रपति है जो झारखंड में तीन दिनों के दौरे पर रही। झारखंड आने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुधवार को देवघर में बाबा बैद्यनाथ की पूजा अर्चना की। इसके बाद रांची पहुंचकर उन्होंने धुर्वा में नवनिर्मित देश के सबसे बड़े हाईकोर्ट भवन का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने गुरुवार को खूंटी में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के सम्मेलन में जाकर उनसे बात की और उत्साह बढ़ाया। ट्रिपल आईटी के दूसरे दीक्षांत समारोह में भी शिरकत की। शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दिल्ली के लिए रवाना हो गई। राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन और सीएम हेमंत सोरेन उन्हें विदा करने के लिए एयरपोर्ट पहुंचे थे।
मेरे अंदर झारखंड का खून
द्रौपदी मुर्मू झारखंड में करीब छह साल तक राज्यपाल रह चुकी हैं। अलग-अलग जगहों पर अपने संबोधन में उन्होंने झारखंड से जुड़े होने की बात कही। खूंटी में उन्होंने कहा था कि मैं रहने वाली तो हूं ओड़िशा की हूं लेकिन मेरे अंदर झारखंड का भी खून है क्योंकि मेरी दादी झारखंड से थी। जिस घर में मंत्री जोबा मांझी बहू बनकर आई, उसी घर से मेरी दादी थी। इसलिए झारखंड से मेरा विशेष लगाव है। राष्ट्रपति ने दिल्ली लौटने के पहले गुरुवार को राजभवन में कुछ गणमान्य लोगों से मुलाकात की।
आदिवासी समाज दहेज प्रथा से दूर
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जनजातीय समुदाय की विशेषताओं का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज बिना दहेज के बेटी की शादी करते हैं और बिना दहेज के बहू भी लाते हैं। दूसरे समाज को भी इस परंपरा का अनुकरण करना चाहिए। तभी दहेज रूपी राक्षस का अंत होगा।
डोंबारी बुरु का नरसंहार काफी पुराना
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने खूंटी में जन्म लेने वाले अमर शहीद भगवान बिरसा मुंडा को नमन किया। उन्होंने कहा कि आश्चर्य होता है कि 25 साल से भी कम उम्र में भगवान बिरसा ने इतना कुछ कैसे कर दिया। अबुआ राज का बिगुल फूंका। डोंबारी बुरु का नरसंहार जालियांवाला बाग से 25 साल पहले हुआ था। अंग्रेजों ने निर्दाेष लोगों को घेर कर गोलियां से भून दिया। भगवान बिरसा ने अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ संघर्ष जारी रखा।
आर्थिक विकास में महिलाओं की बड़ी भूमिका
राष्ट्रपति ने कहा कि हर महिला की कहानी, मेरी कहानी है नामक शीर्षक से मैंने एक लेख लिखा था। जिसमें बताया गया था कि समानता आधारित समाज जरूरी है। वे महिलाओं की प्रतिभा और क्षमता से परिचित हैं। परिश्रमी बहनें और बेटियां राज्य की अर्थव्यवस्था के साथ देश के आर्थिक विकास में योगदान देने में सक्षम हैं।