झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस द्वारा झारखण्ड विधान सभा से पारित ‘झारखण्ड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक, 2022’ की पुनर्समीक्षा के लिए राज्य सरकार को वापस कर दिया गया है। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार इस विधेयक की वैधानिकता की समीक्षा करें कि यह संविधान के अनुरूप और उच्चतम न्यायालय के आदेशों और निदेशों के अनुरूप हो। बता दें कि यह अधिनियम राज्यपाल के अनुमोदन और राष्ट्रपति की सहमति के लिए प्रेषित करने का अनुरोध राज्य सरकार द्वारा प्राप्त हुआ था।
राज्य के वर्ग-3 और 4 के विरुद्ध नियुक्ति के लिए होंगे पात्र
इस अधिनयम के अनुसार, स्थानीय व्यक्ति का अर्थ झारखंड का अधिवास(डोमिसाइल) होगा जो एक भारतीय नागरिक है और झारखंड की क्षेत्रीय और भौगोलिक सीमा के भीतर रहता है और उसका या उसके पूर्वज का नाम 1932 या उससे पहले के सर्वेक्षण/खतियान में दर्ज है। इसमें उल्लेख है कि इस अधिनियम के तहत पहचाने गए स्थानीय व्यक्ति ही राज्य के वर्ग-3 और 4 के विरुद्ध नियुक्ति के लिए पात्र होंगे। ऐसे में इस विधेयक की समीक्षा के क्रम में स्पष्ट पाया गया है कि संविधान की धारा 16 में सभी नागरिकों को नियोजन के मामले में समान अधिकार प्राप्त है।
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राज्य विधानमंडल को यह शक्ति नहीं है प्राप्त
संविधान की धारा- 16(3) के अनुसार मात्र संसद को यह शक्तियां प्रदत्त हैं कि वे विशेष प्रावधान के तहत धारा 35 (A) के अंतर्गत नियोजन के मामले में किसी भी प्रकार की शर्तें लगाने का अधिकार अधिरोपित कर सकते हैं। राज्य विधानमंडल को यह शक्ति प्राप्त नहीं है। ऐसे में राज्यपाल से समीक्षा करते हुए पाया कि वर्णित परिस्थिति में जब राज्य विधानमंडल में यह शक्ति निहित नहीं है कि वे ऐसे मामलों में कोई विधेयक पारित कर सकती है। तो इस विधेयक की वैधानिकता पर गंभीर प्रश्न उठता है और उन्होंने इस विधेयक को राज्य सरकार को यह कहते हुए वापस किया कि वे विधेयक की वैधानिकता की गंभीरतापूर्वक समीक्षा कर लें। विधेयक संविधान और उच्चतम न्यायालय के आदेशों के अनुरूप हो।