केंद्रीय एजेंसियों की घेरेबंदी और ईडी के दूसरे समन के बीच हेमन्त सोरेन अपने प्रशासनिक और राजनीतिक फैसलों से उनका मुकाबला कर रहे हैं। बल्कि चुनाव के पहले ही अपनी तैयारी पूरी कर ली। शुक्रवार को विधानसभा के विशेष सत्र ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता नीति और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण का विधेयक पास कराने के बाद खुद हेमन्त सोरेन ने कहा ” राज्य के ज्वलंत विषय पर सरकार ने लगभग सारे निर्णय ले लिये हैं।” दरअसल खुद के नाम माइनिंग लीज यानी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में गर्दन फंसती दिखी तो उन्होंने नीतिगत फैसलों की रफ्तार तेज कर दी।
भाजपा की शिकायत के आलोक में जब 25 अगस्त को चुनाव आयोग का राजभवन मंतव्य पहुंचा सरकार हिल गई। उसके बाद हेमन्त अपने वोटरों, जनता को प्रभावित करने वाले तमाम फैसले धड़ाधड़ करने लगे। वे तमाम फैसले जो संभवत: पूरे कार्यकाल में हो पाते, सवाल था। इसी कड़ी में 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता नीति और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण का भी फैसला लिया गया। वादे के अनुसार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर पास कर दिया गया। और नौंवी अनुसूची के लिए केंद्र को प्रस्ताव पारित कर दिया। यानी केंद्र के पाले में। नौवीं अनुसूची इसलिए ताकि अदालत में इन्हें चुनौती नहीं दी जा सके। ओबीसी आरक्षण को लेकर कांग्रेस शुरू से शोर मचा रही थी, आंदोलन कर रही थी, सभाओं में वादे कर रही थी। मगर एकझटके में हेमन्त इस एजेंडा को ले उड़े।
स्थानीय नीति जनजाति और मूलवासी को मोहने वाला एजेंडा
झारखंड में ओबीसी की आबादी लगभग पचास प्रतिशत है। इसी तरह स्थानीय नीति भी मूल रूप से जनजाति और मूलवासी को मोहने वाला एजेंडा है। प्रदेश में 2011 की जनगणना के अनुसार 26 प्रतिशत से अधिक जनजाति की आबादी है। जाहिर है सिर्फ दो विधेयक के जरिये हेमन्त ने वोट बैंक के बड़े केक पर पासा फेंक दिया है। केंद्र में बैठी भाजपा को यह रास नहीं आयेगा। राज्यपाल से पहले से खुन्नस है। विधेयकों में विसंगतियां ढूढने का अपना आधार है।
1932 के खतियान और स्थानीयता की बात करें तो अलग राज्य बनने वालों प्रदेशों में सिर्फ झारखंड में ही स्थानीयता का सवाल उठा है अन्यथा विभाजन के पहले सब बिहारी थे। कुछ इलाके 1932 के बाद झारखंड में शामिल हुए, कोल्हान के इलाके में 1964 का सर्वे है। हेमन्त की सहयोगी कांग्रेस की सांसद गीता कोड़ा ने इसी वजह से इसका खुलकर विरोध किया था। जिनके पास जमीन नहीं थी या खतियान नहीं है के लिए ग्राम सभा से मंजूरी का रास्ता निकाला गया है। लेकिन ग्राम सभा ने गलत फैसला किया तो गैर स्थानीय को स्थानीय की मान्यता मिल जायेगी। सवाल और भी हैं।
राजनीतिक एजेंडा की तरह इसे पेश कर दिया गया
विधानसभा में विपक्ष ने यह मसला उठाया, कहा कि गंभीर विषय है, गंभीरता से विमर्श की जरूरत है। राजनीतिक एजेंडा की तरह इसे पेश कर दिया गया है। ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण के विरोध का अपना तर्क है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास कहते हैं कि आनन फानन जिस तरह झारखंड की जनता को धोखा देने का काम करते हुए विस में 1932 का खतियान और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण का राग अलापा गया। जनता जान गई है। 2019 में इसी झांसे में रख हेमन्त ने कहा था अबुआ राज बनाइए तीन माह में स्थानीय नीति परिभाषित करेंगे। तीन साल बीतने जा रहा ईडी सीएम के द्वार पहुंची तब सरकार आपके द्वार याद आया।
1932 का खतियान और ओबीसी 27 प्रतिशत याद आया। पिछड़ा समाज जान गया है कि सब राजनीति है, इन्होंने पंचायत में आरक्षण समाप्त किया, निकाय में समाप्त किया अब बिना तैयारी विस में पास करा लेंगे। लेकिन पिछड़ों या किसी को आरक्षण देने के पहले उनका आर्थिक और सामाजिक सर्वेक्षण होता है। भाजपा भी 27 प्रतिशत आरक्षण का पक्षधर थी। मुझे पता है संताल के दो जिला में पिछड़ों का रोस्टर पिछड़ा का शून्य है। खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, पूर्वी सिंहभूम में शून्य है। इसलिए हमारी सरकार ने 2019 में सर्वेक्षण का काम शुरू किया था। मगर इस सरकार ने आते ही बंद करा दिया आते ही। बिना सर्वे आरक्षण बढ़ाना धोखा है।
दोनों विधेयक न संविधान सम्मत न विधि सम्मत
राष्ट्रपति और राज्यपाल संविधान के संरक्षक है। राज्यपाल के यहां से यह टर्नडाउन हो जायेगा। दोनों विधेयक न संविधान सम्मत न विधि सम्मत है।
बहरहाल अभी से आशंका जताई जा रही है कि इन दोनों विधेयकों का हस्र भी सरना धर्म कोड की तरह होने जा रहा है। दो साल पहले 11 नवंबर को विशेष सत्र बुलाकर विधानसभा से इसे सर्वसम्मत पास करके केंद्र के पास भेजा गया। भीतर ही भीतर घोर असहमति के बावजूद भाजपा ने सदन में समर्थन किया था। मगर आज तक उसे मंजूरी नहीं मिली। और हेमन्त और उनकी पार्टी आये दिन सरना कोड को लेकर आदिवासियों के प्रति अपनी हिमायत दिखाते हुए केंद्र पर हमला बोलते हैं। केंद्र के पास इसका काट भी नहीं है। आदिवासी वोटों का सवाल है। इस बात से इनकार नहीं कि आने वाले दिनों में 1932 के खतियान और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण के सवाल पर हेमन्त सरकार केंद्र पर हमलावर रहेगी।
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केंद्र की भाजपा सरकार अड़चन डाल रही है
वोटों के बड़े वर्ग को बतायेगी मैंने अपना काम कर दिया है, केंद्र की भाजपा सरकार अड़चन डाल रही है। जब प्रशासनिक स्तर के जब बड़े काम हो चुके हैं, ऐसे में राजनीतिक तौर पर विरोधी यानी केंद्र पर हमला का इससे बड़ा हथियार और क्या हो सकता है।