तेजी से बदलते राजनीति हालात के बीच सरकार हेमन्त सरकार का फोकस लोक कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर बढ़ गया है। हालांकि शुरू से उनका फोकस अपने वोट बैंक पर रहा है। सरना आदिवासी धर्म कोड, ट्राइबल यूनिवर्सिटी, जनजातीय मेधावी छात्रों को अपने उच्च तकनीकी अध्ययन, मॉब लिंचिंग निरोध कानून, सर्वजन पेंशन से लेकर पुरानी पेंशन तक उसी का हिस्सा है। धर्म कोड का मामला विधानसभा से सर्वसम्मत पास करने के दो साल होने को हैं मगर तकनीकी अड़चन के कारण कहीं कदम आगे नहीं बढ़ा।
इसी 15 जुलाई को कैबिनेट की बैठक कर पुरानी पेंशन योजना के लिए प्रक्रिया तय करने के लिए कमेटी गठित करने का निर्णय किया गया। तकनीकी अड़चनों के कारण कहीं इसकी हालत भी सरना कोड जैसी न हो जाये। दरअसल सरकार पुरानी पेंशन योजना को लेकर गंभीर नहीं रही। यह झामुमो के चुनावी वादे का हिस्सा है।
देश में 2004 से पुरानी पेंशन योजना समाप्त कर दी गई थी
सरकार के दो साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन पुरानी पेंशन योजना को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी। दरअसल कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना का फायदा और हर छह माह पर महंगाई राहत में वृदि्ध के फायदे के मर्म को खूब समझते हैं। कर्मचारी-पेंशन वोट बैंक भी है। हेमन्त सोरेन इसे भी बखूबी समझते हैं। दरअसल कर्मचारियों के वेतन और पर ही बजट का करीब 75 प्रतिशत पैसा खर्च हो जा रहा था। इसी संकट को देखते हुए पूरे देश में 2004 से पुरानी पेंशन योजना समाप्त कर दी गई। देश भर के कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग को लेकर लगातार आवाज उठाते रहे हैं।
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने पुरानी पेंशन का फेंका था चारा
कर्मचारी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए अपनी अपनी सरकार के दो साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने चारा फेंका था। कहा था कि पुरानी पेंशन बहाली से संबंधित वादा मेरे संज्ञान में है। हमारी टीम इस पर काम कर रही है। सेवा निवृत्ति के बाद का भविष्य हम शेयर बाजार के भरोसे छोड़ने के पक्ष में नहीं हैं। अगर सरकार पुरानी पेंशन योजना को लेकर ईमानदार होती तो अब तक खजाने की स्थिति, पड़ने वाले बोझ का आकलन कराकर निर्णय कर चुकी होती। खजाने पर पड़ने वाले बोझ को वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव बेहतर तरीके से समझते हैं।
पिछले दिनों उन्होंने कहा था ”मुख्यमंत्री की घोषणा है मेरा इस पर कमेंट करना शोभा नहीं देता, सरकार में होने का अपना अनुशासन है। मैं उनके खिलाफ नहीं जा सकता। लेकिन आकलन तो करना होगा कि देना संभव है या नहीं। मेरी व्यक्तिगत राय है कि अभी का बजट, माली हालत, इसकी अनुमति नहीं देता। वे अपनी बात पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे के कथन के हवाले कहते हैं। कहते हैं, जब मैं सीनियर एसपी था, बजट पास कराने के बाद हमलोग सीएम आवास गये। चाय पीते पीते मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे बोले, बिहार का क्या काया कल्प होगा रामेश्वर बाबू, बजट का 76 प्रतिशत पैसा तो सैलरी और पेंशन में चला जाता है। 24 प्रतिशत में क्या विकास होगा।”
दस प्रतिशत खुद का और 14 प्रतिशत सरकार देती है
अब सातवें वेतन आयोग के बाद वेतन और पेंशन बढ़ गया है। आठवां वेतन आया तो सैलरी और पेंशन मद में में राशि बेहिसाब बढ़ जायेगी। और लोगों की उम्र भी पहले की तुलना में बढ़ रही है। सामान्य रूप से लोग 80-90 साल जी लेते हैं। और 80 साल पार करते ही पेंशन की रफ्तार हर पांच साल बढ़ती जाती है 100 साल का होने पर डबल हो जाता है। लोग जितने साल नौकरी नहीं करते उससे अधिक साल तक पेंशन उठा रहे हैं। जाहिर है सरकार के खजाने पर बोझ बेहिसाब बढ़ेगा। हालत चरमरा जायेगी। अभी करीब डेढ़ लाख पेंशनधारी हैं। वहीं राज्य में पांच लाख से अधिक स्वीकृत पद हैं मगर करीब दो लाख कर्मी कार्यरत हैं। 2004 के बाद नियुक्त हुए लोग अंशदायी पेंशन योजना से जु़ड़े हैं। यानी दस प्रतिशत खुद का और 14 प्रतिशत सरकार देती है।
नियमित पदों पर सरकारी सेवकों की बहुत कम हुई नियुक्ति
अब तक इस मद में हुई करीब 18 हजार करोड़ रुपये की कटौती की पेंशन फंड रेगुलेटरी डेवलपमेंट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया से वापसी पर भी संकट है। और नयी पेंशन योजना के लोग भी आने वाले सालों में रिटायर करने लगेंगे। हाल के वर्षों में नियमित पदों पर सरकारी सेवकों की बहुत कम नियुक्ति हुई। ऐसे में तत्काल तो सरकार पर ज्यादा बोझ नहीं दिखेगा मगर आने वाली सरकारों के लिए जब नई योजना के लोग अवकाश ग्रहण करने लगेंगे। संविदा पर नियुक्त लोगों को भी नियमित करने की ओर सरकार कदम उठा रही है। जाहिर है आने वाले समय में उसका असर भी खजाने पर पड़ेगा। एक दशक बाद सरकार के लिए विकास योजनाओं के लिए खजाने में पैसे नहीं रहेंगे।
नई विकास योजनाओं का होगा बंटाधार
कोरोना काल के बाद से सरकार के खजाने की हालत ठीक नहीं है। अभी ही सरकार आर्थिक तंगी का रोना रोती रहती है। नतीजा है कि विकास योजनाओं की गति पूरी तरह मंथर हो गई है। जाहिर है पुरानी पेंशन योजना लागू हुई तो नई विकास योजनाओं का बंटाधार होगा। आने वाली सरकारों को फजीहत का सामना करना पड़ेगा। बहरहाल पश्चिम बंगाल और केरल में पुरानी पेंशन योजना लागू है। हाल में छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने भी इसे लागू किया है। तब देखना है कि झारखंड इसे रूप में लागू करता है। स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीडियोर के लिए कैबिनेट द्वारा गठित कमेटी क्या रिपोर्ट देती है और उसके अनुपालन में कितना समय लगता है।